काफी दुविधा वाला दिन रहा गुरुवार। तीन-तीन बड़ी घटनाएं हुई। सरबजीत की फांसी टलने के आसार बने। परिवार को कोट लखपत जेल में मिलने दिया गया। फांसी माफी की दूसरी अर्जी लग गई। मुर्शरफ ने हाथों-हाथ अर्जी सरकार को भेज दी। दूसरी बड़ी घटना संसद में हुई। जहाँ एनडीए के सांसदों ने अनौखा प्रदर्शन किया। एनडीए सांसदों ने संसद के भीतर संसद का घेराव किया। आडवाणी समेत सभी अपने गले में बैनर टांगे हुए थे। एक बैनर मजेदार लगा। जिसमें महंगाई के लिए कांग्रेस-कम्युनिस्ट जिम्मेदार बताए गए। असलियत तो यही है। आडवाणी बोले-'इससे बड़ा मौका परस्त गठबंधन और क्या होगा। नीतियां नहीं मिलती। विचारधारा नहीं मिलती। फिर भी एनडीए से डरकर गठबंधन।' सो मौजूदा सरकार के पापों के हिस्सेदार लेफ्टिए भी। पापों का घड़ा उनके सिर भी फूटेगा। पाप सिर्फ आम आदमी का खून चूसने वाली महंगाई का नहीं। अलबत्ता भ्रष्टाचार का भी। तीसरी बड़ी घटना का रिश्ता भ्रष्टाचार से।
कुर्सी के लिए क्या-क्या नहीं कर रहे मनमोहन सिंह। गठबंधन के दलों की ब्लैकमेलिंग जमकर जारी। लालू चारा घोटाले को दबाने में सफल रहे। आमदनी से ज्यादा संपत्ति का मामला भी रफा-दफा। बाकी सातों दागी मंत्रियों का भी यही हाल। इरादा तो मायावती को भी ताज घोटाले से बचाकर साथ लाने का था। पर सुप्रीम कोर्ट की टेढ़ी नजर से बच नहीं पाई यूपीए सरकार। सो आजकल मायावती का पारा सातवें आसमान पर। देशभर में कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालने को उतारू। तो सोनिया ने मायावती को यूपी में बांधे रखने की जिम्मेदारी राहुल बाबा को सौंप दी। पर इसका मायावती पर रत्तीभर असर नहीं। राहुल बाबा अब खुद को भावी पीएम बनाने पर उतारू। सो उनने अपना ऑपरेशन यूपी से बाहर भी शुरु कर दिया। अपन ने कल राहुल के जिस वादे का जिक्र किया। उस पर कांग्रेस भूलभुलैया में फंसी दिखी। राहुल विधवा की बेटी को शादी पर बीस हजार का वादा कर भूल गए थे। पर एमपी के सीएम ने बीस हजार भेज दिया। खबरें एमपी-यूपी के अखबारों में छपी। पर राजनीति और बेशर्मी का चौली दामन का साथ। सो गुरुवार को मनीष तिवारी बोले- 'यूपी की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने विधवा की मदद की। तो मध्यप्रदेश के भाजपाई सीएम घबरा गए।' इसे कहते हैं दिल्ली में बैठकर हवा में तीर चलाना। पर अपन बात कर रहे थे यूपीए में फैले बांटकर खाने के भ्रष्टाचार की। तो ताजा किस्सा टी आर बालू का। उनने अपनी पारिवारिक कंपनियों के लिए मनमोहन को जमकर ब्लैकमेल किया। मनमोहन सिंह ब्लैकमेल हुए। इसका सबूत पीएमओ से भेजी गई सिफारिशी चिट्ठियां। बालू के बेटों की कंपनियों को सस्ते में गैस के लिए लिखी गई चिट्ठियां। एक आध नहीं अलबत्ता आठ चिट्ठियां लिखी गई। क्या खुद पीएम के इशारे बिना चिट्ठियां लिखी जा सकती हैं। बालू ने पहले पेट्रोलियम मंत्री से गुहार लगाई। फिर सीधे पीएम से बात की। पेट्रोलियम मंत्री से सिफारिश की बात तो बालू ने भरी संसद में मानी। यह घटना बुधवार की। पर गुरुवार को जो हुआ। वह तो लोकतंत्र पर सवालिया निशान लगा गया। पीएम राज्यसभा में मौजूद थे। जयललिता के सांसद मैत्रेय ने पीएम को कटघरे में खड़ा किया। तो गैरराजनीतिक चेयरमेन ने मैत्रेय को हाऊस से निकाल बाहर किया। अपन याद करा दें- लेफ्ट ने जिद्द करके बनवाया था गैर राजनीतिक चेयरमेन। मैत्रेय को नियम 255 के तहत दिनभर के लिए निकाला गया। यह नियम इससे पहले 1989 में सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल हुआ। अपन ने पिछले पंद्रह सालों में इससे कहीं बड़े हंगामे देखे। पर किसी चेयरमेन ने इस नियम का इस्तेमाल नहीं किया। अपन को तो तभी खटका था। दोपहर बाद सदन फिर बैठा। तो सारा विपक्ष वैल में था। राज्यसभा के इतिहास में पहली बार हुआ। जब चेयरमेन के खिलाफ विपक्ष ने आस्तिने चढ़ाई। चेयरमेन अपने चैम्बर में बैठे रहे। पीजे कुरियन विरोध नहीं रोक पाए। सदन में नारे लगे। कुरियन को कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। मैत्रेय के हंगामें पर भी कार्यवाही स्थगित कर विवाद से बच सकते थे चेयरमेन हामिद अंसारी।
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