जून में भंग तो नहीं हो जाएगी लोकसभा

Publsihed: 01.Mar.2008, 21:56

लोकलुभावन बजट के बाद कांग्रेस में खामोशी। किसी कांग्रेसी ने अभी तक नहीं कहा- 'चुनाव इसी साल होंगे।' पर लेफ्टिए इसी साल चुनावों की भविष्यवाणी करने लगे। येचुरी-वर्धन के मुताबिक चुनाव बस आया समझो। किसानों की कर्ज माफी के खिलाफ बोलने की किसी में हिम्मत नहीं। सोनिया ने एक झटके से बीस करोड़ वोट झटक लिए। हर कर्जाऊ किसान के घर पांच वोट तो होंगे ही। चार करोड़ को फायदा होगा। तो बीस करोड़ वोटों का जुगाड़। इनकम टैक्स में राहत वाला मिडिल क्लास। छठे वेतन आयोग वाला कर्मचारी वर्ग अलग से। इतने वोटों का जुगाड़ कर चुनाव अगले साल तक कौन रोकेगा।

इस साल यों भी आर्थिक मंदी के आसार। अगले साल तक तो सारा गुड़ गोबर हो जाएगा। राहुल बजाज कांग्रेस की मदद से राज्यसभा में नहीं आए। उनने सोनिया गांधी से गुहार भी लगाई थी। आखिर जमनालाल बजाज परिवार की कांग्रेस में अहम भूमिका रही। पर सोनिया गांधी ने समर्थन नहीं किया। कांग्रेस उम्मीदवार भी सामने उतारा। फिर भी राहुल बीजेपी-राकपा की मदद से राज्यसभा पहुंचे। पर अब उनके तेवर बदल गए। वह ताल ठोककर बोले- 'चुनाव 2008 में ही होंगे। कांग्रेस ने चुनावी बजट बनाकर कुछ गलत नहीं किया। लोकतंत्र में आखिर जनता ही सर्वोच्च।' पर यह किस संविधान में लिखा है- 'कोई पार्टी अपने हित के लिए देश के राजस्व का इस्तेमाल करेगी।' यह सरकारी पदों का बेजा इस्तेमाल। जिसे लोकतांत्रिक हक तो नहीं कह सकते। ए बी वर्धन पहले आदमी निकले। जिनने कहा- 'कर्जमाफी से किसानों का भला नहीं होगा। नब्बे फीसदी किसान तो साहूकारों के कर्जदार।' कर्जमाफी कहीं स्टंट ही साबित न हो। अपन को तो यही खतरा। यशवंत सिन्हा ने वाजिब सवाल उठाया। जैसे-जैसे वक्त गुजरेगा। यह सवाल मुंह बाएं खड़ा होगा। आखिर बैंकों की भरपाई कौन करेगा? चिदंबरम के बजट में साठ हजार करोड़ का कहीं जिक्र तक नहीं। सिर्फ भाषण में ही जिक्र। आंकड़ों में कहीं नहीं। तो क्या बैंकों का भट्टा बैठेगा। ए बी वर्धन बोले- 'कर्जमाफी से ग्रामीण बैंक तबाह हो जाएंगे।' तो क्या वोटों के लिए बैंकों को बर्बाद करके जाएगी कांग्रेस। चिदंबरम ने 30 जून तक कर्जमाफी का एजेंडा रखा। इस तीस जून का मतलब अब अपन को समझ आने लगा। जून के शुरू में ही कहीं लोकसभा भंग न हो जाए। ताकि कांग्रेस चुनावों में कह सके- 'लौटकर आएंगे तो वादा निभाएंगे।' अपन को यह खटका होने की वजह। चिदंबरम जब कर्जमाफी का एलान कर रहे थे। तब निकोलस बर्न वाशिंगटन में कह रहे थे- 'एटमी करार पर मई-जून में अमेरिकी कांग्रेस की मोहर लगनी ही चाहिए।' तो क्या मार्च में आईएईए से समझौता होगा। मनमोहन सरकार समझौते को हरी झंडी दे देगी। क्या लेफ्ट से पूछे बिना एनएसजी से बात शुरू होगी। जो अप्रेल-मई में हरी झंडी तक पहुंच जाएगी। जैसे ही यह होगा। लेफ्ट समर्थन वापस लेगा। पर राष्ट्रपति तो अपना ही। बहुमत साबित करने को कहने में कुछ वक्त तो लगेगा ही। कांग्रेस किसानों, कर्मचारियों, मिडिल क्लास के बूते ही नहीं। अलबत्ता करार समर्थक कार्पोरेट लॉबी का भी समर्थन लेकर चुनाव में उतरेगी। यह दावा अब राजनीतिक गलियारों में ताल ठोककर होने लगा।

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