पाक में जमहूरियत का आगाज काबिल-ए-तारीफ

Publsihed: 19.Feb.2008, 20:40

जमहूरियत के लिए अच्छा दिन। एक साथ दो खबरें आई। क्यूबा से फिदेल कास्त्रो ने रिटायरमेंट ली। तो अपन को क्यूबा में जमहूरियत का आगाज दिखा। अपने लेफ्टिए यह पढ़कर जरूर खफा होंगे। पर क्यूबा में पचास साल से कम्युनिस्ट राज चला। जो अब आगे ज्यादा नहीं चलना। कास्त्रो का इंदिरा के जमाने से अपने साथ गहरा रिश्ता रहा। कास्त्रो-इंदिरा का आलिंगन काफी मशहूर हुआ। फिदेल कास्त्रो ने यों तो डेढ़ साल पहले ही हुकूमत छोड़ दी थी। पर अब रिटायरमेंट का एलान हुआ। कास्त्रो बीमार पड़े। तो अपने भाई को कमांडर इन चीफ बना दिया। पता नहीं, कम्युनिस्ट इसे कैसे सही ठहराएंगे।

शायद कम्युनिस्टों का परिवारवाद से गहरा लगाव। तभी तो अपने यहां भी नेहरू परिवार के पिछलग्गू। कांग्रेस की बात चली तो बताते जाएं। गुजरात-हिमाचल ने कांग्रेस के परिवारवाद की कमर तोड़ दी। अपन ने हिमाचल के नतीजों की छानबीन की। तो पता चला- कांग्रेस दस सीटें मायावती की वजह से हारी। अब एमपी-राजस्थान-छत्तीसगढ़-दिल्ली के चुनाव इसी साल। चारों राज्यों में मायावती कांग्रेस की लुटिया डुबोएगी। सो सोनिया-राहुल के तेवर ढीले पडने लगे। सोमवार की रात मां-बेटे की मायावती से गुफ्तगू हुई। पर मायावती का काटा पानी नहीं मांगता। अपन पहले भी बता चुके- 'मनमोहन-सोनिया यूपी का पैकेज दे नहीं सकते।' मायावती फुफकारना छोड़ नहीं सकती। पर अपनी जमहूरियत की बात बाद में। पहले उस दूसरी खबर की बात। जिसका अपन ने शुरू में जिक्र किया। क्यूबा के साथ पाक में भी लोकतंत्र का आगाज दिखा। अपने यहां चौदहवीं लोकसभा तो पाकिस्तान में दसवीं नेशनल एसेंबली। ताकि सनद रहे। सो एक बात बताते जाएं। पाक में अब तक नौ चुनाव हुए। पहली बार होगा- 'जब मौजूदा सरकार उखड़ी। वरना जिस सरकार के राज में चुनाव हुए, वही जीती।' अपन ने तो सरकार उखाड़नी 1977 में ही शुरू कर दी थी। परिवारवाद को पहला झटका अपन ने 1977 में देखा। पर बात पाकिस्तान की। जहां जमहूरियत पर पहले दिन से किसी प्रेत का साया रहा। सरकार सिर्फ तब उखड़ी। जब फौजी जूते सिहासन पर पहुंचे। इस बार फौजी शासक परवेज मुशर्रफ को लेने के देने पड़ गए। तो पाकिस्तान में यह नई बात हुई। यह बात अलग। जो नेशनल एसेंबली में किसी को बहुमत नहीं मिला। पाक की नेशनल एसेंबली अपन से आधी। अपनी लोकसभा 554 की। तो पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली 272 की। बेनजीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सबसे आगे। दूसरे नंबर पर नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग। परवेज मुशर्रफ की मुस्लिम लीग की तो लुटिया डूब गई। आपको याद होगा। अपन ने लिखा था- 'बेनजीर पाक में अमेरिकी दबाव में लौटी। सो नवाज शरीफ का पलड़ा भारी रहेगा।' पर बेनजीर भुट्टो की हत्या ने तस्वीर बदल दी। बेनजीर भुट्टो की हत्या से नवाज शरीफ को दोहरा नुकसान हुआ। एक तो दूसरे नंबर पर आए। दूसरा- भुट्टो की हत्या न होती। तो नवाज शरीफ को स्पष्ट बहुमत मिलता। सिर्फ नेशनल एसेंबली ही नहीं। पंजाब में भी किसी को बहुमत नहीं मिला। वहां नवाज शरीफ की पार्टी सबसे बड़ी रही। पर बहुमत से चालीस सीटें कम। बेनजीर की पार्टी भी पंजाब में अस्सी सीटें ले गई। यानी नेशनल सरकार के साथ पंजाब में भी पीपीपी-पीएमएल साझा सरकारें बनेंगी। जहां तक बात सिंध की। तो बेनजीर की पार्टी को स्पष्ट बहुमत। नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस और ब्लूचीस्तान में लंगड़ी एसेंबलियां। पर एक बात बताते जाएं। अफगानिस्तान से लगते नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में मुल्ला-मुलवियों को करारी हार मिली। इससे अपन को जनादेश की रूह समझ आने लगी। राजनीति क्या-क्या नहीं कराती। मायावती-सोनिया मिलेंगे, या नहीं। अपन नहीं कह सकते। पर जीते जी बेनजीर-नवाज गठजोड़ करीब-करीब हो ही गया था। अब भी पीपीपी-पीएमएल सरकार बनेगी। पर आसिफ अली जरदारी पीएम बनें। तो पाकिस्तान का रब ही वाली। बेनजीर के जमाने में जरदारी मिस्टर-10 परसेंट रिश्वतिए के तौर पर मशहूर थे।

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