गुरुवार को देशभर में जश्न का माहौल रहा। एक तरफ शिवरात्रि की धूम। तो दूसरी तरफ क्रिकेट टीम के लौटने की। टीम को दिल्ली में बुलाकर शरद पवार ने खुद को खूब चमकाया। पहले बेंगलुरु में अंडर-19 का जश्न। फिर दिल्ली में सीनियर टीम का। पवार अपना राजनीतिक दायरा भी बढ़ाते दिखे। एनसीपी को महाराष्ट्र से बाहर भी निकालने की तैयारी। यों एनसीपी का राष्ट्रीय दर्जा नार्थ-ईस्ट की बदौलत। पी ए संगमा साथ न होते। तो राष्ट्रीय दर्जा न होता। संगमा की बात चली। तो चलते-चलते मेघालय की बात हो जाए। एसेंबली के चुनाव हो चुके। अपन से पूछो तो लंगड़ी एसेंबली आएगी। संगमा सीएम पद के दावेदार।
पर पवार भले ही सोनिया के साथ हो चुके। संगमा घुटने टेकने को तैयार नहीं। नार्थ-ईस्ट में एनसीपी बागडोर संगमा के हाथ। सो उनने कांग्रेस से गठजोड़ नहीं किया। कांग्रेस ने तो संगमा को तोड़ने की कोशिश भी की। यानी पवार की रीढ़ तोड़ने की कोशिश। वह तो संगमा सोनिया विरोध छोड़ने को राजी नहीं। अब लाख टके का सवाल यह- क्या सोनिया संगमा को सीएम बनने देगी? क्या लंगड़ी विधानसभा में कांग्रेस-एनसीपी गठजोड होगा? या संगमा कांग्रेस को किनारे कर गठबंधन सरकार बना लेंगे। इसी बात की संभावना ज्यादा। यों भी संगमा को आडवाणी कबूल होंगे, सोनिया नहीं। आगे जाकर गठबंधन क्या रुख लेगा। अभी कहना आसान नहीं। पवार ने बाल ठाकरे के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। यों भी महाराष्ट्र में बिहारी वोटबैंक। एनसीपी-शिवसेना का नहीं। थोड़ा बीजेपी का, ज्यादा कांग्रेस का। सो लालू-पासवान के बाद सोनिया-आडवाणी परेशान। पवार के चेहरे पर कोई शिकन नहीं। पवार यों भी तरह-तरह के गठबंधनों में माहिर। जश्न में ही देखो। एक बगल में सोनियावादी राजीव शुक्ल बैठा लिए। तो दूसरे बगल में आडवाणीवादी अरुण जेटली। आडवाणी की बात चली। तो बता दें- बाल ठाकरे के तेवरों से सोनिया कम परेशान। आडवाणी ज्यादा। चुनावों से पहले एनडीए का शिराजा बिखर न जाए। चुनावों की बात चली। तो याद कराएं- लोकसभा में अभिभाषण पर बहस चली। तो मनमोहन सिंह ने आडवाणी पर पलटवार किया। बोले- 'जबसे यूपीए सरकार बनी। विपक्ष के नेता उस दिन से कह रहे हैं- अब गिरी कि अब गिरी।' तो क्या उनने इस बार भी चुनाव की अटकलें नकारी। यों कांग्रेसी सांसदों ने भी चुनावी अटकलों पर विराम की कोशिश की। पर चुनावी बंदोबस्त शुरू हो चुके। कांग्रेस के नट-बोल्ट कसे जाने लगे। मध्य प्रदेश में पचौरी, कश्मीर में सोज, बंगाल में दासमुंशी तो भेजे ही गए। अब अपनी प्रभा ठाकुर महिला कांग्रेस की अध्यक्ष हो गई। एसएम कृष्णा कर्नाटक लौट ही गए। कृष्णा की बात चली। तो महाराष्ट्र के गवर्नर का नया फच्चर बता दें। विलासराव देशमुख को जब लगा- कहीं अर्जुन सिंह न भेज दिए जाएं। तो वह एयरपोर्ट जाते-जाते रास्ते से लौट आए। विलासराव चाहते थे मोतीलाल वोरा या एनडी तिवारी हो जाएं। पवार ने बलराम जाखड़ मांगा। अर्जुन सिंह तो वह भी नहीं चाहते। आम राय नहीं बनी। सो फिलहाल कामचलाऊ गवर्नर की बात हुई। अपने नवल किशोर हो जाते। पर पवार के फच्चर में सेहरा एससी जमीर के सिर बंधा। अभिभाषण जमीर ही पढ़ेंगे। पर बात वोकालिंगा एसएम कृष्णा की। तो वोकालिंगा मल्लिकार्जुन खड़के बेहद परेशान। बीके हरिप्रसाद तो अपनी नाराजगी खुल्लम-खुल्ला जाहिर कर चुके। जाफर शरीफ तो कृष्णा विरोधी हैं ही। पर बात कर्नाटक की नहीं, देश की। जहां चुनावी तैयारियां शुरू। चिदंबरम ने आखिर हाऊंसिंग लोन पर ब्याज घटाने की बात भी कर दी। इतना माहौल बनाकर चुनाव क्यों टालेगी कांग्रेस।
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