उधर ब्रिसबेन में कंगारुओं पर अपने शेर हावी थे। तो इधर संसद में मनमोहन पर विपक्ष हावी। लोकसभा में अनंत कुमार ने घेरा। तो राज्यसभा में अपने अरुण जेटली ने। दोनों जगह राष्ट्रपति का अभिभाषण बना मुद्दा। पर बहस अभिभाषण पर कम। बजट पर ज्यादा होती दिखी। जेटली बोले- 'सरकार बिना योजना के काम कर रही है। किसानों का कर्ज माफ किया। पर यह पता नहीं- पैसा कहां से आएगा।' यही बात सोमवार को आडवाणी ने लोकसभा में पूछी थी। बहस दूसरे दिन भी जारी रही। तो अनंत कुमार ने नक्सलवाद पर मनमोहन-पाटिल को घेरा। यों आडवाणी के लिखित भाषण में यह उदाहरण था। पर लोकसभा में देना भूल गए।
सो वही मुद्दा अनंत कुमार ने उठाया। मनमोहन सिंह ने कहा था- 'नक्सलवाद सबसे बड़ी समस्या।' शिवराज पाटिल बोले- 'नक्सलवाद कई समस्याओं में से एक।' कांग्रेसियों के पांवों तले से जमीन निकल गई। पर कांग्रेसी तब ज्यादा तिलमिलाए। जब अनंत कुमार ने कर्नाटक का चुनाव रुकवाने की साजिश पर घेरा। कर्नाटक की बात चली। तो बता दें- मंगलवार को तीनों चुनाव आयुक्त बेंगलुरु में थे। सर्वदलीय मीटिंग में कांग्रेस अलग-थलग दिखी। सिर्फ कांग्रेस ने मई-जून में चुनाव की मुखालफत की। चुनाव आयोग दोहरे दबाव में। एक तरफ केंद्र का दबाव। तो दूसरी तरफ बीजेपी की अदालत जाने की धमकी। सो आयोग चुनाव की तैयारी करने लगा। मनमोहन सिर्फ संसद में नहीं घिरे। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में भी घिरे। जब अदालत ने पूछा- 'लाभ के पद में फंसे 53 सांसदों-विधायकों को बचाने के लिए कानून क्यों बनाया। किसी प्रदेश के बोर्ड का चेयरमैन लाभ के पद का हकदार। तो दूसरे प्रदेश का चेयरमैन हकदार नहीं। ऐसा भेदभाव वाला कानून क्यों बना।' अदालत ने यह भी पूछा- 'कानून पिछली तारीख से कैसे लागू किया? पहले कोई ऐसा उदाहरण बताइए?' सरकारी वकील की घिग्घी बंध गई। पिछली तारीख से कानून का फंडा याद करा दें। पिछली तारीखों से लागू न होता। तो सोनिया गांधी की बर्खास्तगी होती। सोमनाथ चटर्जी भी बर्खास्त होते। सो सरकार मंगलवार को चारों तरफ से घिरी दिखी। सिर्फ संसद और सुप्रीम कोर्ट में ही नहीं। अमेरिकी उप विदेशमंत्री रिचर्ड बाउचर दिल्ली में थे। उनने प्रणव दा से मुलाकात की। तो निकलते हुए प्रेस से रू-ब-रू भी हुए। अपने प्रणव दा सोमवार को संसद में बोले थे- 'हाइड एक्ट का वन-टू-थ्री से कोई ताल्लुक नहीं।' सवाल हुआ- 'क्या हाइड एक्ट का वन-टू-थ्री करार पर असर रहेगा?' रिचर्ड बाउचर ने जवाब दिया- 'हाइड एक्ट हमारा अंदरूनी कानून। वन-टू-थ्री अंतरराष्ट्रीय। हमें दोनों में एकरूपता बनाकर चलना होगा।' तो प्रणव दा फिर गलत साबित हुए। अपन ने तो कल ही लिखा था- 'प्रणव दा कुतर्क न करें।' सो प्रणव दा फिर गलत साबित हो गए। मनमोहन सरकार चारों तरफ से घिर दिखी। पर अपनी क्रिकेट टीम ब्रिसबेन में जीती। तो मनमोहन ने राहत की सांस ली। जीत की खबर आई। तो अपने मनमोहन सिंह राज्यसभा में थे। उनने उठकर टीम को बधाई दी। बोले- 'क्रिकेट टीम ने साबित कर दिया है- भारत दूसरे खेलों में भी यह क्षमता दिखा सकता है।' बात क्रिकेट की चली। तो अपने शेरों ने गजब ढाया। यों तो अपनी टीम 1986, 1992, 2004 में भी त्रिकोणीय श्रृंखला के फाइनल में पहुंची। पर कभी एक मैच भी नहीं जीती। अबके कंगारुओं पर भारी पड़ गए शेर। अंडर-19 में अपन दक्षिण अफ्रीका से जीते। तो सीनियर टीम में आस्ट्रेलिया से। क्रिकेट के धुंरधरों को हराना खाला जी का घर नहीं था। गोरे रंग पर इतना गुमान था कंगारुओं को। अपने हरभजन सिंह भज्जी के तो हाथ धोकर पीछे पड़े रहे। पर अपने भज्जी गुस्से पर काबू पाए रहे। वरना पंजाब दा पुत्तर चुप रहने वाला नहीं था। मंगलवार को एंड्रयू साइमंड का विकेट लिया। तो भज्जी को भी शांति मिली होगी।
आपकी प्रतिक्रिया