अपन ने पांच फरवरी को लिखा था- 'दो भाईयों की जंग में पिसते बेगुनाह।' एक महीने बाद वह बात सही साबित हुई। जब राज ठाकरे को मराठियों में आगे बढ़ता देखा। बेटे उध्दव पर भतीजा राज हावी होता दिखा। तो बाल ठाकरे भी बिहारियों के खिलाफ मैदान में उतर आए। शुरू में उध्दव ने बिहारियों का बचाव किया। पर मराठी राज के साथ जाने लगे। तो बाल ठाकरे ने कमान संभाली। पिछले हफ्ते संसद में हुआ हल्ला तो अपन ने बताया ही था। बाल ठाकरे ने इसी को बहाना बनाया। पांच मार्च के 'सामना' में बाल ठाकरे ने लिखा- 'बिहारियों को दक्षिण भारत में पसंद नहीं किया जाता। असम, पंजाब और चंडीगढ़ में भी पसंद नहीं किया जाता। वे जहां भी जाते हैं, लोकल लोगों को अपना विरोधी बना देते हैं।
यूपी-बिहार के सांसदों ने संसद में मराठी विरोधी रुख अपनाया। ऐसा कर उनने मुंबई और महाराष्ट्र के प्रति नमकहरामी साबित की।' सो उम्मीद के मुताबिक ही बुधवार को संसद फिर उबली। राज्यसभा में तो हंगामा इतना जोरदार हुआ। एक बार स्थगन की नौबत आई। जहां तक बात लोकसभा की। तो वहां हंगामेबाज राज्यसभा से ज्यादा। पर अपने सोमनाथ बाबू ने स्थगन नहीं होने दिया। अलबत्ता कहा- 'शिवसेना प्रमुख का लिखा अगर सदन का अपमान। तो नियम के मुताबिक कार्रवाई होगी।' सो इशारा पाते ही लालूवादी देवेंद्र यादव सक्रिय हो गए। उनने बाल ठाकरे के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस बनाया। सेंट्रल हाल में सांसदों के दस्तखत कराते दिखे। नोटिस पर बिहार और यूपी के सांसदों ने दस्तखत किए। नोटिस स्पीकर के चेंबर में भेज दिया। जिसमें लिखा है- 'बाल ठाकरे के लेख से सांसदों और संसद की गरिमा को ठेस पहुंची।' राज्यसभा में बवाल ने अजीब मोड़ लिया। जब बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी को नए विवाद की जड़ समझ नहीं आई। उनने समझा- राज ठाकरे ने कुछ नया लिखा होगा। सो वह बोले- 'मुंबई के किसी संवाद अखबार में बिहारियों के खिलाफ छपा है। इस तरह की बातें बर्दाश्त नहीं होनी चाहिए।' मुरली मनोहर जोशी को बताया गया- अखबार संवाद नहीं, अलबत्ता सामना। जिसके संपादक बाल ठाकरे। जोशी अपना कहा वापस कैसे लेते। सो बोले- 'जो भी हो, सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।' सो राज ठाकरे-उध्दव ठाकरे की लड़ाई में बाल ठाकरे उतरे। तो बीजेपी का अंदरूनी झगड़ा भी सामने आ गया। आडवाणी ने राज ठाकरे का विरोध जरूर किया। पर आडवाणी ने भी सोचा नहीं होगा। मराठी अस्मिता की लड़ाई बीजेपी को मुसीबत में डालेगी। जैसा विरोध राज ठाकरे का किया। वैसा बाल ठाकरे का तो नहीं कर सकते। किया तो चुनावी महुर्त में अपशकुन होगा। इसी मराठी अस्मिता की जंग में राष्ट्रपति के चुनाव में भी अपशकुन हुआ। तो नतीजा अपने सामने। राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए तार-तार हुआ। अब फिर एनडीए में दरार। बिहारियों के समर्थन का सारा श्रेय लालूवादी न लूट ले जाएं। सो नीतीश कुमार ने भी मोर्चा संभाला। उनने मनमोहन सिंह को एक और चिट्ठी लिख मारी। पहली चिट्ठी की स्याही अभी सूखी ही नहीं। जिसमें उनने विलासराव देशमुख की शिकायत की। अब दूसरी चिट्ठी। ज़िसमें उनने कहा- 'पीएम दखल दें। बिहार और महाराष्ट्र के नेताओं की साझा बैठक बुलाएं। ताकि क्षेत्रीय टकराव टाला जाए।' विलासराव की बात चली। तो बताएं- चार फरवरी को बवाल शुरू हुआ। पर विलासराव सरकार लंबी तानकर सोई रही। उत्तर भारतीयों पर हमले होने लगे। तो सोनिया के दखल से विलासराव जागे। सोनिया भी तब जागी। जब लालू-पासवान ने केबिनेट मीटिंग में कहा- 'महाराष्ट्र सरकार क्या तब कार्रवाई करेगी। जब दिल्ली में महाराष्ट्रियों पर हमले होंगे।' विलासराव को अब अपनी कुर्सी हिलती दिखने लगी। बुधवार को वह भी दिल्ली में थे। तो बोले- 'सरकार कानूनी राय ले रही है। पुलिस जल्द ही बाल ठाकरे के खिलाफ कार्रवाई करेगी।' तो क्या ठाकरे की गिरफ्तारी नया बवाल खड़ा करेगी।
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