आतंरिक लोकतंत्र बनाम सोनिया के दस साल

Publsihed: 14.Mar.2008, 20:40

अपने यहां दलों के आतंरिक लोकतंत्र की क्या बात करें। पवार-संगमा-तारीक ने छोटी सी बात उठाई थी। कांग्रेस ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। बात पार्टी से निकालने तक जा पहुंची। दलों का आतंरिक लोकतंत्र तो अमेरिका में। ओबामा और हिलेरी की खुली जंग देखी। अपने यहां 1999 में जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में उतरे। तो चौबीस अकबर रोड से बाहर कर दिए गए। सोनिया का सारा चुनाव अभियान चौबीस अकबर रोड से चला। जितेंद्र प्रसाद का उनके घर से। पर सोनिया 14 मार्च 1998 को कांग्रेस अध्यक्ष बन गई थी। शुक्रवार को कांग्रेस में भले ही जश्न हुआ। मनमोहन समेत सब बधाई देने के लिए लाइन में खड़े थे। पर लाल कृष्ण आडवाणी बेहद दु:खी दिखे। बोले- 'भारतीय राजनीति में यह दु:खद दिन।

कांग्रेस ने अपने संविधान का सत्यानाश कर दिया। पार्टी एक परिवार की जागीर बना दी। बीजेपी में ऐसा कभी नहीं हो सकता।' पर बात चौदह मार्च 1998 की। जब सोनिया कांग्रेस अध्यक्ष बनी। वह तस्वीर आज भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होती। भले ही सोनिया दस साल अध्यक्ष रहकर कांग्रेस का रिकार्ड बना चुकी। पर सोनिया की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी पूरी तरह असंवैधानिक थी। केसरी चुने हुए अध्यक्ष थे। वह राजेश पायलट और शरद पवार को हराकर जीते थे। अब उन दिनों को याद करना जरूरी। बारहवीं लोकसभा का चुनाव निपटा। कांग्रेस को सिर्फ 142 सीटें मिलीं। सोनिया के घर पर खिचड़ी पकी। वह अध्यक्ष बनने को तैयार हो गई। नौ मार्च 1998 को मनमोहन, एंटनी, प्रणव गए सीताराम केसरी के पास। सोनिया के हक में इस्तीफे की गुहार लगाई। केसरी मान गए। पर कहा- 'एआईसीसी का अधिवेशन बुलाया जाए। वहां इस्तीफा दूंगा।' सोनिया लॉबी राजी नहीं थी। सो वर्किंग कमेटी मीटिंग बुलाने का अभियान चला। चौदह मार्च को वर्किंग कमेटी बुलाई गई। तेरह की रात वर्किंग कमेटी के सत्रह में से तेरह मेंबर प्रणव दा के घर इकट्ठे हुए। सोनिया को अध्यक्ष बनाने के कागज पर दस्तखत किए। चौदह मार्च को वर्किंग कमेटी हुई। तो केसरी यह सोचकर कांग्रेस दफ्तर पहुंचे- 'मैं कांग्रेस का चुना हुआ अध्यक्ष हूं। मुझे कुछ नेता साजिश करके नहीं हटा सकते।' पर मीटिंग वाले कमरे में पहुंचे। तो तारीक अनवर के सिवा कोई स्वागत में खड़ा नहीं हुआ। प्रणव मुखर्जी ने प्रस्ताव पढ़ना शुरू किया। आड़े वक्त में बागडोर संभालने पर केसरी की तारीफ। फिर कांग्रेस पार्टी के संविधान की धारा-19 का हवाला देकर बोले- 'खास हालात में कांग्रेस कार्यसमिति को पार्टी संविधान को दरकिनार कर फैसला लेने का हक। कार्यसमिति सोनिया गांधी से पार्टी की अध्यक्षता संभालने का आग्रह करती है।' केसरी बोले- 'अरे यह क्या कर रहे हो।' पर नकारखाने में तूती की आवाज किसी ने नहीं सुनी। केसरी बेआबरु होकर मीटिंग से बाहर निकले। कांग्रेस अध्यक्ष के कमरे में जा बैठे। उनने कहा- 'मैं चुना हुआ अध्यक्ष हूं, मुझे ऐसे नहीं हटा सकते।' वह एक घंटा अपने कमरे में रहे। पर तब तक उनके कमरे के बाहर लगी नेम प्लेट उखड़ चुकी थी। कम्प्यूटर से प्रिंट कर 'सोनिया गांधी' की प्लेट लग चुकी थी। वह कमरे से बाहर निकले। तब तक जितेंद्र प्रसाद वर्किंग कमेटी के फैसले का ऐलान कर चुके थे। केसरी के निकलते ही एसपीजी कांग्रेस दफ्तर में घुस गई। दफ्तर खाली करवा लिया गया। कुछ देर बाद सोनिया गांधी पहुंची। वर्किंग कमेटी की दूसरी मीटिंग शुरू हुई। उधर केसरी पुराना किला रोड़ वाले घर पर अपन लोगों से घिरे बैठे थे। आग बबूला होते हुए केसरी ने अदालत में चुनौती का एलान किया। पर वह जल्द ही हिम्मत हार गए। राहुल ने उड़ीसा में दलों में आतंरिक लोकतंत्र नहीं होने की बात कही। तो अपनी आंखों के सामने कांग्रेस के आतंरिक लोकतंत्र का मंजर घूमने लगा।

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