तुम्हारी कमीज पर मेरी कमीज से ज्यादा धब्बे

Publsihed: 19.May.2008, 20:41

जयपुर के धमाकों ने राजनीति तेज कर दी। कांग्रेस-बीजेपी में एक-दूजे को कटघरे में खड़ा करने की होड़। आतंकवाद पर कांग्रेस का रिकार्ड अच्छा नहीं। तो उसने भाजपा का रिकार्ड याद कराने का तरीका अपनाया। कांग्रेस अपने रिकार्ड पर बात करने को तैयार नहीं। अरुण जेटली ने इतवार को मनमोहन सिंह की बखिया उधेड़ी। तो कांग्रेस जल-भुन गई। जेटली की बाकी बातें बाद में। पहले फेडरल एजेंसी की बात। अपन ने यह बात पंद्रह मई को ही लिख दी थी। जब अपन ने लिखा- 'पोटा हटाकर फेडरल एजेंसी की वकालत।' तो अपन ने उस दिन खुलासा किया- 'फेडरल एजेंसी का आइडिया छह साल पहले आडवाणी का था। तब कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने विरोध किया।' यही बात पांच दिन बाद जेटली ने याद कराई।

तो जयंती नटराजन बोली- 'यह तो पीएम का आइडिया है। इस पर सभी दलों से विचार होगा।' जयंती यह भी भूल गई। पीएम से पहले तो चौदह मई को फेडरल एजेंसी की मांग कांग्रेस ने की थी। पर बात जेटली के हमलों की। जेटली ने तीन बातें गिनाई- 'आपने पोटा रद्द किया। अफजल की फांसी रोकी। राजस्थान-गुजरात-एमपी के आतंक विरोधी बिलों पर कुंडली मारी।' ये तीनो आतंकवाद पर मनमोहन के नरम रुख के सबूत। कांग्रेस इन सबूतों से तिलमिला गई। कुछ नहीं सूझा। तो जयंती बोली- 'पोटा के बावजूद संसद पर हमला हुआ।' पर कांग्रेस को कौन समझाए। पोटा था, तभी तो इतनी जल्दी फैसला हुआ। अफजल को फांसी की सजा हुई। जिसे यूपीए सरकार रोककर बैठी है। अफजल की फांसी पर कांग्रेस की इतनी थू-थू हुई। पर कांग्रेस टस से मस नहीं। कर्नाटक में बीजेपी ने इश्तिहार देकर हमला किया। तो कांग्रेस चुनाव आयोग से बोली- 'अफजल का मुद्दा उठाकर बीजेपी सांप्रदायिकता फैला रही है।' इसे अपन चोर की दाढी में तिनका न कहें। तो आप बताओ क्या कहें। अब तक तो मुस्लिम तुष्टिकरण था। यह तो आतंकियों के तुष्टिकरण का भी सबूत। बात अखबारी इश्तिहार की चली। तो बीजेपी की चार साल बाद नींद खुली। अपन तो यहां कई बार यह मुद्दा उठा चुके। सोनिया के पास कोई सरकारी पद नहीं। पर सरकारी इश्तिहारों पर सोनिया के फोटू। सोमवार को रविशंकर प्रसाद बोले- 'सरकारी खर्चे पर सोनिया का प्रचार बंद किया जाए। सालगिरह और चुनावी साल के इश्तिहारों में ऐसा हुआ। तो बीजेपी अदालत जाएगी। चुनाव आयोग का दरवाजा भी खटखटाएगी।' जयंती के सिर पर तो सत्ता का नशा सवार था। वह बोली- 'सरकारी इश्तिहारों पर सोनिया की फोटू छपेगी। बीजेपी को जो करना हो, करे।' जयंती भूल गई। इंदिरा ने भी इमरजेंसी में सत्ता का ऐसा ही दुरुपयोग किया। पर बात आतंकियों की मिजाजपुर्सी की। अपनी वसुंधरा ने नया खुलासा किया। बोली- 'सालभर पहले मैंने केंद्र सरकार को बांग्लादेशियों की समस्या लिखी। तो केंद्र ने जवाब दिया- सभी को इकट्ठा कर एक रिंफ्यूजी कैंप में रखो।' तो अपन बताते जाएं- सुप्रीम कोर्ट बांग्लादेशियों को निकालने का फैसला सुना चुकी। पर बकौल वसुंधरा- 'यूपीए सरकार बाहर निकालने को तैयार नहीं।' तो यह आतंकियों की मिजाजपुर्सी का नया सबूत। अपनी जयंती नटराजन के तो हाथ-पांव फूल गए। बोली- 'मुझे खतो-ख्ताबत की कोई जानकारी नहीं।' पर अपन बात कर रहे थे जेटली के हमलों की। जिस पर सोमवार को राहुल बाबा भी बोले- 'आप तो तीन आतंकी कंधार छोड़ आए थे।' आडवाणी ने हाथों-हाथ जवाब दिया। अपन ने तो तेरह मई को ही लिखा था- 'आडवाणी भूले, या जसवंत या भूली कांग्रेस।' अपन हैरान- यह जवाब इतने दिन पहले क्यों नहीं दिया। आडवाणी बोले- 'कंधार के वक्त हमने ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई थी। कांग्रेस की तरफ से मनमोहन सिंह आए। मीटिंग में फैसला हुआ- यात्रियों को मुक्त कराने के लिए जो संभव हो किया जाए।' आडवाणी ने कांग्रेस को याद कराया। तो कांग्रेस भूलने का नाटक करने लगी। जयंती बोली- 'आडवाणी को कुछ याद नहीं। पहले आडवाणी-जसवंत तो फैसला कर लें। जनता आडवाणी पर भरोसा नहीं करेगी।' पर बात भरोसे की नहीं। जयंती जी, बात रिकार्ड की। आप ही बता दीजिए- मनमोहन ने उस ऑल पार्टी मीटिंग में क्या कहा था। या दूसरों की कमीज पर धब्बे गिनाना ही काफी।

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