मनमोहन सिंह को बधाई। सोनिया गांधी को भी बधाई। जो कसर रह गई थी। वह भी पूरी हो गई। आम आदमी का जमकर बाजा बजाया। बाजा बजाने का रेडियो-टीवी से संदेश भी दिया। अपनी बधाई इसी बात के लिए। पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस की कीमतें बढ़ाकर संबोधित तो ऐसे कर रहे थे। जैसे उनकी रहनुमाई में देश ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की हो। राजीव प्रताप रूढ़ी ने इसे आर्थिक आतंकवाद कहा। यों जेटली या नकवी सामने आते। तो ज्यादा संवेदनशील प्रतिक्रिया आती। बीजेपी को भी सही वक्त पर सही आदमी पेश करना नहीं आता। पर कांग्रेस ने संकट की इस घड़ी में सही आदमी पेश किया। मनीष तिवारी ने महंगाई की मजबूरी भी तर्को से समझाई। एनडीए राज की कीमतों के परखचे भी उड़ाए।
बोले- 'एनडीए राज में बाईस डालर बैरल रेट बढ़ा। एनडीए ने अपने राज में रसोई गैस 109 रुपए बढ़ाई। यूपीए राज में सौ डालर रेट बढ़ा। यूपीए ने 83 रुपए कीमत बढ़ाई।' पर अपन एनडीए-यूपीए की तू-तू, मैं-मैं में नहीं पड़ते। अपन को तो इतना याद- 1990 में अपन ने स्कूटर खरीदा। तो पेट्रोल नौ रुपए लीटर था। वो दिन भी क्या दिन थे। पर यूपीए से एनडीए की प्राइस पॉलिसी बेहतर थी। वाजपेयी ने हिम्मत कर केलकर कमेटी की सिफारिशें लागू की। मनमोहन को लेफ्ट ने उलझा दिया। वरना वाजपेयी की प्राइस नीति लागू रहती। तो यह संकट खड़ा ही न होता। दुनिया में कच्चे तेल की कीमत बढ़ती। तो अपने यहां भी अपने आप बढ़ जाती। दुनिया में घटती। तो अपने यहां भी घट जाती। ओखली में सिर खुद मनमोहन सिंह ने दिया। पर टेक्स घटाकर संकट से बच सकती थी सरकार। अपन सीधा सा गणित बताएं। बिना टेक्सों के अपने यहां तैयार पेट्रोल की कीमत सिर्फ 26 रुपए। यानी असली कीमत 48 फीसदी। टेक्स 52 फीसदी। दस साल में अपना आयात डबल हो गया। कीमतें चार गुना हो गई। सरकार की आमदनी आठ गुना बढ़ गई। पर सरकार एक्साइज, कस्टम डयूटी कम करने को तैयार नहीं। आम आदमी की सरकार होती। तो टेक्स घटाती। सोनिया ने बात तो की आम आदमी की। पर पीएम एफएम बना दिए आम आदमी विरोधी। आम आदमी के नाम पर मिट्टी के तेल की कीमत नहीं बढ़ी। पर रसोई गैस की कीमत पचास रुपए सिलेंडर बढ़ गई। मिट्टी का तेल गरीबों का। रसोई गैस आम आदमी की। मिट्टी के तेल का गणित गरीबों के लिए नहीं। अलबत्ता तेल के डीपू वाले राजनीतिक वर्करों का। नेहरू-इंदिरा राज में राशन-तेल के डीपू कांग्रेसी वर्करों को। पेट्रोल पंप-गैस एजेंसियां कांग्रेसी नेताओं को। जिसकी जितनी हैसियत। उसको उतनी लूट की छूट। मिट्टी तेल की सब्सिडी गरीब को कभी नहीं पहुंची। डीपू वाले राजनीतिक वर्कर ब्लैक मार्केटिंग के माहिर। गरीब को तो दस वाला तेल बीस में ही मिलता है। सो सबसे पहले मिट्टी तेल की सब्सिडी बंद होनी चाहिए। कम से कम बीस हजार करोड़ बचेगा। पर सरकार ऐसा नहीं करेगी। अपने वर्करों के पेट पर लात नहीं मारेगी। आम आदमी का पेट तो बेगाना। इसीलिए रूढ़ी ने यह तो गलत नहीं कहा- 'यूपीए सरकार ने आम आदमी के कफन में आखिरी कील ठोक दिया।' जहां तक लेफ्टियों की बात। तो उनके बंगाल-केरल में सेल्स टेक्स सबसे ज्यादा। अब जाकर लेफ्टियों को सुध आई। तो बाकी देश के बराबर टेक्स करने की सूझी। यों लेफ्टियों की विरोध नौटंकी का जवाब नहीं। जब-जब कीमतें बढ़ीं। घड़ियाली आंसू बहाए। बयान जारी किए। विरोध प्रदर्शन किया। पर सरकार न पहले गिराई, न अब इरादा। अब फिर बंगाल-केरल में बंद होगा। इस बार आरजेडी भी बढ़ी कीमतों के खिलाफ बोली। पर कीमतें अभी बढ़ी कहां। अभी तो बढ़ेंगी। देखते जाइए। जून के आखिर में अपनी मुद्रा स्फीति नौ के पार होगी। तब मनमोहन तेरह साल पुराना अपना ही रिकार्ड तोड़ेंगे। सितंबर 1995 में मनमोहन ने बनाया था रिकार्ड।
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