देखा चुनावी बजट। किसानों के कर्ज माफ। इनकम टैक्स में छूट। दोनों ही बातें अपन ने एक दिन पहले बता ही दी थीं। पर यह अपना अंदाज ही था। अपन ने कोई बजट लीक नहीं किया। अट्ठारह साल पहले 1989 में कनाडा का बजट लीक हुआ। तो टीवी खबरची डॉग समाल पर सरकारी संपत्ति की चोरी का मुकदमा चला। सो अपन पहले ही बता दें। चिदंबरम ने अपन को बजट लीक नहीं किया। पर चिदंबरम ने बजट लीक नहीं किया। ऐसी बात भी नहीं। उनने सोनिया गांधी को बजट लीक कर गोपनीयता भंग की। जिसकी उनने मंत्री बनने पर शपथ ली थी।
उनने बजट तो 11 बजे पेश किया। किसानों की कर्ज माफी का जिक्र तो कोई 12 बजे आया। पर किसानों से भरे ट्रक सुबह दस बजे ही सोनिया की डयोढ़ी पर थे। किसानों की कर्ज माफी पर ढोल-नगाड़े बज रहे थे। यूपी, हरियाणा, राजस्थान से किसान रात को ही लाए गए। सान कुमार और दीपेंद्र हुड्डा दूल्हा बने अगवाई कर रहे थे। कर्ज माफी पर आभार के पोस्टर हाथों में थे। पोस्टर भी सिर्फ कागज पर छपे नहीं। अलबत्ता प्लास्टिक के कपड़े पर छपे फ्लैक्स। जो रातों-रात नहीं छप सकते। बजट 27 की रात को छपने गया था। उससे पहले ही लीक हो चुका था। अपन को किसानों की कर्ज माफी पर एतराज नहीं। भले ही साठ हजार करोड़ रुपया अपने टैक्स में से ही जाएगा। कर्ज माफी न होती। तो हजारों स्कूल-कालेज बनते। दो दर्जन एम्स जैसे अस्पताल बन जाते। इंफ्रास्टक्चर पर खर्च होता। देश भर की सड़कों का सुधार हो जाता। किसानों का भला होता। तो भी अपन को खुशी होती। पर यह तो सिर्फ वोट बैंक का खेल। कर्ज माफी से किसानों का भूतकाल सुधरेगा, भविष्य नहीं। नए कर्ज से दो-चार साल बाद फिर यही हालत होगी। किसानों का सिर्फ ब्याज माफ होता। यही साठ हजार करोड क़ृषि विकास पर लगा देते। तो किसानों का भविष्य सुधर जाता। खुद कर्ज लौटाने के काबिल हो जाते। पर किसानों को खुशहाल करने की नियत हो, तब ना। कर्ज माफ होगा। यह सबको पता था। विपक्ष को भी। तभी तो तीन दिन से संसद नहीं चल रही थी। पर श्रेय तो सोनिया को ही मिलेगा। मनमोहन-चिदंबरम कर्ज माफी हरगिज नहीं करते। इनकम टैक्स में भी ऐसी छूट नहीं मिलती। अगर सोनिया की चुनावी रणनीति न होती। नवंबर में चुनावी तैयारी का ढोल अपन कई महीनों से पीट रहे थे। अब उसमें कोई शक नहीं। महंगाई से मिडिल क्लास की जान आफत में। सो इनकम टैक्स राहत से उन्हें लुभाने की कोशिश। सरकारी कर्मचारियों की चुनाव में अहमियत से कांग्रेस वाकिफ। सो चिदंबरम ने उन्हें भी बता दिया- 'मार्च में आ जाएगी छठे वेतन बोर्ड की सिफारिश।' अल्पसंख्यकों को दोनों हाथों से लुटाया ही। बजट का सांप्रदायीकरण भी कर डाला। ग्रामीण रोजगार भी देशभर में लागू किया। महिलाओं का अपन ने बताया ही था। सो महिलाओं और बच्चों का बजट चौबीस फीसदी बढ़ा। रक्षा बजट में तो सिर्फ दस फीसदी की बढ़ोत्तरी। पर नेहरू, इंदिरा, राजीव के नाम वाली योजनाओं को खूब बांटा। यों साठ हजार करोड़ लुटाने के बाद बचा भी कितना। सो नई योजना एक भी नहीं। सारी पुरानी दोहरा दी। पर बात चिदंबरम के गोपनीयता भंग की। मधु दंडवते ने अपन को एक बार बताया था- 'बजट से एक दिन पहले एक ब्रिटिश वित्त मंत्री ने सिगरेट पी रहे दूसरे मंत्री से कहा- कल से सिगरेट नहीं पी सकोगे।' साफ संकेत था- सिगरेट महंगी होगी। बजट लीक हो चुका था। वित्त मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। ब्रिटेन की दो और घटनाएं बताएं- 1936 में आयकर कटौती की खबर लीक हो गई। वित्त मंत्री नेविल चेंबरलेन थे। जांच हुई- एक केबिनेट मंत्री जिम्मी थामस दोषी पाया गया। थामस को इस्तीफा देना पड़ा। दूसरी घटना 1947 की। अंतरिम बजट लीक होने पर ह्यूग डालटन को इस्तीफा देना पड़ा। पर अपने चिदंबरम इस्तीफा नहीं देंगे। उनने तो कांग्रेसी परंपरा का पालन किया। मनमोहन सिंह जब वित्त मंत्री थे। तो उनने अपना टैक्स प्रपोजल वर्ल्ड बैंक के अधिकारी प्रिस्टन को पहले ही लिखकर भेज दिया था।
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