अपन कार्टूनिस्ट होते। तो राजीव प्रताप रूढ़ी का मसाला काम आता। रूढ़ी ने काफी मेहनत की होगी। तब यह जुमला दिमाग में उभरा होगा। रूढ़ी राजनीति में नहीं आते। तो अच्छे कार्टूनिस्ट हो सकते थे। वैसे बाल ठाकरे पहले कार्टूनिस्ट थे। फिर पॉलिटिशियन बने। पॉलिटिशियन भी ऐसे बने। गैर मराठियों का मुस्कुराना बंद कर दिया। हंसाना तो दूर की बात। खैर बात रूढ़ी के जुमले की। उनने अपने मनमोहन सिंह का नया नामकरण किया। कहा- 'मनमोहन सिंह नहीं, महंगाई सिंह कहना चाहिए।' अपन ने कल ही तो लिखा था- 'मनमोहन महंगाई का अपना रिकार्ड तोड़ेंगे।' गुरुवार को जब मनमोहन की मंत्रियों को चिट्ठी पढ़ी। तो अपन को आने वाले बुरे दिनों का आभास होने लगा। यानी देश की आर्थिक हालत उतनी बुरी नहीं। जितनी अपन सोचते थे। अलबत्ता उससे भी ज्यादा बुरी।
मनमोहन-चिदंबरम बजट के समय छुपाकर बैठे थे। सवा तीन महीने में इतनी बुरी हालत तो नहीं होती। जैसी मनमोहन ने गुरुवार को अपनी चिट्ठी में बताई। ऐसा नहीं, जो मनमोहन मंत्रियों को चिट्ठी लिखने वाले पहले पीएम हों। पहले भी पीएम अपने मंत्रियों को चिट्ठियां लिखते रहे। पर चिट्ठियां ऐसे सरकारी वेबसाइट पर जारी कभी नहीं हुई। या तो कोई मंत्री पीएम की बात सुनता नहीं। सो उनने जनता का दबाव बनाने के लिए चिट्ठी जगजाहिर की। बात चिट्ठी के मजमून की। उनने लिखा- 'सरकारी खर्चे घटाए जाएं। मंत्री और अफसरान विदेशी-घरेलू उड़ानें कम करें।' असल में अपनी याददास्त बहुत कम। सो अपन याद दिला दें- 'मनमोहन ऐसी चिट्ठी पहले भी लिख चुके।' यानी पहली चिट्ठी का असर नहीं हुआ। चिट्ठी के फौरन बाद खर्चा सचिव सुषमा नाथ ने फरमान जारी किया। जिसमें कहा- 'सभी मंत्रालय गैर योजना खर्चे में दस फीसदी कटौती करेंगे। फाइव स्टार होटल में कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं होगी। ओवर टाइम में कटौती होगी। मंत्रियों-संतरियों के दौरों में कटौती होगी। प्रचार सामग्री के खर्चे घटेंगे। सरकारी इश्तिहारों में कटौती होगी। दफ्तरी खर्चा भी घटेगा।' सुषमा नाथ ने कहा- 'सरकार छह हजार करोड़ बचाएगी।' पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ने का असर अलग बात। बात सिर्फ इतनी नहीं। बात देश के आर्थिक संकट की। जो कल तक छुपा हुआ था। पीएम के राष्ट्र के नाम संदेश, मंत्रियों के नाम चिट्ठी, खर्चा सचिव के फरमान से जाहिर हो गया। सोनिया गांधी को तो खतरा साफ दिखने लगा। सो वह खुद हर कांग्रेसी सीएम से फुनियाई। सबको हिदायत दी- 'पेट्रोल-डीजल-गैस पर सेल्स टेक्स घटाएं। ताकि मनमोहन के किए-धरे का कुछ तो असर कम हो।' सोनिया अपने मुख्यमंत्रियों से फुनियाई। तो राजनाथ सिंह क्यों पीछे रहते। उनने भी अपने मुख्यमंत्रियों को सेल्स टेक्स घटाने की हिदायत दी। शाम होते-होते मुख्यमंत्रियों के फरमान जारी होने लगे। पूरा देश संकट से जूझने को तैयार दिखाई देने लगा। आम आदमी का बाजा बजाकर मनमोहन ने एक बात तो हासिल की। उनने चार साल में पैदा किए असली संकट का अहसास करा दिया। बकौल राजीव प्रताप रूढ़ी- 'महंगाई सिंह नॉन परफारमिंग पीएम साबित हुए।' नॉन परफारमिंग यानी बिना काम-काज का। पर अपन को तो नीतीश कुमार का जुमला सबसे बढ़िया लगा। उनने सदाबहार जुमला कसा- 'कांग्रेस और महंगाई का चोली-दामन का साथ। जब-जब कांग्रेस आई, महंगाई साथ लाई।' मनमोहन सिंह जब वित्त मंत्री थे। तो उनने सितंबर 1995 में नौ फीसदी मुद्रास्फीति का रिकार्ड बनाया। इसी महीने अपना रिकार्ड तोड़ेंगे। पर एक रिकार्ड मनमोहन ने नया बना लिया। एक साथ पांच रुपए पेट्रोल बढ़ाने का। धीरे-धीरे बढ़ाते। तो शुगर कोटेड गोली की तरह लगता। पर मनमोहन कर्नाटक में करिश्मे की उम्मीद किए बैठे थे। जो कीमतें रोककर रखने पर भी हुआ नहीं। आखिर जब कीमतें बढ़ी। मनमोहन मजबूरी बताने टीवी पर आए। तो रूढ़ी बोले- 'मनमोहन सिंह कल जब टीवी पर बोल रहे थे। तो ऐसा लग रह था जैसे शोक संदेश पढ़ रहे हों।' पर पीएम की कुर्सी पर निगाह टिकाए बैठे आडवाणी बोले- 'मनमोहन सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें नहीं बढ़ाई। अलबत्ता अपनी सरकार के डेथ वारंट पर दस्तखत किए।'
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