वृंदावन की कुंज गलियों में रंग बरसे एकादशी पर

Publsihed: 17.Mar.2008, 20:40

सोचो, सोनिया या आडवाणी को रैली करनी हो। पिछले महीने दोनों ने ताकत दिखाई भी। पर दोनों रैलियों का आंकड़ा पचास हजार ही रहा। बचे-खुचे रामलीला मैदान की इतनी ही क्षमता। ये सब भी हुआ मुफ्त की बसें-ट्रक चलाकर। पर अपने कृष्णजी ने न न्यौता दिया, न ट्रक भेजे, न बसें चलाई। पर वृंदावन की कुंज गलियों में इतने लोग भर गए। जिधर देखो, गुलाल से रंगे सिर ही सिर। यों तो हर एकादशी पर ऐसी ही भीड़। पर फाल्गुन का महीना हो, एकादशी का दिन। तो क्या कहने। अपन मित्र को केशवकुंज में उतार इस्कान मंदिर की ओर बढ़े। कुंज गलियों और इस्कान की बात बाद में। पहले केशवधाम की बात। इस बार आरएसएस की प्रतिनिधि सभा वृंदावन में बैठी।

देशभर के 1250 प्रचारक और तीन दिन। प्रांत प्रचारकों की आखिरी मीटिंग एकादशी पर केशवधाम में। बीजेपी के संगठनमंत्री रामलाल भी पहुंचे। बीजेपी की बात चली। तो बता दें- संघ के सरकार्यवाह मोहन भागवत ने वृंदावन में साफ किया- 'आडवाणी को संघ का पूरा समर्थन।' जिक्र आडवाणी का चला। तो पहले उन्हीं की बात कर लें। आडवाणी की 'माई कंट्री, माई लाइफ' रिलीज होने में अब चौबीस घंटे बाकी। नौ सौ अस्सी पेजी किताब की कीमत 595 रुपए। जिसमें वह वाजपेयी से अपनी कशमकश बताने में नहीं हिचके। अयोध्या से लेकर मोदी के इस्तीफे तक। बृजेश मिश्र को लेकर हुए मतभेद भी। संघ से कशमकश बताने से भी नहीं हिचके। जिन्ना प्रकरण पर आडवाणी अपने स्टेंड पर कायम रहे। अलबत्ता लिखा- 'मैंने जिन्ना पर कोई नई बात नहीं कहीं थी। पृष्ठभूमि जाने बिना मुझ पर हमले शुरू कर दिए। जिन्ना का ग्यारह अगस्त 1947 का भाषण पढ़ना था।' आडवाणी ने बिना संघ का नाम लिए कहा- 'आठ जून 2005 को मेरा इस्तीफा नामंजूर हो गया। जून मध्य में मुझे फिर कहा गया- मैं सिल्वर जुबली के बाद साल के आखिर में इस्तीफा दे दूं।' अयोध्या पर लिखा- 'ढांचा टूटने पर अयोध्या से लखनऊ तक जश्न मना।' वाजपेयी ने आडवाणी से कहा था- 'मोदी इस्तीफे की पेशकश तो करते।' तो आडवाणी ने गोवा मीटिंग में मोदी से इस्तीफा करवा दिया। पर एक स्वर से नामंजूर हो गया। तो मोदी विरोधी अलग-थलग पड़ गए। मोदी की तारीफ करते आडवाणी ने लिखा- '2002 के बाद न सांप्रदायिक हिंसा हुई, न आतंकवाद, न कहीं कर्फ्यू लगा। अलबत्ता मोदी ने भ्रष्टाचार मुक्त विकासशील गुजरात बनाया।' आडवाणी सोनिया की नागरिकता पर भी बरसे। लिखा- 'पंद्रह साल तक भारत की नागरिकता क्यों नहीं ली। नागरिकता लिए बिना 1980 में वोट कैसे डाला। अमेरिका-ब्रिटेन में वह सर्वोच्च पद पर नहीं पहुंच सकता। जो वहां जन्मा न हो। हेनरी किंसजर, मेडलिन एलब्राइड इसीलिए राष्ट्रपति नहीं बन पाए।' सोनिया की क्वात्रोची को बचाने की भूमिका पर भी खूब बरसे। नरसिंह राव की तारीफ की। जो मनमोहन की तरह दस जनपथ के आगे नहीं झुके। हां, उनने माना- मुशर्रफ का आगरा ड्राफ्ट उनने नामंजूर किया था। बाकी भी बहुत-कुछ मिलेगा किताब में। जैसे अटल-आडवाणी-शेखावत की पचास साल पुरानी फोटू। पर फिलहाल बात वृंदावन की कुंज गलियों की। अपन इस्कान मंदिर की तरफ बढ ही रहे थे। पुलिस ने रोककर गाड़ी साइड पर पार्क करवा दी। अपन को आगे पैदल ही जाना पड़ा। अपन मंदिर से ज्यादा दूर नहीं थे। तभी गुलाल उड़ाती हुई भीड़ सड़क को क्रास करती मिली। उम्र की कोई सीमा नहीं। दस साल से लेकर सत्तर साल तक के तो अपन ने देखे। पुरुष-नारी का कोई भेद नहीं। बिहारी जी के मंदिर की सात किमी की परिक्रमा। किसी के पांव में जूता-चप्पल नहीं। अपन रैले को किसी तरह क्रास कर मंदिर पहुंचे। डेढ़ घंटा कृष्ण जी के चरणों में बैठे। हरे-रामा, हरे कृष्णा धुन का आनंद लिया। उसी रास्ते लौटे, तो सड़क क्रास करती भीड़ का रैला जस का तस। दिनभर डेढ़-दो लाख लोगों ने तो बिहारी जी की परिक्रमा की ही होगी।

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