दो साल बाद ही सही। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया। ओबीसी को उच्च शिक्षा में आरक्षण के खिलाफ अपन कभी नहीं थे। हां, खिलाफ थे तो ओबीसी की क्रीमी लेयर को आरक्षण के। जो पहले ही खाते-पीते परिवार हों। जिनके बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़े हों। आखिर उन्हें उच्च शिक्षा में आरक्षण क्यों मिले। सो सुप्रीम कोर्ट का भी वही फैसला आया। सत्ताईस फीसदी आरक्षण तो होगा। पर क्रीमी लेयर वालों को आरक्षण का फायदा नहीं मिलेगा। अब उच्च शिक्षा में आरक्षण 49.5 फीसदी होगा। एससी-एसटी पहले से 22.5 फीसदी आरक्षण पा रहे थे। अपन यह भी बताते जाएं- बीजेपी शुरू से क्रीमी लेयर को आरक्षण के खिलाफ थी। बिल पेश होने से पहले तीन मई 2006 को बीजेपी वर्किंग कमेटी हुई। तो ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव पास हुआ। प्रस्ताव में क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर रखने की बात थी। खैर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब इस साल की एडमिशन में रिजर्वेशन मिलेगा। सो कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में फायदे की उम्मीद।
भले ही लेफ्टियों, लालुओं, पासवानों, करुणानिधियों की भौंहें तनी हों। पर कांग्रेस ने फैसले का समर्थन किया। आप इसी से अंदाजा लगा लीजिए। कांग्रेस ने किस मजबूरी में क्रीमी लेयर को आरक्षण में शामिल किया था। ताकि सनद रहे सो अपन बताते जाएं। पच्चीस अगस्त 2006 को आरक्षण का बिल पेश हुआ। तो आरक्षण में क्रीमी लेयर शामिल नहीं थी। वह तो बाद में करुणानिधि के दबाव में क्रीमी लेयर भी शामिल हुई। असल में तमिलनाडु के ज्यादातर ओबीसी क्रीमी लेयर से ऊपर। चलते-चलते जरा आरक्षण का चुनावी गणित समझाते जाएं। आठ साल के वनवास से लौटी कांग्रेस का एजेंडा तय था। कांग्रेस ने ठान लिया था- 'मुस्लिम, ओबीसी को आरक्षण देंगे। तभी दोनों समुदाय लौटकर आएंगे।' सो पहले दिन से मनमोहन सरकार इसी एजेंडे पर। मुस्लिम आरक्षण तो शुरू नहीं हुआ। पर मुसलमानों के लिए अलग बजट तो बन ही गया। मुसलमानों के लिए अलग स्कीमें भी शुरू हो चुकी। अब ओबीसी आरक्षण का फच्चर भी निकला। पर फिलहाल सरकारी अनुदान वाली संस्थाओं में ही मिलेगा आरक्षण। कोर्ट ने कहा- 'हर पांच साल बाद ओबीसी जातियों की समीक्षा हो। सांसदों-विधायकों के बच्चों को आरक्षण न मिले।' पर अपन जरा यह भी बताते जाएं- फिलहाल क्रीमी लेयर में कौन-कौन। पिछड़ी जातियों के आयोग के मुताबिक क्रीमी लेयर में छह श्रेणियां। पहली श्रेणी- संवैधानिक पदों पर मौजूद लोगों के बच्चे। दूसरी श्रेणी- केंद्र या राज्य सरकारों में सीधी भर्ती वाले गु्रप-ए या क्लास-वन अफसर। केंद्र या राज्य सरकारों के सीधी भर्ती वाले गु्रप-ए या क्लास-वन अफसर। पीएसयू के करिंदों के बच्चे। तीसरी श्रेणी- सेना में कर्नल या उसके बराबर पदों वालों के बच्चे। चौथी श्रेणी- डॉक्टरों, वकीलों, चार्टर्ड अकाउंटेंटों, आयकर सलाहकारों, इंजीनियरों, प्रबंधकों, फिल्मी कलाकारों, टीवी आर्टिस्टों, लेखकों, खिलाड़ियों, पत्रकारों के बच्चे। व्यापार और उद्योग धंधों से जुड़े ओबीसी लोगों के बच्चे भी क्रीमी लेयर में। पांचवीं- कृषि योग्य भूमि के मालिकानों के बच्चे। इस बारे में नियम कायदे में जमीन का फार्मूला तय। काफी, चाय, रबड़ बागानों के मालिकों के बच्चे। आम, संतरा, सेब बागानों के मालिकों के बच्चे। शहरी इलाकों में जमीन या इमारत के मालिक के बच्चे। छठी श्रेणी- जिनकी आमदनी एक लाख रुपए सालाना से ज्यादा हो। संपत्ति कानून में राहत से ज्यादा संपत्ति वालों के बच्चे। ऊपर अपन ने जिन सबका जिक्र किया। इन सब खाते-पीते परिवारों को आरक्षण का फायदा नहीं मिलेगा। तभी तो आरक्षण सही बच्चे तक पहुंचेगा। पर यूपीए सरकार इन्हीं मलाईदार परिवारों को आरक्षण की रेवड़ियां बांटना चाहती थी। जाते-जाते एक बात बता दें- कैट ने चार नवंबर 2006 को फैसला सुनाया- 'सरकारी नौकरीशुदा कर्मचारी तीन साल तक ही गैर मलाईदार।' यानी सरकारी नौकरी मिली। तो तीन साल बाद मलाईदार माना जाएगा। अब उस मलाईदार सरकारी नौकर के बच्चों को फायदा मिलेगा। या नहीं। यह नया विवाद खड़ा होगा।
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