दिया जब रंज बूतों ने तो माया को खुदा याद आया

Publsihed: 29.May.2008, 20:35

राजस्थान की आग अब दूर-दूर तक फैल गई। रेल मार्गों के बाद गुरुवार को सड़कें भी जाम हुई। पड़ोसी राज्यों यूपी, हरियाणा में तो असर हुआ ही। जम्मू कश्मीर तक असर हुआ। जहां गुर्जरों को पहले से एसटी का दर्जा। जम्मू कश्मीर के गुर्जरों ने सवाल उठाया- 'सारे देश में गुर्जरों को एसटी का दर्जा क्यों नहीं।' सो तीन हजार गुर्जर सड़कों पर उतर आए। वसुंधरा राजे जम्मू कश्मीर में भी मशहूर हो गई। वहां भी वसुंधरा के पुतले जले। बदनाम होंगे, तो क्या नाम न होगा। राजनीतिक हमला करने वाले भी बिलों से निकल आए। दिल्ली से कांग्रेस वसुंधरा पर बरस रही थी। लखनऊ से मायावती।

चंडीगढ़ से भूपेंद्र हुड्डा बरस रहे थे। पर गुरुवार की आंच दिल्ली, चंडीगढ़ से होते हुए कश्मीर तक पहुंची। तो राजनीतिक गोटियां बिखर गईं। चंडीगढ़ में मैदान चौटालावादियों ने मार लिया। लखनऊ में मुलायमवादियों ने। जम्मू कश्मीर का मैदान जरूर गुलाम नबी ने मारा। तीनों जगह नारे तो लगे बीजेपी के खिलाफ। वसुंधरा राजे के खिलाफ। पुतले भी बीजेपी-वसुंधरा के फूंके। पर निशाना बनी राज्य सरकारें। हरियाणा की बात ही लो। चौटालावादियों ने मौका नहीं चूका। जहां मौका मिला, गुर्जरों की हिमायत पर उतर आए। समालखां में गोलीबारी की नौबत आ गई। भगदड में एक बुजुर्ग मारा गया। गोली चली, तो जख्मी भी खूब हुए। आंदोलनकारी भी पूरी तैयारी के साथ थे। सो चौदह पुलिस वाले भी जख्मी हुए। हरियाणा के तो दो नेशनल हाइवे जाम हो गए। दिल्ली से चंडीगढ़ वाला हाईवे नंबर- एक। जिसे अपन पहले शेरशाह सूरी मार्ग कहते थे। राजस्थान वाला हाईवे नंबर- आठ तो जाम हुआ ही। हरियाणा से दिल्ली वाले तीनों रास्ते बंद। फरीदाबाद, गुड़गांव, सोनीपत। पर गुर्जरों ने सबसे बड़ा मोर्चा यूपी बार्डरों में खोला। नोएडा-गाजियाबाद को फूल-प्रूफ जाम किया। एक नहीं कई जगह पर लठैत मौजूद थे। कोई कच्चे रास्ते से निकल भी आए। तो दिल्ली में न घुस सके। कम से कम दर्जनभर जगह मोर्चेबंदी की। रास्ते जाम करने का तरीका भी डराने वाला। सड़क के बीचों-बीच टायर जला दिए। किसकी हिम्मत, जो आगे बढ़ सके। देश को साल भर पहले जलती हुई बसें याद आ गई। पर सिर्फ सड़कें नहीं। रेलमार्ग भी जाम हुए। लालूयादव को 18 ट्रेनें तो रद्द करनी पड़ी। कई ट्रेनें बीच रास्ते में रोकनी पड़ीं। ऐसे हुआ एनसीआर का रास्ता रोको सफल। कोई पैंतीस हजार पुलिस वाले लगे। तब जाकर हिंसा से बची दिल्ली। आंदोलन की समर्थक कांग्रेस की तो घिग्गी बंध गई। पर सबसे ज्यादा घिग्गी तो मायावती की बंधी। जो राजस्थान में आंदोलन का समर्थन कर आई थी। पर आंदोलन की आंच यूपी में फैली। तो मायावती के तेवर बदल गए। बोली- 'केंद्र और राज्य मिल-बैठकर हल निकालें। कोई बीच का रास्ता निकाला जाए। वरना दूसरे राज्यों में फैल जाएगी लॉ एंड आर्डर की समस्या।' यही बात तो अपनी वसुंधरा कह रही थी। जब उनने पीएम से गुर्जर आबादी वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों की मीटिंग बुलाने की मांग की। अब यही बात मायावती ने भी कही। भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी वक्त रहते यही बात कहनी चाहिए। वरना चौटाला की राजनीतिक गोटियां हरियाणा में भी बिछ चुकी। पर बात आंदोलन के हिंसक होने की। जिसका डर अब पड़ोसी मुख्यमंत्रियों को सताने लगा। कांग्रेस वक्त रहते गुर्जरों को गांधीगिरी की सीख देती। तो आंदोलन का यह रूप न होता। पर राजनीति है कि आम आदमी को जीने नहीं देती। यों भी गुर्जर गांधीगिरी अपनाएं। तो मकसद में जल्द सफलता मिलेगी। आखिर कांग्रेस नहीं मानती- क्रांतिकारियों ने आजादी दिलाई। कांग्रेस तो कहती है- आजादी गांधी ने दिलाई। सो अपन को लगता था- कांग्रेस गांधीवादी आंदोलनों का ही समर्थन करेगी। पर अपन बात कर रहे थे मायावती की। उनने गुर्जरों को गांधीगिरी की सीख दी। यूपी के गुर्जरों से बोली- 'गुर्जरों के आंदोलन को शांतिपूर्वक समर्थन दें।'

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