टी.आर. बालू ने तो बिना राग-द्वेष के मंत्री पद की जिम्मेदारी निभाने की शपथ का उल्लंघन किया ही है। टी.आर. बालू के परिवार की बंद पड़ी और फर्जी कंपनियों को कौड़ियों के भाव सीएनजी दिलवाने में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दिलचस्पी से सार्वजनिक जीवन में शुचिता का सवाल खड़ा होता है।
''मैं टी.आर. बालू ईश्वर के नाम पर शपथ लेता हूं कि कानून द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रध्दा व निष्ठा बनाए रखूंगा। मैं भारत की एकता और अखंडता अक्षुण बनाए रखूंगा। मैं केंद्र में मंत्री के नाते अपने अंत:करण और पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों का निवर्हन करूंगा। संविधान और कानून के मुताबिक बिना किसी डर, पक्षपात, राग या द्वेष सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करूंगा।'' यह शपथ टी.आर. बालू ने केंद्र में मंत्री बनते समय ली थी। यही शपथ बालू से ठीक पहले मनमोहन सिंह ने भी ली थी। लेकिन पिछले चार साल से टी.आर. बालू लगातार अपनी पारिवारिक कंपनियों को कोड़ियों के भाव सीएनजी उपलब्ध करवाने की कोशिश में जुटे हुए हैं और केंद्र सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं।
टी.आर. बालू ने 24 अप्रेल को राज्यसभा में कबूल किया है कि उन्होंने अपने बेटों की कंपनियों को सीएनजी दिलवाने के लिए पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा से सिफारिश की है। राष्ट्रपति भवन में मंत्री पद की शपथ लेते समय देश से किए गए वायदे को पूरी तरह भूलकर बालू इस सिफारिश में कुछ गलत नहीं मान रहे।
इस घटना से अंदाज लग सकता है कि सांसदों और विधायकों में मंत्री पद हासिल करने के लिए होड़ क्यों लगती है। मंत्री पद हासिल करने के बाद अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए वे अपने और अपने परिवार के लिए क्या-क्या हासिल करते होंगे। टी.आर. बालू ने राज्यसभा में खुद को निरीह और वाजपेयी सरकार का सताया हुआ बताकर न्याय के लिए मुरली देवड़ा से गुहार लगाने की बात कही है। उनका कहना है कि द्रमुक क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए छोड़ गई थी, इसलिए वाजपेयी सरकार ने उनकी पारिवारिक कंपनियों को अलाट सीएनजी रद्द कर दी थी। जबकि सच यह नहीं है, उन्होंने राज्यसभा में तथ्य तोड़-मरोड़कर पेश किए हैं और संसद को भी गुमराह किया है। सच यह है कि टी.आर. बालू के बेटे सेल्वा कुमार की कंपनी किंग पावर कारपोरेशन जमीन पर है ही नहीं। दूसरे बेटे राजकुमार की कंपनी किंग कैमिकल्स को बीमारू घोषित किया जा चुका है। बालू यूपीए सरकार पर इन्हीं दो कंपनियों को सीएनजी अलाट करने का दबाव बना रहे थे। सीएनजी की बाजार में कीमत छह से सोलह डालर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट है। जबकि टी.आर. बालू चाहते हैं कि उनके बेटों की इन दोनों फर्जी कंपनियों को दो डालर से भी कम कीमत पर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल इकाई सीएनजी सप्लाई की जाए। असल में वाजपेयी सरकार के समय किंग पावर कारपोरेशन को दस हजार स्टेंडर्ड क्यूबिक मीटर प्रतिदिन और किंग कैमिकल्स को पचास हजार स्टेंडर्ड क्यूबिक मीटर प्रतिदिन सप्लाई का फैसला हुआ था। लेकिन एक साल के लिए सीएनजी सप्लाई का समझौता सिर्फ किंग कैमिकल्स के साथ ही हुआ। किंग कैमिकल्स को किसी कंपनी के साथ सीएनजी के ट्रांसपोर्टेशन का समझौता करना था, तभी सीएनजी सप्लाई शुरू होती। किंग कैमिकल्स को बार-बार नोटिस दिए गए लेकिन वह ट्रांसपोर्टेशन का समझौता नहीं कर पाई। जब समय निकल गया तो टी.आर. बालू ने समय बढ़ाने की मांग की, जिसे वाजपेयी सरकार ने कबूल नहीं किया। इस बीच मामला मद्रास हाईकोर्ट में चला गया, हाईकोर्ट ने बालू के पक्ष में फैसला किया। उस इलाके में सीएनजी हासिल करने वाली बाकी कंपनियों को लगा कि उनके कोटे का सीएनजी काटकर टी.आर. बालू की कंपनी को मिल जाएगा। इसलिए वे हाईकोर्ट की बड़ी बेंच के सामने पेश हुए। बड़ी बेंच ने फैसला किया कि इस मामले को पेट्रोलियम मंत्रालय सुलझाए। कोर्ट के इस फैसले के बाद से टी.आर. बालू केंद्रीय सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि उनके बेटों की कंपनियों को सस्ते रेट पर सीएनजी सप्लाई की जाए।
