संसद के भीतर बालू पर टकराव, बाहर करार पर

Publsihed: 28.Apr.2008, 20:45

अपन को शरद पवार बता रहे थे- 'सत्र समय पर खत्म होगा। बीएसी में आठ तक का एजेंडा तय।' पर बगल में खड़े अबनी रॉय ने टोका। बोले- 'सरकार की तैयारी तीस को निपटाने की।' वैसे एजेंडे पर महिला आरक्षण जैसी कोई बड़ी बात नहीं। पर सरकार के लिए आठ तक लेफ्ट का विरोध झेलना मुश्किल। छह को एटमी करार पर यूपीए- लेफ्ट मीटिंग। जब दिल्ली में मीटिंग हो रही होगी। तब आईएईए से सेफगार्ड पर डील हो रही होगी। बकौल अरुण शौरी आईएईए से डील का ड्रॉफ्ट तैयार। आठ मई तक मुहर लग जाएगी। सो लेफ्ट को वक्त से पहले सत्रावसान कतई कबूल नहीं। यों सोमनाथ चटर्जी से पूछोगे। तो वह चाहेंगे- कल का होता आज हो। कोई दिन ऐसा नहीं जाता। जब दादा गुस्से में आपा न खोएं।

सोमवार को टी.आर. बालू मुद्दे पर हंगामे के दौरान एक मिनट बिजली गुल हुई। तो दादा पहले बोले- 'आपके हल्ले से बिजली भी चली गई।' फिर बोले- 'मैंने बिजली बंद कराई।' याद है अपन ने पच्चीस-छब्बीस अप्रेल को बालू-मनमोहन के राग-द्वेष की पोल खोली थी। सत्ताईस को आडवाणी ने बालू-मनमोहन को घेरा। तो अठाईस को पार्टी दोनों सदनों में एक्टिव हो गई। नारे लगे, वाकआउट हुआ। बालू को बर्खास्त करने के नारे लगे। तो सिफारिशी चिट्ठियां लिखने वाले पीएम के खिलाफ नारे लगे- 'शर्म करो, शर्म करो।' राज्यसभा में तो वायलार रवि ने वादा कर दिया- 'सरकार जवाब देगी।' अपन को मैत्रेय बता रहे थे- 'मंगलवार को फिर मुद्दा उठाएंगे। जवाब किसी ओर से नहीं। प्रधानमंत्री से चाहिए।' टी.आर. बालू ने तो भरी संसद में कह दिया- 'अपने परिवार की कंपनियों को गैस दिलाने की कोशिश करना गलत नहीं।' जसवंत सिंह ने पूछा- 'आठ चिट्ठियां लिखवाने वाले पीएम भी क्या यही समझते हैं- इसमें कुछ गलत नहीं।' जसवंत सिंह पीएमओ पर जमकर बरसे। पर भ्रष्टाचार अब उतना बड़ा मुद्दा नहीं बनता। यह नैतिकता की गिरावट का सबूत। लेफ्ट के लिए तो यह कोई मुद्दा नहीं। लेफ्ट चुप्पी साधकर बैठा रहा। यह मुद्दा खत्म हुआ। तो सीताराम येचुरी पीएमओ पर बरसे। पर उनका मुद्दा था- 'लेफ्ट-पीएम मुलाकात के बाद मंहगाई पर संजय बारू का बयान।' जिसमें उनने पीएम के हवाले से कहा- 'राजनीतिक दल मंहगाई पर राजनीति से बाज आएं।' येचुरी का गुस्सा सातवें आसमां पर था। सिर्फ मनमोहन पर नहीं। सोनिया पर भी। जिनने बंगाल में जाकर कहा- 'यहां का लॉ एंड आर्डर ठीक नहीं।' येचुरी संसद के अंदर मनमोहन पर बरसे। तो बाहर सोनिया पर। बोले- 'कांग्रेस का नक्सलियों और सांप्रदायिक ताकतों से गठजोड़।' यानि उल्टी गिनती शुरू। येचुरी ने भले ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जसवंत का साथ नहीं दिया। पर जसवंत ने येचुरी का साथ दिया। एक और मुद्दे पर दोनों की राय एक। भले ही बृजेश मिश्र एटमी करार पर एनडीए का साथ छोड़ गए। पर जसवंत, शौरी, यशवंत ने साफ किया- 'बीजेपी को मौजूदा करार कतई कबूल नहीं।' यों बीजेपी को करार पर वैसा एतराज नहीं, जैसा लेफ्ट को। पर मौजूदा ऐटमी करार न हो। इस पर दोनों की राय एक सी। जहां तक बात बृजेश मिश्र की। तो वह बीजेपी को बीच मझधार में छोड़ मनमोहन के साथ हो गए। जसवंत सिंह ने फब्ती कसते कहा- 'वह रिटायर्ड आईएफएस ऑफिसर। अमेरिका में भी तैनात रहे।' उनने कहा- 'सुरक्षा सलाहकार के तौर पर उन्होंने अच्छा काम किया। पर पिछली बातों से मौजूदा बातें प्रभावित नहीं होती।' शौरी का कटाक्ष कुछ ज्यादा तीखा रहा। बोले- 'बृजेश उन सब मीटिंगों में मौजूद थे। जिनमें एनडीए ने एटमी करार के विरोध की राय बनाई। बुश-मनमोहन लॉबी के लोग हमें कई दिनों से मिल रहे थे। बृजेश मिश्र अब उनकी दलीलें दे रहे हैं।' बात करार की कर रहे हैं। तो बता दें- आईएईए से सेफगार्ड डील मई के पहले पखवाड़े में। इसके बाद मनमोहन का काम खत्म। एनएसजी को राजी करने का काम बुश का। एनएसजी की मीटिंग उन्नीस मई को।

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