चुनाव नजदीक, तो राजनीति कुलाचे मारने लगी। मुलायम कांग्रेस के प्रति मुलायम होने लगे। पर अब तक मुलायम प्रकाश करात सख्त दिखने लगे। दिल्ली में मुलायम बोले- 'कांग्रेस से गठबंधन संभव।' लखनऊ में करात बोले- 'कांग्रेस महंगाई बढ़ाने की जिम्मेदार।' राजनीति का उथल-पुथल इसे कहते हैं। कर्नाटक में भी यही रंग दिखा। जब देवगौड़ा के खास बच्चेगौड़ा बीजेपी में आ मिले। दिल्ली से लौटकर येदुरप्पा के तेवर और तीखे। बोले- 'कांग्रेस ने चुनाव रोकने की साजिश बंद नहीं की। तो सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।' येदुरप्पा की बात चली। तो बताते जाएं। कर्पूरचंद्र कुलिश अवार्ड में वीआईपी टेबल पर पहुंचे।
तो अपने स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने गर्मजोशी से स्वागत किया। बोले- 'आपकी तो लोकसभा में खूब चर्चा हुई। बेस्ट फाइनेंस मिनिस्टर बताया गया।' पर बात राजनीतिक कुलाचों की। कहते हैं ना- राजनीति में दोस्त और दुश्मन स्थाई नहीं होते। जब मुलायम कांग्रेस से हाथ मिलाने की बात करें। तो लालू-पासवान हाथ क्यों नहीं मिला सकते। सो गुरुवार को यह करिश्मा भी हो गया। लालू ने एक शर्त पर पासवान को समर्थन दिया। शर्त थी- 'रंजन यादव को राज्यसभा में न लाया जाए। तो पासवान के उम्मीदवार को समर्थन।' सो पासवान के उम्मीदवार अब रंजन नहीं, शबीर होंगे। बात राज्यसभा चुनावों की चली। तो बता दें- कांग्रेस ने ग्यारह उम्मीदवार तो तय कर दिए। सात बाकी। जिनमें अपना राजस्थान और हरियाणा भी। हरियाणा की बात चली। तो बता दें- सुरेश पचौरी का मध्य प्रदेश से जुगाड़ नहीं। सो सोनिया चाहेंगी, तो हरियाणा का दरवाजा खुलेगा। पर किसी प्रदेश का अध्यक्ष दूसरे प्रदेश से राज्यसभा में जाएं। तो क्या राजनीतिक और नैतिक तौर पर ठीक होगा? पर सात नहीं, उम्मीदवार आठ भी हो सकते हैं। आठवां मध्य प्रदेश से हुआ। तो खेल मजेदार होगा। मध्य प्रदेश की तीन सीटें। बीजेपी ने तीनों उम्मीदवार तय कर दिए। पर तीसरे उम्मीदवार को आठ वोटों का टोटा होगा। कांग्रेस ने उम्मीदवार खड़ा किया। तो मुकाबला जोरदार होगा। कांग्रेस को भी आठ वोटों का टोटा। उद्योगपति विवेक तनखा चर्चा में। सो बीजेपी वरीयता तय नहीं कर पाई। तीसरे नंबर पर प्रभात झा होंगे या रघुनंदन शर्मा। माया सिंह तो आलाकमान की उम्मीदवार। अरुण जेटली का अपना अंदाज- प्रभात झा तो नहीं होंगे। उनका अंदाज संघ की पैरवी के कारण होगा। संघ की बात चली। तो अपन को याद आई आडवाणी की किताब- 'माई कंट्री-माई लाइफ।' विमोचन 19 मार्च को होगा। तैयारियों के लिए बाकायदा कमेटी बन गई। सिरी फोर्ट के समारोह का न्यौता पाने के लिए अभी से लाइन। अपने भैरोंसिंह शेखावत अध्यक्षता करेंगे। अब्दुल कलाम विमोचन। संघ के कार्यवाह मोहन भागवत और चो रामास्वामी के भाषण होंगे। मतलब साफ- किताब में जिन्ना मुद्दा उतना विवादास्पद नहीं होगा। जितनी लोगों को उम्मीद। चुनाव के वक्त अपना सिर कोई कड़ाही में क्यों देगा। बात चुनाव की चली। तो बता दें- राहुल बाबा ने गुरुवार को लोकसभा में बजट पर लिखा हुआ भाषण पढा। तो आठ मिनट में सोलह बार तालियां बजी। राहुल के भाषण से मिड टर्म की उम्मीदें बढ़ गईं। भले ही गुरुवार को चुनाव आयोग ने उप चुनावों का ऐलान किया। जिससे मिड टर्म पोल की अटकलों को झटका लगा। पर राजनीतिक पेंतरेबाजी का आयोग से क्या मतलब। वाट तो उनकी लगेगी। जिनके शपथ लेते ही लोकसभा भंग होगी। इशारा राहुल के भाषण से समझिए। उनने चिदंबरम को हिदायत दी- 'कर्जमाफी को उत्पादकता आधारित बनाया जाए।' यानी सीचिंत को दो हेक्टेयर तक। तो असीचिंत को चार हेक्टेयर तक किया जाए। दूसरी हिदायत- 'कर्जमाफी की आखिरी तारीख 31 मार्च 2007 हटाई जाए। अलबत्ता फसली चक्र के आधार पर तारीख तय हों।' यों तो राहुल ने अपनी बातों को सुझाव कहा। पर सब जानते हैं- राहुल के बोलने का मतलब। पर मतलब की बात दूसरी। भाषण पढ़ने पर अपने मल्होत्रा बोले- 'पप्पू तो नकल मारकर पास हुआ।' अपन बताते जाएं- लिखा भाषण पढ़ना नियम के खिलाफ।
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