सच की खोज में निकली एक बेटी

Publsihed: 15.Apr.2008, 20:40

प्रियंका अपने पिता राजीव की हत्या में सजायाफ्ता नलिनी से मिली। यह मुलाकात 19 मार्च को हुई। खुफिया एजेंसियों आईबी-रॉ ने मुलाकात का बंदोबस्त किया। खुफिया मुलाकात का राज नहीं खुलता। अगर चेन्नई का वकील डी राजकुमार आरटीआई के तहत खुलासा न मांगता। मानव बम बनने वाली धनु मौके पर ही मारी गई थी। फोटू खींच रहा हरि बाबू भी विस्फोट में मारा गया। श्रीनिवासन और शुभा बेंगलुरु में पकड़े गए। तो खुद को गोली मार ली थी। चारों नलिनी के पति मरुगन के दोस्त थे। नलिनी खुद भी उस हादसे के समय मौजूद थी। पहले सोनिया ने नलिनी की फांसी की सजा माफ कराई। अब प्रियंका की नलिनी से मुलाकात। राज खुला, तो प्रियंका बोली- 'मैं अपने पिता की हत्या से जुड़े सच को जानने गई थी।' राहुल अपनी बहन से सहमत नहीं।

पर उन्हें मुलाकात पर एतराज नहीं। जब पूछा- 'क्या आप भी नलिनी से मिलेंगे?' वह बोले- 'इस बारे में मेरा नजरिया अलग है।' राहुल ने ही खुलासा किया- 'प्रियंका लंबे समय से नलिनी से मुलाकात की इच्छुक थी।' अपन नहीं जानते- यह इच्छा क्यों पैदा हुई। क्या जांच आयोगों की रिपोर्टे पढ़कर इच्छा जागी। क्या उनने वर्मा और जैन आयोगों की रिपोर्टे पढ़ी? तो क्या उनने इंदिरा हत्याकांड पर ठक्कर आयोग की रिपोर्ट भी पढ़ी? ठक्कर आयोग ने घर के भीतर ही शक की सुई खड़ी कर दी थी। जहां तक जैन आयोग की बात। तो जैन आयोग का काम था- षड़यंत्र का पता लगाना। वही तो प्रियंका जानने गई थी। जैन आयोग के सामने षड़यंत्र की कई थ्योरियां आई। पहली थ्योरी- प्रो. के के तिवारी की। उनने वीपी सिंह, चंद्रशेखर, नरसिंह राव पर शक किया। कहा- 'तीनों के चंद्रास्वामी, सुब्रह्मण्यम स्वामी, ओमप्रकाश चौटाला से घनिष्ठ संबंध।' पर आयोग ने इसे तिवारी का दिमागी फितूर ही माना। आंध्र प्रदेश के एक डीजीपी हुआ करते थे - एम वी थामस। उनने कांग्रेस और अन्नाद्रमुक का षड़यंत्र बताया। आयोग को यह थ्योरी भी चंडूखाने की लगी। एक थे- अपराजित बसाक। उनने यासर अराफात और हुसनी मुबारक का हवाला दिया। कहा- इन दोनों को साजिश का पता था। दोनों ने चंद्रशेखर को वक्त से पहले जानकारी दी थी। जैन आयोग ने सरकार से पूछा। तो सरकार ने खतो-खताबत हवाले नहीं किया। इस पर आयोग ने एतराज भी जताया। शेषन ने अपनी आत्मकथा में कहा- 'लिट्टे के अलावा भी विदेशी हाथ था।' पर जैन आयोग के सामने कोई सबूत नहीं आया। आरोपियों में एक था- अथिराई। उसने अपने हल्फिया बयान में एक कांग्रेसी कर्मचारी कल्याण रमन का नाम दिया। अहमद पटेल ने जवाबी हल्फिया बयान में कहा- 'दफ्तर में इस नाम का कोई कर्मचारी कभी नहीं रहा।' एक चश्मदीद गवाह कुम्मुड़वल्ली ने कहा- 'मारर्गेट अल्वा की खास ई अश्वथा नारायण का हाथ। अश्वथा नारायण की कार में आई लता कानन और कोकिला मौके पर थीं।' पर आयोग ने पाया कानन-कोकिला उसकी कार में नहीं आई। महंत सेवादास ने अपनी सिख आतंकी-लिट्टे साजिश की थ्योरी रखी। यासर अराफात का जिक्र सेवादास ने भी किया। इसी थ्योरी में सुब्रह्मण्यम स्वामी का जिक्र आया। जफर सैफुल्ला ने चंद्रास्वामी के षड़यंत्र की थ्योरी रखी। जैन आयोग ने इन दोनों पर आगे जांच की बात कही। चंद्रास्वामी सवालों का जवाब नहीं दे सके। सुब्रह्मण्यम ने सहयोग से इनकार किया। पर जैन आयोग ने एक जगह शक की सुई और खड़ी की थी। वह था- डीएमके अध्यक्ष करुणानिधि। आयोग ने करुणानिधि से पूछताछ की जरूरत बताई। वाजपेयी सरकार में आयोग की रपट के साथ एटीआर रखी। तो उसमें कहा था- 'इस मामले में एमडीएमए आगे कार्रवाई करेगी।' वाजपेयी सरकार के समय अर्जुन सिंह हर छठे महीने आडवाणी को एक चिट्ठी लिखते थे। पूछते थे- 'करुणानिधि की जांच का क्या हुआ।' अब यूपीए सरकार बने चार साल होने को। करुणानिधि भी इसी यूपीए में। कांग्रेस और अर्जुन सिंह भी इसी यूपीए में। अर्जुन, मनमोहन, सोनिया शांत। पर एक बेटी की आत्मा को चैन नहीं। वह सच की खोज में निकली है।

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