वाजपेयी सरकार के समय सांसदों के परिजनों और भाजपा वर्करों को पेट्रोल पंप और गैस एजेंसियों के आवंटन का मामला उजागर हुआ था तो सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी लगातार प्रहार कर रही थी, मामला अभी कोर्ट में चल ही रहा था कि वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में अलाट किए गए सभी पेट्रोल पंप और गैस एजेंसियां रद्द कर दी थी। यह होती है लोक-लाज। लेकिन मनमोहन सरकार के मंत्री टी.आर. बालू यह कहने में कोई शर्म महसूस नहीं करते कि उन्होंने अपने परिजनों की कंपनियों को सीएनजी अलाट करवाने की कोशिशों में कोई गलती की। अपने परिजनों और पार्टी परिजनों को रसोई गैस और पेट्रोल पंपों के लाइसेंस देने के मामले में नरसिम्हा राव सरकार के पेट्रोलियम मंत्री सतीश शर्मा दोषी करार दिए जा चुके हैं। अपने सगे संबंधियों और कांग्रेस पार्टी के सगे मंत्रियों को डीडीए के फ्लैट और जमीन बिना बारी के अलाट करने के मामले में राव सरकार की शहरी विकास मंत्री शीला कौल को अदालत दोषी करार दे चुकी है। एक करोड़ अड़सठ लाख रुपए के टेलीकॉम घोटाले के मामले में नरसिम्हा राव सरकार के संचार मंत्री सुखराम को अदालत तीन साल कैद की सजा सुना चुकी है। नरसिंह राव के बेटे प्रभाकर राव और राव सरकार के फर्टिलाइजर मंत्री राम लखन यादव के बेटे की साझा फर्म की ओर से एक सौ तेतीस करोड़ रुपए के यूरिया घोटाले का अभी तक कोई ओर-छोर नहीं मिला। यह अच्छी बात है कि कांग्रेस ने टी.आर. बालू का बचाव करने में परहेज किया है और कांग्रेस की प्रवक्ता जयंती नटराजन ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी का रिकार्ड सार्वजनिक जीवन में शुचिता का है।
सार्वजनिक जीवन में कांग्रेस पार्टी की शुचिता के रिकार्ड पर नजर डालें तो आजादी के बाद शुरू-शुरू में शुचिता के कुछ बेहतरीन उदाहरण जरूर मिलते हैं। टी.आर. बालू से मिलता-जुलता ही मामला पंजाब में हुआ था। जब विपक्ष ने कांग्रेसी मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो पर अपने परिजनों को फायदा पहुंचाने के गंभीर आरोप लगाए थे। जवाहर लाल नेहरू ने जांच के लिए दास आयोग का गठन किया। आरोप सही साबित हुए और प्रताप सिंह कैरो को इस्तीफा देना पड़ा। देश के पहले वित्तमंत्री आर.के. षणमुखम शेट्टी, उद्योग मंत्री केशव देव मालवीय, संचार मंत्री खुर्शीद लाल, विंध्याचल प्रदेश के उद्योग मंत्री राजशिव बहादुर रिश्वतखोरी में हटा दिए गए थे। लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने करोड़ों का जीप घोटाला करने वाले ब्रिटेन में भारत के हाई कमिश्नर वी. के. कृष्ण मेनन को अपने मंत्रिमंडल में मंत्री बनाकर राजनीतिक शुचिता पर पहला धब्बा लगाया था। मुंदरा घोटाले के सरगना टी. टी. कृष्णामचारी को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, उन्हें बाईस महीने कैद की सजा हुई, लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें क्लीन चिट देकर दुबारा मंत्री बना दिया। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के कार्यकाल में हुए बेइंतहा घोटालों के बावजूद कांग्रेस सार्वजनिक जीवन में शुचिता का दावा करने का पूरा हक रखती है, लेकिन कांग्रेस को इस बात का जवाब देना चाहिए कि टी.आर. बालू के बेटों की दोनों बंद कंपनियों को कौड़ियों के भाव सीएनजी उपलब्ध करवाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पेट्रोलियम मंत्रालय को एक-एक कर आठ चिट्ठिया क्यों लिखीं। टी.आर. बालू खुद 28 जून 2006 को पेट्रोलियम मंत्रालय जाकर मंत्री मुरली देवड़ा से मिले थे। यह मुलाकात पहले से तय की गई थी और बालू को फायदा पहुंचाने का रास्ता निकालने के लिए ओएनजीसी और गेल के चेयरमैनों को पेट्रेलियम मंत्री ने पहले से अपने कमरे में बुला रखा था। दोनों चेयरमैन किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं हुए, तो कोई न कोई रास्ता निकालने का दबाव बनाया गया। जब बात नहीं बनी तो टी.आर. बालू ने सीधे प्रधानमंत्री को दखल देने के लिए कहा और 13 नवंबर 2007 से लेकर 4 फरवरी 2008 तक पौने तीन महीनों में प्रधानमंत्री कार्यालय से पेट्रोलियम मंत्रालय को आठ चिट्ठिया लिखी गई। राजनीति के शोर में भले ही यह मामला दब जाएगा, लेकिन इस मामले को दबाकर सार्वजनिक जीवन में राजनीतिक शुचिता का दावा कोई नहीं कर सकता।
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