पटना से लेकर दिल्ली तक। बेंगलुरू से लेकर मुंबई तक। बीजेपी में बगावती तेवर दिखने लगे। कर्नाटक में अनंत कुमार के खिलाफ। टिकटों की बंदरबांट पर। बिहार में सुशील मोदी के खिलाफ। चंपुओं को मंत्री बनवाने पर। महाराष्ट्र में बाल आप्टे के खिलाफ। मुंडे विरोधी साजिश पर। तो दिल्ली में आरती मेहरा को फिर से मेयर बनाने पर। यों सब मामलों में राजनाथ सिंह निशाने पर । ऊपर से हवाई नेता विजय गोयल को महासचिव बनाने का फैसला। गोयल के जुगाड़ पर सब हैरत में। गोयल पीएम दफ्तर में राज्यमंत्री बने। तो पार्टी में बवाल मचा था। अमृतसर की वर्किंग कमेटी में हल्ला होता। इससे पहली रात ही वाजपेयी ने गोयल के पर कुतर दिए। तब जाकर बवाल थमा। गोयल के मंत्री बनने पर ही पार्टी में गुस्सा था। कोई कहता- चंपु को बना दिया। तो कोई कहता- सब्जी का झोला उठाने का फायदा मिला।
पर अपन जानते हैं- गोयल को प्रमोद महाजन ने वहां तक पहुंचाया था। अब तो प्रमोद महाजन भी नहीं। फिर कैसे हुआ जुगाड़। ओम माथुर की खाली सीट पर गोयल को महासचिव बना राजनाथ सिंह निशाने पर। अपन को एक बड़े नेता ने कहा-'राजनाथ ने किसी से सलाह नहीं की। ' उनका किसी से मतलब लाल कृष्ण आडवाणी से था। सुनते हैं बिहार में भी निशाने पर राजनाथ। मोदी ने अपने चंपुओं को अपने आप मंत्री नहीं बनवाया। अलबत्ता रातों-रात राजनाथ से लिस्ट बदलवा ली। अब बात बगावत पर आ पहुंची। सोमवार की कोर कमेटी जगह-जगह उठे बवालों पर हुई। कोर कमेटी का फौरी मकसद गोपी नाथ मुंडे का बवाल थामना था। मुंडे कई दिन से सब्र का घूंट पी रहे थे। प्रमोद की हत्या के बाद से देख रहे थे गैरों जैसा व्यवहार। बाल आप्टे - नितिन गड़करी का ब्राह्मण गठजोड़ हुआ। मुंडे को महासचिव बनवाकर महाराष्ट्र से बाहर करने की रणनीति बनी। मुंडे महाराष्ट्र छोड़ने को तैयार नहीं थे। फिर भी महासचिव बनवाकर मुंबई से रुख्सत किया। महाराष्ट्र में मुंडे को कमजोर करने की रणनीति काम करने लगी। और सब कुछ हुआ संघ के नाम पर। बात संघ की चली तो बता दें। शनिवार को गोविंदाचार्य - राम बहादुर राय ने वृंदावन में मीटिंग बुलाई। मीटिंग का मकसद था- स्वदेशी राजनीति की जरुरत। पता है- कौन-कौन पहुंचे। संघ से मदनदास देवी और बजरंग लाल। बीजेपी से संगठन मंत्री रामलाल। कई सांसद और विधायक भी। अपने महेश शर्मा भी मौजूद थे। इतने दिग्गज नेता गोविंदाचार्य के बुलावे पर पहुंचे। कहीं संघ परिवार का भाजपा से मोहभंग तो नहीं होने लगा। तो अपन बात कर रहे थे मुंडे की। मुंडे को कमजोर करने की राजनीति शुरु हुई। तो पहली जंग महाप्रबोधनी ट्रस्ट पर हुई। मुंडे ने बाल आप्टे को मात दे दी। पर वह तो जंग की शुरुआत थी। जो भीतर-भीतर सुलगती रही। ताजा किस्सा मुंबई बीजेपी अध्यक्ष की नियुक्ति का। मधु चव्हाण की नियुक्ति करते वक्त मुंडे को पूछा तक नहीं। पर इससे पहले का किस्सा सुनो। अपने वैंकेया नायडु को राजस्थान का चुनाव प्रभारी बनाया। तो राजनाथ सिंह ने प्रदेश प्रभारी मुंडे से सलाह तक नहीं की। मुंडे स्टेट वर्किंग कमेटी से नदारद रहे। तो आलाकमान की सांस फूली। वैंकेया नायडु ने खुद बात संभाली। पंद्रह अप्रेल को मुंडे के साथ जयपुर पहुंचे। तब जाकर मान मनोव्वल हुई। अब यह मधु चव्हाण का किस्सा। पर विवाद मधु चव्हाण का नहीं। अलबत्ता पार्टी पर बाल आप्टे के तौर तरीकों का। मुंडे ने महासचिव पद से इस्तीफा दिया। तो तैंतालीस में से पैंतीस जिला अध्यक्ष मुंडे के साथ खड़े हो गए। राजनाथ ने दिल्ली बुलाया। तो मुंडे ने इंकार कर दिया। आलाकमान से बात के लिए एकनाथ खड़के-पांडुरंग फुंडका को लगा दिया। एकनाथ विधानसभा में नेता। तो पांडुरंग विधान परिषद में। आखिर लाल कृष्ण आडवाणी को बीच बचाव करना पड़ा। तब जाकर मुंडे दिल्ली पहुंचने को राजी हुए।
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