आर्थिक सर्वेक्षण पेश हुआ। तो अपन को नरेंद्र मोदी की याद आई। अट्ठाईस जनवरी को बीजेपी काउंसिल में बोले। तो चिदंबरम को चुनौती दी- 'एनडीए शासित राज्यों की विकास दर निकाल दो। तो विकास दर की पोल खुल जाएगी। वाजपेयी राज से कम निकलेगी।' अब 8.7 फीसदी विकास दर देख सीताराम येचुरी बोले- 'विकास दर से सर्विस सेक्टर निकाल दो। तो विकास दर एक फीसदी से कम निकलेगी।' आप येचुरी के तेवरों से अंदाजा लगा लें। चुनाव की संभावनाएं बनने लगी या नहीं। याद करो, जब पांच दिसंबर को शीत सत्र में एटमी करार पर बहस हुई। लेफ्ट ने एनडीए के साथ वाकआउट किया। तो अपन ने छह दिसंबर को क्या लिखा था। अपन ने लिखा था- 'लेफ्ट ने गलती सुधारी, लोकसभा पर लटकी तलवार।' चौथे ही दिन दस दिसंबर को बीजेपी ने तुरत-फुरत फैसला किया।
अर्से से लटकी बोर्ड की मीटिंग हुई। आडवाणी पीएम पद के उम्मीदवार घोषित हुए। बीजेपी तब से चुनावी तैयारियों में जुट चुकी। आडवाणी 29 जनवरी को बीजेपी काउंसिल में बोले थे- 'कांग्रेस का इरादा कर्नाटक के चुनाव मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के साथ कराने का। इन चारों राज्यों के साथ लोकसभा चुनाव का इरादा भी।' अपन ने 31 जनवरी को नवंबर में मिड टर्म का अंदेशा जताया। दिल्ली के महारथी अखबारों ने अब मानना शुरू किया- 'इसी साल अक्टूबर-नवंबर में चुनाव के आसार।' लब्बोलुबाब यह- चुनावी तैयारियां जोरों पर। सो आज चिदंबरम का पहला आम आदमी बजट होगा। शुकर है चार साल बाद आम आदमी की याद आई। कहते हैं ना- 'दिया जब रंज बुत्तों ने, तो खुदा याद आया।' एटमी करार पर सरकार न भी गिरे। तो भी इसी साल चुनाव के आसार। गुरुवार को पेश हुए आर्थिक सर्वेक्षण का लब्बोलुबाब यही। आर्थिक स्थिति कोई अच्छी नहीं। अगले साल आर्थिक हालत और बिगडेग़ी। मनमोहन-चिदंबरम साढ़े आठ फीसदी विकास दर का कितना ढिंढोरा पीटें। पर सच्चाई यह- यह विकास दर वाजपेयी ही शुरू कर गए थे। गुरुवार को चिदंबरम ने माना- 'लगातार पांच साल से 8.7 फीसदी विकास दर अच्छा लक्षण।' पर कृषि का जो बंटाधार हुआ। उद्योगों का जो विकास रुका। इंफ्रास्टक्चर के विकास को जो जंग लगी। यह सब किसी से छुपा नहीं। आर्थिक सर्वेक्षण में साफ लिखा है- 'दस फीसदी का तो सपना बेमानी। नौ फीसदी भी चुनौती।' मनमोहन-चिदंबरम तो दस फीसदी का ढिंढोरा पीट रहे थे। चिदंबरम का ख्याली पुलाव नहीं पका। तो बाजार गिरने लगा। सेंसेक्स में गिरावट मंदी का संकेत। अगले साल की मंदी कांग्रेस का और बंटाधार करे। सो उससे पहले ही चुनाव निपटाने की रणनीति। वैसे अपन याद करा दें। नरसिंह राव के राज्य में जब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। तब भी सिर्फ आखिरी साल कांग्रेस को आम आदमी की सुध आई। इस बार भी आम आदमी की सुध आखिरी साल। इनकम टेक्स में मिडिल क्लास को राहत मिले। तो अपन को हैरानी नहीं होनी। हाउसिंग लोन पर तो ब्याज गिरेंगे ही। गरीबों को कम ब्याज पर हाउसिंग लोग का नया फार्मूला भी होगा। हाउसिंग सेक्टर की बात चली। तो बताते जाएं- यूपीए सरकार ने एनडीए के किए कराए पर पानी फेरा। एनडीए सवा सात फीसदी ब्याज दर छोड़ के गई थी। अब ग्यारह फीसदी ब्याज दर। डेढ़ गुना ब्याज दर हुआ। सो हाउसिंग सेक्टर का विकास रुका। सड़कें तो यूपीए की प्राथमिकता थी ही नहीं। विकास दर कहां से निकलती। एनडीए सर्विस सेक्टर के भरोसे 8.7 फीसदी छोड़कर नहीं गई थी। मनमोहन-चिदंबरम ने चार साल जो इंडिया शाइनिंग दिखाया। अब उसकी पोल खुलने का वक्त। पर अपन बात कर रहे थे चुनावी राहतों की। विपक्ष को भी किसानों के कर्ज माफी की भनक। इसीलिए तो तीन दिन से संसद नहीं चली। अपने सोमनाथ बाबू का गुस्सा सातवें आसमान पर। बोले- 'लोकतंत्र की हत्या करने में ओवर टाइम लगा रहे हैं सांसद।' पर अपने सोमनाथ बाबू तो यह बात हर छटे महीने कहने के आदी।
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