बीजेपी वर्किंग कमेटी में बिना बोले ही छा गए मोदी। सोमवार को काउंसिल में बोले, तो छाना ही था। पर राजनाथ का मोदीमंत्र बाकी सीएम को रास नहीं आया। मोदी की तारीफ से जैसे जल-भुन गए हों। अपनी वसुंधरा का वर्किंग कमेटी में नहीं आना खला। अपन को नहीं, हाईकमान को। काउंसिल में भी दोपहर बाद पहुंची। तो अपन ने लंबे समय बाद दिल्ली के खबरचियों से घुलते-मिलते देखा। शायद बिगड़ी छवि सुधारने की कोशिश। कुरेदा, तो राजनाथ के मोदी मंत्र से उखड़ी दिखी। बोली- 'सब राज्यों की परिस्थितियां अलग-अलग। सब जगह एक मंत्र नहीं चल सकता। कोशिश तो कर रहे हैं।'
बिल्कुल यही जवाब अपने शिवराज चौहान का भी था। यों काउंसिल में चौहान जमकर बोले। चुनाव जीतने की ताल भी ठोकी। पर बीजेपी हाईकमान का बच्चा-बच्चा हालात का वाकिफ। बीजेपी को सबसे बड़ी मार तो मध्यप्रदेश में ही पडेग़ी। जहां तक छत्तीसगढ़ की बात। तो चुनावी हालात मध्यप्रदेश-राजस्थान जैसे बुरे नहीं। विकास ही पैमाना हुआ। तो रमण सिंह का लौटना तय। प्रेमकुमार धूमल की पारी तो अभी-अभी शुरू हुई। पर उनने अपने तीस दिन का लेखा-जोखा पेश किया। धूमल के भाषण से एक बात तय हो गई। पार्टी में महिला आरक्षण बीजेपी की सोची-समझी रणनीति। धूमल बोले- 'भैय्यादूज और राखी पर छुट्टी। उस दिन महिलाओं को बसों में सफर मुफ्त।' महिला मंत्र के बारे में बता दें। सुषमा स्वराज ने पार्टी में महिलाओं को तैंतीस फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव रखा। तो हाथ खड़े करके पास करवाने का जोखिम नहीं उठाया। जरूर विरोध की आशंका रही होगी। वरना आडवाणी यह न कहते- 'प्रस्ताव तो पार्टी अध्यक्ष की ओर से पेश किया गया समझकर सर्वसम्मति से पास किया जाए।' तालियां बजवाकर प्रस्ताव पास मान लिया। महिलाएं मंच पर ऐसे चढ़ गई। जैसे बीजेपी पर कब्जा करना हो। आडवाणी-राजनाथ को बड़ी माला पहनाई गई। अपनी किरण महेश्वरी जैसे ही बोली- 'कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया।' राजनाथ सिंह के पांवों तले जमीन खिसक गई। बोले- 'आप क्या चाहती हैं, मैं भी इस्तीफा दूं।' झेंपती हुई किरण बोली- 'आप आगे भी सुन लीजिए।' उनने दुबारा शुरू किया- 'कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया। अन्नाद्रमुक की जयललिता। तृणमूल कांग्रेस की ममता। बसपा की मायावती। पर उनने अपनी पार्टियों में महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया।' अपन सुषमा-किरण को दुरुस्त करते जाएं। इन दोनों ने कांग्रेस का संविधान नहीं पढा। अट्ठारह दिसंबर 1998 में एआईसीसी ने अपना संविधान संशोधित किया। महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण पास हुआ। सत्रह मार्च 1999 को सीडब्ल्यूसी ने नए नियमों पर मोहर लगाई। यह अलग बात। जो कांग्रेस में आरक्षण लागू नहीं हुआ। बीजेपी में आरक्षण लागू होगा। इस बात की क्या गारंटी। पर बात हो रही थी मुख्यमंत्रियों के भाषण की। उत्तराखंड के सीएम पता नहीं कहां गायब हो गए। पर अपन बात कर रहे थे नरेंद्र मोदी की। जो पहले दिन बिना बोले छाए। पर दूसरे दिन मोदी का मीडिया ने भी इंतजार किया। मोदी ने बाकी मुख्यमंत्रियों की तरह विकास की रपट पेश नहीं की। उनने तो सीधे चिदंबरम को चुनौती दी। बोले- 'जिस विकास दर का भौंपू बजा रहे हो। उसमें से एनडीए शासित राज्य निकाल दो। विकास दर की पोल खुल जाएगी। वाजपेयी काल की विकास दर कहीं ज्यादा निकलेगी।' केंद्र के खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजाते हुए उनने कहा- 'बजट सत्र में राजग राज्यों से भेदभाव को मुद्दा बनाया जाए। सत्र के समय सारे मुख्यमंत्री दिल्ली आकर आंदोलन करें।' मोदी ने एनडीए का एजेंडा तय कर दिया। उनने मनमोहन-सोनिया को आतंकवाद और बजट के सांप्रदायीकरण पर घेरा। बोले- 'बजट का सांप्रदायीकरण धर्मांतरण को हवा देगा। अंग्रेज जो ढाई सौ साल नहीं कर सके। वह मनमोहन-सोनिया कर देंगे।' बजट के सांप्रदायीकरण के खिलाफ आंदोलन का बिगुल भी बजाया। विकास का एजेंडा और सांप्रदायिक राजनीति पर चोट। यही है मोदित्व।
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