अर्जुन के तीरों को समझना आसान नहीं। जैसे चिदंबरम का बजट पहली नजर में समझ नहीं आता। वैसे ही अर्जुन के तीर फोरन समझ नहीं आते। सो अर्जुन ने जो तीर शनिवार को वर्किंग कमेटी में चलाएं। कांग्रेसी इतवार को उसका चीर-फार कर रहे थे। तभी एक और ठाकुर ने तीर चला दिए। अर्जुन ने कर्नाटक की हार का ठिकरा मंहगाई के सिर फोड़ा। तो निशाना मनमोहन पर था। सोनिया ने अर्जुन को चापलुसी से रोका था। तीर चलाने से नहीं। यानि हार का ठिकरा सोनिया की रहनुमाई पर नहीं। अलबत्ता मनमोहन की मनेजमेन्ट पर। बीजेपी के ठाकुर राजनाथ सिंह ने भी मनमोहन पर तीर चलाई।
मौका था बीजेपी की वर्किंग कमेटी। जो होनी तो थी जयपुर में पर जयपुर में दो-दो वारदाते हो गई। पहले आतंकी वारदात। दूसरी गुर्जरों का हिंसक आंदोलन। सो राजनाथ ने दोनों वारदातों के बेगुनाह मृतकों को श्रध्दांजली दी। बात गुर्जर आंदोलन की चली। तो बता दें - राजस्थान की रिपोर्टिंग में तो मुद्दा उठा ही। हुकुमदेव ने गुर्जरों की बात अलग से भी उठाई। यों अपन ने गोपीनाथ मुंडे से पूछा। तो वह बोले हम न मीणाओं की राजनीति करते हैं, न गुर्जरों की। बात स्टेट रिपोर्टिंग की चल ही पड़ी। तो बिहार में उठे बबाल पर भी खुब चर्चा हुई। बेतुल जीतकर अपने शिवराज तो बाग-ओ-बाग थे। पर बात वसुंधरा राजे की। कहां जजमान होती वसु। कहां नदारत रही वर्किंग कमेटी से। पर अपन बात कर रहे थे राजनाथ के मनमोहन पर जहर बुझे तीरों की। बोले- ''मनमोहन, चिदम्बरम दोनों आर्थिक प्रबंधक। पर दोनों को प्रबंधन नहीं आ रहा। एनडीए ने आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद मंहगाई नहीं बढ़ने दी।'' बोले- ''चिदम्बरम ने बजट में पैकेजिंग, मार्केटिंग के फंडे अपनाए। पर जब प्रोडक्ट में जान न हो। मार्केटिंग-पैकेजिंग से प्रोडक्ट नहीं चलता।'' मनमोहन ने पिछले हफ्ते ही अपना चार साला रिपोर्ट कार्ड दिया। बड़ी लंबी-लंबी हांकी। पर राजनाथ बोले- ''रिपोर्ट कार्ड तो पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, कर्नाटक ने जारी कर दिया।'' उनने मनमोहन-चिदम्बरम के साइनिंग विकास पर भी फब्ती कसी। कहा- विकास तो एनडीए ने किया था। जो दिखता भी था। उनने जहर बुझे तीर तो अपने शिवराज पाटिल पर भी चलाए। जिनकी नजर में सरबजीत और अफजल में कोई फर्क नहीं। यों राजनाथ के अंदर का किसान भी पार्टी की वर्किंग कमेटी में दिखा। किसानों और कृषि पर सबसे ज्यादा बोले। संसद का खास सत्र बुलाने की मांग भी उठाई। अपन हाथों-हाथ बताते जाएं। कर्नाटक के नए सीएम यदुरप्पा किसान। किसान सीएम का वर्किंग कमेटी में शाही स्वागत हुआ। कर्नाटक कांग्रेस में मातम की वजह बना। तो भाजपा के लिए खुशी का कारण। यों पहली बार कर्नाटक में बीजेपी हिन्दुत्व को किनारे कर चुनाव लड़ी। तो क्या बीजेपी अपने तीनों मुद्दों छोड़ेगी। नहीं, राजनाथ ने कॉमन सिविल कोर, 370 भी दोहराया। साथ में सेक्युलरिज्म की कसकर वाट लगाई। लेफ्टियों कांग्रेसियों को बताया। सेक्युलरिज्म की हिन्दी धर्म निरपेक्ष नहीं होती। यों भी भारत धर्म निरपेक्ष नहीं। धर्म निरपेक्ष होता है नास्तिक। पर भारत पंथ निरपेक्ष। बात धर्म की चली। तो भले ही भारत का बेटिकन सिटी की तरह एक धर्म नहीं। पर देश धर्म से ओतप्रोत। अशोक चक्र ही धर्म का प्रतीक। सत्यमेव जयते ही धर्म प्रतीक। यों यह राजनाथ की कोई नई परिभाषा नहीं। पर चुनाव के वक्त बात चल गई। तो कांग्रेस की खाट खड़ी होगी। फिलहाल बात कर्नाटक की। अपन को लगा यदुरप्पा के साथ सेहरा तो अर्जुन जेटली के सिर पर ही बंधेगा। पर नहीं, राजनाथ ने जेटली का नाम भी आखिर में लिया। यानि खूनस अभी गई नहीं। राजनाथ की नजरों में न सही। पर जेटली ने अपने प्रबंधन की धाक जमा ली। एमपी से गुजरात तक। पंजाब से दिल्ली नगर निगम तक। बिहार से कर्नाटक तक। जहाँ-जहाँ मोर्चा संभाला। मोर्चा मारा। जेटली ने राजनाथ को इस लायक बनाया। जो कह सके- ''उत्तर में पंजाब-हिमाचल। पश्चिम में गुजरात-राजस्थान। मध्य में एमपी-छत्तीसगढ़। पूर्व में बिहार-उड़ीसा। पूर्वोत्तर में मेघालय-नागालैंड। दक्षिण में कर्नाटक। सारे देश में है बीजेपी। कांग्रेस नहीं, अब बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी।'' पर राजनाथ का इम्तिहान होगा अक्टूबर में। जब अपने एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ के चुनाव होंगे। तब दिल्ली में भी चुनाव होंगे। चार-चार जेटली कहां से लाएंगे।
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