अपने सोमनाथ चटर्जी ने माकपा दफ्तर पर हुआ हमला तो सदन में उठाने दिया। पर केरल में बीजेपी-संघ दफ्तरों पर हुए हमलों का मुद्दा नहीं उठाने दिया। केरल की बात करो। तो राज्य का मामला। दिल्ली की बात करो। तो केंद्र का मामला। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलने का यही फायदा। इतवार को सीपीएम दफ्तर पर हमला हुआ। तो सारे राजनीतिक दल एकजुट हो गए। पर केरल में बीजेपी-संघ दफ्तरों पर हमले आम बात। आज नहीं, अलबत्ता महीनों से यही सिलसिला। पहली बार भी नहीं। अलबत्ता हर दूसरे-तीसरे साल ऐसी घटनाएं शुरू। बंगाल में संघ-बीजेपी के पांव उतने नहीं जमे।
जमे तो केरल में भी नहीं। पर केरल में संघ बंगाल से ज्यादा ताकतवर। संघ की यही ताकत सीपीएम की आंख में किरकिरी। बंगाल में तो एक नंदीग्राम और एक सिंगूर। पर केरल में तो हर साल न जाने कितने नंदीग्राम। न जाने कितने सिंगूर। पर केरल का हल्ला दिल्ली में नहीं होता। अबके पहली बार दिल्ली के संघियों ने हिम्मत की। तो लेफ्टियों से लेकर कांग्रेसियों तक को लोकतंत्र की हत्या दिखने लगी। बुधवार को तीसरे दिन भी लेफ्टियों का संसद में हल्ला जारी रहा। अपने सोमनाथ दादा ने बीजेपी पर हमले का अच्छा मौका दिया। पर जब-जब भाजपाई सांसदों ने केरल की बात उठाई। दादा ने कह दिया-'राज्य का मामला नहीं उठेगा।' यों राज्यसभा में होम मिनिस्टर शिवराज पाटिल ने भी माना- 'केरल में हिंसक वारदातों की खबर।' पर उनने किसी तरह की कार्रवाई से इनकार किया। अलबत्ता केंद्रीय सुरक्षा बल भेजने से भी कन्नी काटी। केंद्र की कांग्रेस साफ-साफ सीपीएम की पीठ थपथपाती दिखी। पर केरल में ऐसी बात नहीं। केरल क्या, बंगाल में भी ऐसी बात नहीं। दोनों जगह कांग्रेस लेफ्टियों के हिंसक तौर-तरीकों के वाकिफ। केंद्र सरकार ने तो भले ही आंखों पर पट्टी बांध ली हो। या कबूतर की तरह आंखें बंद कर ली हों। पर न तो केरल की कांग्रेस ने आंखें बंद की। न केरल की हाईकोर्ट ने। मंगलवार को केरल हाईकोर्ट ने कन्नूर में केंद्रीय सुरक्षा बल लगाने की सिफारिश की। तो लेफ्टियों ने वही किया। जो वे हमेशा से करते आए। चीफ मिनिस्टर वीएस अचुत्यानंदन समेत सभी कोर्ट के पीछे पड़ गए। यही तौर-तरीका सोमनाथ चटर्जी ने भी अपनाया था। जब सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के गवर्नर की खाट खड़ी की। पर बात वीएस अचुत्यनंदन की। उनने हाईकोर्ट की टिप्पणीं को गलत और असैंवैधानिक बताया। पर कांग्रेस के नेता ओमन चांडी ने विधानसभा में हल्ला बोल दिया। उधर विधानसभा में हल्ला हुआ। तो इधर संसद में भी जमकर हल्ला। तीन दिन में पहली बार बीजेपी को मौका मिला। संसद के अंदर तो हल्ला होना ही था। संसद के दरवाजे पर भी बीजेपी सांसद धरने पर बैठे। धरने की बात चली। तो बताते जाएं- संसद के अंदर केरल पर धरना। तो संसद के बाहर जंतर-मंतर पर हुआ कर्नाटक पर धरना। अपने येदुरप्पा सारे सांसद-विधायक लेकर धरने पर बैठे। पर बात केरल की। लोकसभा बार-बार स्थगित हुई। यही हाल राज्यसभा में भी हुआ। राज्यसभा की बात चली तो बताते जाएं। वहां शून्यकाल हर रोज नहीं होता था। सो हल्ला रोकने के लिए अपने हामिद अंसारी ने बुधवार को नई परंपरा शुरू की। हर रोज शून्यकाल। दस मुद्दे दिए जाएंगे। हरेक को तीन मिनट का वक्त। पर पहले ही दिन योजना चौपट हो गई। जब हामिद अंसारी ने अमर सिंह को वक्त दिया। पर बीजेपी सांसद केरल के मुद्दे पर उठ खड़े हुए। वेंकैया नायडू ने मोर्चा संभाला। उधर से डी राजा उठ खड़े हुए। हल्ले में किसने क्या कहा। पता नहीं। सदन स्थगित हुआ। दुबारा शुरू हुआ। तो हामिद अंसारी बदले हुए दिखे। पहला मौका बीजेपी को मिला। तो लेफ्टिए परेशान होने ही थे। पर केंद्र की कांग्रेस लेफ्टियों के साथ ही दिखी।
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