यों कहावत तो है- जख्मी शेर ज्यादा हमलावर हो जाता है। पर अपन दुविधा में। शिवराज पाटिल को शेर कहें कैसे? पर चारों तरफ से घिरे पाटिल अब ज्यादा हमलावर। सो बांग्लादेशियों के मुद्दे पर बेनकाब हुए पाटिल अब गुर्जरों के मुद्दे पर हमलावर हों। तो अपन को हैरानी नहीं होगी। बांग्लादेशियों के मुद्दे पर उनने वसुंधरा से खार खा ली। सो अब वसुंधरा केंद्र से नए हमले का इंतजार करें। जब तक पाटिल-वसुंधरा का नया वाकयुध्द हो। तब तक अपन बात करें पाटिल के अफजल वाले बयान की। जिस पर देश में बवाल मचा। पर पाटिल बचाव में नहीं उतरे।
अलबत्ता एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में ऐसे हमलावर दिखे। जैसे अपन ने पहले कभी नहीं देखे। जलेबीनुमा जवाबों की बजाए खुल्लमखुल्ला अफजल का बचाव किया। अब यह कांग्रेस की घोषित नीति। कांग्रेस को स्पष्टीकरण का दो दिन मौका मिला। पर कांग्रेस पाटिल पर हमलावर नहीं हुई। पाटिल को दस जनपथ से डांट भी नहीं पड़ी। ऐसा हुआ होता। तो चैनल पर दिए इंटरव्यू में वह पाकिस्तान के गृहमंत्री न दिखते। जैसा अपन ने शुक्रवार को लिखा था। शुक्रवार को ही बालठाकरे ने भी 'सामना' में लिखा- 'पाटिल भारत के गृहमंत्री की तरह नहीं, पाकिस्तान के गृहमंत्री की तरह बात कर रहे हैं।' कांग्रेस को अभी और बवाल का इंतजार। ज्यादा बवाल हुआ। तभी पाटिल की खाट खड़ी होगी। फिलहाल तो तेल देखो, तेल की धार देखो वाली नीति। गुरुवार को वीरप्पा मोइली टिप्पणीं से बचे। तो शुक्रवार को अभिषेक मनु सिंघवी। खबरचियों के सवालों से घिरे। तो बोले- 'शिवराज पाटिल ने अपना स्पष्टीकरण दे दिया। कांग्रेस को और कुछ नहीं कहना।' जब सवाल हुआ- 'पाटिल ने अपने स्पष्टीकरण में भी वही दोहराया। जो लातूर में कहा था।' तो सिंघवी बोले- 'नहीं, मुझे कुछ नहीं कहना। कुछ पूछना है तो पाटिल से ही पूछो।' बीजेपी-शिवसेना तो हमलावर होनी ही थी। सो कांग्रेस को ज्यादा फिक्र नहीं। पर अपन बता दें- पाटिल की इस थ्योरी से कांग्रेस की नई-नई प्रेमिका सपा भी खफा। नई प्रेमिका की बात चली। तो पुरानी प्रेमिका से रिश्तों में आई खटास बताते चलें। अपन बात कर रहे हैं वामपंथियों की। जिनने वादा किया था- 'एटमी करार पर अपनी नीति 23 मई को बनाएंगे।' सो शुक्रवार को लेफ्टियों की मीटिंग में एटमी करार पर गौर हुआ। एटमी करार की बात बाद में। पहले यूपीए सरकार की जमकर हुई ऐसी-तैसी की बात। इससे अपन रिश्तों में कड़वाहट का अंदाज लगा लें। आठ पेजी बयान में कैसे खाल उधेड़ी गई। जरा नमूना देखिए- 'महंगाई पर काबू पाने में फेल रही सरकार। किसानों पर सरकार अभी भी मन से काम नहीं कर रही। योजना आयोग सुपर कैबिनेट बना बैठा है। सरकार की नीति विदेशी यूनिवर्सिटी। कृषि भूमि पर विदेशियों के बाजार। दुकानदारों की रोजी-रोटी पर विदेशी वालमार्ट। इसराइल से हथियारों की अंधाधुंध खरीद। डब्ल्यूटीओ का भारत पर फंदा।' पर असली बात एटमी करार की। सो लेफ्ट ने बताया- 'सरकार हमें बता रही है- देश में यूरेनियम की कमी। पर यह कमी साजिश के तहत पैदा की गई। पिछले दो साल एटोमिक एनर्जी डिपार्टमेंट का बजट क्यों घटाया। यों भी बकौल न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन-यूरेनियम की कमी टेंपंरेरी।' लेफ्ट ने साफ बता दिया- 'मनमोहन ने अमेरिका से करार के लिए देश में यूरेनियम की कमी पैदा की।' अपन एटमी करार की भविष्यवाणी नहीं करते। पर अब लेफ्ट का मुद्दा करार से ज्यादा महंगाई होगा। शुक्रवार को कांग्रेस भी मान गई- 'महंगाई अभी और बढ़ेगी।' यों भी मुद्रास्फीति का मौजूदा आंकड़ा झूठ का पुलिंदा। असली मुद्रास्फीति और सरकारी आंकड़ों में करीब डेढ क़ा फर्क। पंद्रह मार्च का सरकारी आंकड़ा था- '6.68 फीसदी। पर अब असली आंकड़ा जारी हुआ- 8.02 फीसदी।' तो मौजूदा 7.82 को 9.16 मानकर चलिए। अब आज नहीं तो कल। पेट्रोल की कीमतें बढ़ेंगी। तब निकलेगा अपना तेल। यह अभिषेक मनु सिंघवी ने बिना लाग लपेट बता दिया। कहा- 'देश तैयार रहे।'
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