जब बाड ही खेत को खाने लगे। तो खेत का खुदा ही रखवाला। गृहमंत्री शिवराज पाटिल पर यह कहावत एकदम फिट। देश को ऐसा गृहमंत्री न पहले कभी मिला। न आगे कभी मिलना। सोनिया गांधी को ऐसे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर फख्र। जिनका न कोई राजनीतिक आधार। न जमीनी आधार। अपन तो पाटिल के बयान पर हैरान हुए। जब वह वसुंधरा राजे पर भड़कते हुए बोले- 'यह राजशाही नहीं। लोकतंत्र है।' जी हां, इसीलिए लातूर में हारकर वह देश के गृहमंत्री हो गए। इसीलिए दक्षिण दिल्ली में हारकर मनमोहन देश के पीएम हो गए। इसी लोकतंत्र की बात कर रहे हैं पाटिल। वसुंधरा को बता रहे हैं- 'यह राजशाही नहीं।' जो जनता के वोट से जीतकर सीएम बनी। जिसे किसी सोनिया ने नोमिनेट नहीं किया।
अपन वसुंधरा राजे के वकील नहीं। जैसे शिवराज पाटिल पाकिस्तानी और बांग्लादेशियों के वकील। पाटिल बांग्लादेशियों को कैंपों में रखने के सर्कुलर से मुकरे। तो अपन को लगा- 'सर्कुलर रूटीन में गया होगा। पाटिल के ध्यान में नहीं होगा।' पर अपन को हैरानी तब हुई। जब चौबीस जनवरी 2007 और पच्चीस अप्रेल 2007 की मीटिंगों का रिकार्ड छप गया। जिसमें केंद्र सरकार ने कहा था- 'राज्यों को घुसपैठियों के लिए कैंप खोलने चाहिए।' तब भी शिवराज पाटिल अपने झूठ पर अड़े रहे। पाटिल ने यह भी नहीं सोचा- पहले अपना रिकार्ड तो देख लें। दिल्ली में ऐसे कैंप खुद कांग्रेस सरकार चला रही है। अपन को हैरानी तो गवर्नर के बयान पर भी। गवर्नर राज्यों के संवैधानिक मुखिया। अपने संविधान में घुसपैठियों को शरण की बात कहीं नहीं कही गई। अलबत्ता घुसपैठियों को बाहर निकालने का फारनर्स एक्ट मौजूद। सुप्रीम कोर्ट बांग्लादेशियों को निकालने का फरमान सुना चुकी। गवर्नर संविधान, कानून, सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी नहीं कर सकते। घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई को सांप्रदायिकता कहना देश विरोधी। केंद्र सरकार की कथनी और करनी में कितना फर्क। सरकार कहती है- 'घुसपैठियों की शिनाख्त कर वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू की जाए।' गृहमंत्री शिवराज पाटिल कहते हैं- 'वसुंधरा राजे बेवजह बेचारे गरीब बांग्लादेशियों के पीछे हाथ धोकर पड़ गई। जयपुर के बम धमाकों से घुसपैठियों के मुद्दे का क्या ताल्लुक। वसुंधरा को जांच पर ध्यान देना चाहिए। बांग्लादेशियों से राजनीति नहीं करनी चाहिए।' क्या आपको हैरानी नहीं हुई? यह बयान भारत नाम के देश के गृहमंत्री का है। बांग्लादेश के गृहमंत्री का नहीं। बांग्लादेशियों की तरफदारी करने वाले माकपाई हनान मोलाह की बात पर अपन बुरा नहीं मानते। बुध्ददेव भट्टाचार्य से पहले सारे माकपाई बांग्लादेशियों के तरफदार थे। हनान मोलाह भी उन्हीं में। वह बोले- 'बांग्लादेशियों के नाम पर बांग्लाभाषियों पर निशाना साधा जा रहा है। वसुंधरा देश की एकता तोड़ रही हैं।' उनसे अपन को ऐसे ही बयान की उम्मीद थी। पर शिवराज पाटिल से कतई नहीं। जो बोले- 'सारे बांग्लादेशी घुसपैठिए नहीं।' शिवराज पाटिल को पता न हो। तो अपन बता दें- यह राजीव गांधी ने तय किया था- 'पच्चीस मार्च 1971 के बाद आए सारे घुसपैठिए।' बुधवार को लातूर में बोले- 'अफजल गुरु... एक तरफ आप कह रहे हैं- सरबजीत की फांसी माफ की जाए। दूसरी तरफ आप मांग कर रहे हैं- अफजल गुरु को फांसी दी जाए।' अपन को लगा- पाटिल दिल्ली आकर पलटेंगे। आखिर भारत का गृहमंत्री ऐसा बयान कैसे दे सकता है। पर पूरा यूपीए संसद पर हमले की साजिश रचने वाले अफजल गुरु की पीठ पर। पूरा यूपीए बांग्लादेशी घुसपैठियों की पीठ पर। सो दिल्ली में पत्ता भी नहीं हिला। तो पाटिल क्यों पलटते। अलबत्ता वह तो दिल्ली आकर बोले- 'अगर हम सरबजीत के मामले में नरम रुख चाहते हैं। तो हमें भी अफजल के मामले में नरम रुख अपनाना होगा।' जी नहीं, यह पाकिस्तान के गृहमंत्री का बयान नहीं। अपने गृहमंत्री शिवराज पाटिल का बयान। पाटिल को यह भी नहीं पता- सरबजीत की पहचान गलत। अफजल गुरु संसद पर हमले का षड़यंत्रकारी।
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