तीन अगस्त को वन-टू-थ्री का ड्राफ्ट जारी हुआ। तो उसके बाद अपन बार-बार लिखते रहे- लेफ्ट सिर्फ न्यूक-डील पर सरकार नहीं गिराएगा। साथ में आर्थिक मुद्दे भी जोड़ेगा। अब जब एटमी करार ठंडे बस्ते में पड़ गया। तो कांग्रेस खेमे में भले ही मातम। लेफ्ट में किला फतेह होने पर कोई खुशी नहीं। असल में लेफ्ट को अभी भी कांग्रेस की नियत पर शक। सो लेफ्ट ने मंगलवार को जो नए तेवर दिखाए। उनका जिक्र अपन बाद में करेंगे। पहले अमेरिका में छाए मातम की बात कर लें। करार ठंडे बस्ते में पड़ने से बुश बेहद खफा।
रिएक्टर बेचने वाली लॉबी ने कितना पैसा फूंका होगा। इसका अंदाज अपन को इंडिया में बैठकर नहीं लग सकता। बुश की नाराजगी का अंदाज टाम कैसी के बयान से लगाइए। अमेरिकी नुमाइंदे टाम से खबरचियों ने पूछा- 'क्या करार का भोग पड़ चुका?' तो वह बोले- 'यह भारत बताए। उनकी अंदरूनी राजनीति वही जानें।' जाहिरा तौर पर नाइजीरिया में संजय बारू ने सिर्फ इतना कहा- 'पीएम ने बुश को घरेलू राजनीतिक मुश्किलों से वाकिफ करवाया।' पर मनमोहन ने कब तक ठंडे बस्ते में डालने को कहा? या कह दिया- 'करार की भैंस गई पानी में।' यह बारू ने साफ नहीं किया। पर वाशिंगटन में माहौल 24-अकबर रोड से ज्यादा गमगीन। इसका सबूत अपन को उस लंच मीटिंग की रिपोर्टिंग से मिला। बताते जाएं- अमेरिका से दोस्ती के समर्थक अपने सांसदों का एक झुंड इस समय वाशिंगटन में। सो उनके सम्मान में लंच पर मिलन हुआ। लंच मीटिंग में साझा बिजनेस काउंसिल के चीफ रोन सोमेन बोले- 'करार टालना ठीक नहीं।' पर सबसे ज्यादा गुस्सा तो अमेरिकी कांग्रेस के मेंबर गैरी एकरमैन ने दिखाया। जो अमेरिका में भारत के जाने-माने हिमायती। बोले- 'बहुत कुछ दांव में लग चुका। अब पीछे हटना मुनासिब नहीं।' आप इससे अंदाजा लगाइए। इंडिया में ज्यादा मातम, या अमेरिका में। इसी से यह भी अंदाजा लगाइए। हाईड एक्ट की बंदिश वाला वन-टू-थ्री ड्राफ्ट किसके हक में? अपने या अमेरिका के। अपन तो शुरू से कहते रहे- 'इंडिया के हक में कम, अमेरिका के हक में ज्यादा।' अब जब अमेरिकी कपड़े फाड़ने लगे। तो बात साफ हो गई। बात अमेरिका की चल पड़ी। तो वह हैडलैस चिकन वाली बात भी याद करा दें। बीस अगस्त को अपने राजदूत रोनेन सेन ने खबरची एजाज हनीफा से कहा- 'ड्राफ्ट अमेरिकी प्रेसीडेंट ने मंजूर कर लिया। इंडियन केबिनेट ने मंजूर कर लिया। तो आप क्यों हैडलैस चिकन की तरह बवाल खड़ा करते घूम रहे हो।' इंटरव्यू में यशवंत सिन्हा को न लपेटते। तो अपन मान लेते- उनने सिर्फ खबरचियों को अक्ल से पैदल कहा। पर उनने तो उन सबको कहा था। जो करार के खिलाफ। अगले दिन रोनेन सेन ने माफी भी मांगी। पर सोमनाथ दादा ने मामला कमेटी को सौंप दिया। अब दोनों सदनों की कमेटी ने तय किया है- 'रोनेन को तलब किया जाए।' अपन बता दें- रोनेन वन-टू-थ्री ड्राफ्ट के आर्किटेक्ट। सो एक तरफ तो मनमोहन को अपना फुलाया करार का गुब्बारा खुद पंक्चर करना पड़ा। दूसरी तरफ अपने रोनेन सेन की संसदीय कमेटी में तलबी। पर असल बात लेफ्ट के नए तेवरों की। जिनका जिक्र करने का अपन ने ऊपर वादा किया। एटमी करार निपटा। तो मंगलवार को सीपीआई ने महंगाई के खिलाफ मोर्चा खोला। जंतर-मंतर पर रैली में गरजते हुए एबी वर्धन बोले- 'एटमी करार भले ही ठंडे बस्ते में पड़ गया। पर सरकार पर खतरा अभी टला नहीं।' बोले- 'अब महंगाई का मुद्दा। जिसने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया। महंगाई थामने के कदम न उठाए। तो लेफ्ट सरकार को समर्थन पर फिर से विचार करेगा।' यानी खतरा अभी टला नहीं।
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