अपन को तो नहीं लगता सरकार गिरेगी। पर राम जी कब क्या करा दें। कौन जाने। चाय की एक प्याली के तूफान ने ग्यारहवीं लोकसभा भंग करा दी थी। याद है सुब्रह्मण्यम स्वामी की चाय पार्टी। जहां दो महिलाओं के मिलन ने वाजपेयी सरकार गिरा दी। पर वाजपेयी को उसका फायदा ही हुआ। चुनाव के बाद बारहवीं लोकसभा बनी। तो अटल को किसी चंद्रबाबू की चिट्ठी का इंतजार नहीं करना पड़ा। पर बात हो रही है तेरहवीं लोकसभा की। जिसका राम नाम कब सत्य हो जाए। कोई भरोसा नहीं। एक तरफ लेफ्ट का डंडा। दूसरी तरफ डीएमके का फंडा। रामसेतु तोड़ सेतुसमुद्रम बनाना डीएमके का एजेंडा। तो अमेरिका से एटमी करार पर लेफ्ट का अड़ंगा। डीएमके का फंडा और लेफ्ट का डंडा मनमोहन के गले की हड्डी।
मौजूदा हालात में न करार सिरे चढ़ता दिखता। न सेतुसमुद्रम बनता। राम-राम करते जनवरी निकल गई। चिदंबरम-चिदंबरम करते फरवरी भी निकल जाएगी। पर मनमोहन की असली शामत मार्च-अप्रेल में आएगी। पहले सेतुसमुद्रम की बात। भगवान राम तो पैदा ही नहीं हुए। यह हल्फिया बयान तो सरकार ने सितंबर में वापस ले लिया था। पर चार महीने बीत गए। नया हल्फिया बयान तैयार नहीं हुआ। दो कमेटियां बनी थी। एक एक्सपर्ट कमेटी। दूसरी केबिनेट कमेटी। किसी बवाल पर कोई केबिनेट कमेटी बने। तो समझ लो उसके चीफ प्रणव दा ही होंगे। एक्सपर्ट कमेटी की रपट आ गई। पर प्रणव कमेटी में रपट पर सहमति नहीं। ताजा रपट भी लेफ्टिया अंदाज की। कहती है- 'रामसेतु किसी ने नहीं बनाया।' सो केबिनेट कमेटी में अंबिका-बालू आमने-सामने। पिछली बार हल्फिया बयान पर अंबिका की पेशी हुई थी। सो अब अंबिका अपना सिर नहीं फुड़वाना चाहती। एक्सपर्ट कमेटी के कहे पर हल्फिया बयान हुआ। तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ होगा। सो गुरुवार को भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मोहलत मांगी। कोर्ट ने एक बार फिर चार हफ्ते की मोहलत दे दी। यानी मार्च के पहले हफ्ते तक मुसीबत टली। सेतुसमुद्रम गुजरात की तरह कांग्रेस के गले की हड्डी। रामसेतु पर संघ परिवारियों का आंदोलन तो था ही। अब नौसेना भी सेतुसमुद्रम के खिलाफ। पहले 21 जनवरी को नौसेना प्रमुख सुरेश मेहता डरते-डरते बोले। कहा- 'सेतुसमुद्रम से कोई फायदा नहीं होगा।' मेहता उस दिन चेन्नई में थे। सो ज्यादा नहीं बोले। क्या पता बालू सेना क्या कुफ्र ढहा देती। अब समुद्री सीमाओं की रक्षा करने वाले संगठन के मुखिया रूसी कांट्रेक्टर बोले- 'रामसेतु टूटा। सेतुसमुद्रम बना। तो सुरक्षा के खतरे पैदा होंगे। सेतुसमुद्रम श्रीलंका के करीब होगा। जो दो दशक से गृहयुध्द का शिकार।' कहीं सेतुसमुद्रम यूपीए सरकार के कफन की आखिरी कील न बन जाए। सेतुसमुद्रम कफन की कील न बना। तो एटमी करार बनेगा। करार का इम्तिहान भी मार्च में। अपने काकोड़कर भी गुरुवार को बता रहे थे- 'फरवरी मध्य में आईएईए से सेफगार्ड की बात पूरी हो जाएगी।' यों मनमोहन सिंह फरवरी में लेफ्ट से पंगा नहीं लेंगे। पहले बजट निपटवाएंगे। सो फरवरी तो चिदंबरम-चिदंबरम करते निकल जाएगी। पर मार्च में करात-मनमोहन आमने-सामने होंगे। सरकार का इरादा वाया रूस-चीन-फ्रांस करार सिरे चढ़ाने का। पर वह तो तब होगा। जब आईएईए सेफगार्ड तय हों। एनएसजी ईंधन की छूट दे। पर लेफ्ट का तो इसी में अड़ंगा। धमकियों-धुमकियों में बजट सत्र निकल भी गया। तो मानसून सत्र मारक साबित होगा। सोचो, जून में सरकार गिरी। तो नवंबर में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली के साथ चुनाव। मनमोहन का इरादा तब तक कर्नाटक को घसीटने का भी। आडवाणी ने मंगलवार को जबसे नवंबर का मंत्र फूंका। तब से राजनीतिक गलियारों में महीनों का जमा-घटाओ शुरू। अपन को यह सारा गणित कांग्रेस का ही एक नेता समझा रहा था। बोला- 'बाकी बचे छह-आठ महीने में वैसे भी मनमोहन सरकार क्या तीर मार लेगी। लोकलुभावन बजट के बाद ही चुनावी तिकड़म का बेहतरीन मौका।'
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