राबर्ट आए, तो दिखा करार का साइड इफेक्ट

Publsihed: 28.Feb.2008, 06:11

एटमी करार पर संसद गर्म होगी ही। करार के साइड इफेक्ट अभी से सामने आने लगे। अपन इन साइड इफेक्टों का छह महीने पहले खुलासा कर चुके। सो लब्बोलुबाब यह- बजट सत्र सरकार की शामत बनेगा। इसमें अपन को कोई अंदेशा नहीं। फिलहाल किसानों की खस्ता हालत मुद्दा। आगे-आगे देखिए। सरकार की हालत खस्ता दिखेगी। यों तो एनडीए-यूएनपीए में छत्तीस का आंकड़ा। पर किसानों के मुद्दे पर दोनों एकजुट। बुधवार दूसरे दिन भी संसद नहीं चली। एनडीए-यूएनपीए चुप होंगे। तो यूपीए खुद ही हंगामा खड़ा करेगा। यूपीए का मुद्दा होगा- राज ठाकरे। राज के मुद्दे पर सारी संसद एकजुट दिखेगी।

सो यूपीए को कोई फायदा नहीं। कांग्रेस को महाराष्ट्र में नुकसान हो। यह अलग बात। पर बात किसानों की। कहते हैं ना- 'कबूतर के आंख बंद करने से बिल्ली नहीं भागती।' अभिभाषण में किसानों के दशा पर आंखें मूंदी थीं सरकार ने। संसद से ऐसा खिलवाड़ करेगी सरकार। तो हंगामे होंगे ही। अंग्रेजों जैसी मक्कारी आ गई अपनी सरकार में। लालू के रेल बजट को ही देखो। उनने टिकटें सस्ती करने का एलान कर सस्ती लोकप्रियता बटोरी। पर लालू की कथनी-करनी में फर्क देखिए। बजट को तफ्शील से पढ़ने पर पता चला- 'किराए में कटौती सिर्फ तीन महीने होगी।' बाकी नौ महीने वही किराया। लालू झुनझुना थमाकर जेब काटने में माहिर। उनने पांचों साल किराया नहीं बढ़ाया। पर बिना एलान ही रिटर्न टिकट पर दस रुपए लगा दिए। दो साल से दस रुपए की जेब कटनी शुरू। सालभर में एक हजार करोड़ का मुनाफा इसी से। बजट में ऐसी मक्कारी इस बार चिदंबरम भी दिखाएंगे। पेट्रोलियम-फर्टेलाइजर बांडों का जिक्र कहीं नहीं होगा। सीधे पचास हजार करोड़ का जादू। पर अपन बात कर रहे थे एटमी करार की। वियना में आईएईए से आखिरी दौर की बातचीत शुरू। इस बार काकोड़कर नहीं, आरबी ग्रोवर गए। बुधवार को चेन्नई में काकोड़कर बोले- 'वियना में बातचीत प्रगति पर।' अब लेफ्ट के फच्चर से करार अटके। तो अमेरिका का कसूर नहीं। सो अमेरिकी रक्षामंत्री राबर्ट गेट्स वसूली करने दिल्ली आ पहुंचे। मनमोहन की मदद के लिए उनने आडवाणी से मुलाकात की। पर असली बात वसूली की। ताकि सनद रहे सो अपन याद करा दें। एटमी करार का ड्राफ्ट तीन अगस्त 2007 को जारी हुआ। पर अपन ने 29 जुलाई को ही खुलासा किया था। अपना हेडिंग था- 'अपना सिर एनएसजी देशों की कड़ाही में।' जिसमें अपन ने लिखा- 'अपन ने विदेश नीति गिरवी रखी। सामरिक हित गिरवी रखे। एयरक्राफ्ट-एफडीआई की शर्तें मानी।' अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने कहा था- 'करार के साथ कोई शर्त नहीं।' पर 28 अगस्त को 126 एयरक्राफ्टों का टेंडर जारी हो गया। तो अपन ने 29 अगस्त को लिखा- 'एयरक्राफ्ट का टेंडर करार का साइड इफेक्ट।' जिसमें अपन ने बताया- 'प्रणव दा के साथ बैठे रक्षामंत्री एंटनी लेफ्टियों को समझा रहे थे। तो रक्षा मंत्रालय ने अमेरिका से 126 एयरक्राफ्ट खरीदने की रणनीति बन रही थी। इधर 126 फाइटर एयरक्राफ्ट खरीदने का टेंडर निकल गया। छह कंपनियों को बुलावा। जिसमें दो कंपनियां अमेरिका की। सिर्फ अपन को नहीं। कूटनीति के माहिरों को भी शक। टेंडर अमेरिकी कंपनी के नाम खुलेगा।' अपन ने बयालीस हजार करोड़ के साइड इफेक्ट तभी बता दिए थे। छह महीने बाद अपना कहा सही निकला। बुधवार को राबर्ट गेट्स-एके एंटनी में सहमति हो गई। एयरक्राफ्टों की खरीददारी में अमेरिकी कंपनियों को मौका मिलेगा। अपन अमेरिकी पेंच बता दें। अमेरिकी कानून के मुताबिक एंडयूजर एग्रीमेंट होगा। जिसके तहत अमेरिका को हथियारों की तैनाती स्थल पर इंस्पेक्शन का हक होगा। बस समझौते में यही पेंच बाकी। अमेरिका को पता है- लेफ्ट तो अड़ंगा डालेगा ही। सो बीजेपी को पटाने की कोशिश। पर करार का साइड इफेक्ट तो अपन पहले ही बता चुके।

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