मुर्गेबाजों के रोजे शुरू हुए देशभर में

Publsihed: 24.Jan.2008, 20:39

king-cock.jpgएक ऐसा प्रेस नोट जो आया नहीं। पर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में चुहुलबाजी होती रही। बुध्ददेव सरकार लंबी तानकर सोई रही। सरकार वक्त पर जागती। तो सिंगूर, नंदीग्राम, नंदलाल मार्केट की आग वक्त पर बुझ जाती। बुध्ददेव लंबी तानकर न सोते। तो महाराष्ट्र की तरह बर्ड फ्ल्यू को वक्त पर काबू पा लिया जाता। गुरुवार को केबिनेट मीटिंग हुई। तो अपने शरद पवार ने बर्ड फ्ल्यू का हिसाब-किताब दिया। केबिनेट के बाद प्रियरंजन दासमुंशी बता रहे थे। अब दासमुंशी बोलेंगे, तो राजनीतिक तड़का लगाएंगे ही। सो उनने कहा- 'लेफ्टियों की सरकार ने एक हफ्ते देरी से केंद्र को जानकारी दी। बर्ड फ्ल्यू शुरू हुआ था चार जनवरी को। बंगाल सरकार ने केंद्र को बताया ग्यारह जनवरी को।' पर अपन बात आगे बढ़ाएं। पहले केंद्र सरकार की क्लास लेते जाएं।

लंबी तानकर सोने में दासमुंशी की केंद्र सरकार भी पीछे नहीं रही। केंद्र सरकार ने बर्ड फ्ल्यू की पुष्टि पंद्रह जनवरी को की। चार दिन मनमोहन सरकार भी सोई रही। जो बकौल दासमुंशी- बेहद फिक्रमंद। पर जहां तक बात बुध्ददेव सरकार की। तो उसके दिन सचमुच बहुत बुरे। पेटा के अधिकारी एनजी जयसिम्हा ने पोल खोलकर रख दी। गुरुवार को बोले- 'पेटा की अधिकारी रोहिणी कामत ने जून में चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी एनीमल हसबेंड्री के डायरेक्टर को भेजी। चिट्ठी में लिखा था- बेहतरीन हसबेंड्री मापदंड न अपनाए गए। तो बर्ड फ्ल्यू फैल जाएगा। पर पेटा को कोई जवाब तक नहीं आया।' पेटा ने तो यह भी कहा- 'मुर्गो को मारने का सही तरीका नहीं अपनाया जा रहा। अगर यही हाल रहा। तो बीमारी मुर्गो से आदमियों में आ जाएगी।' मुर्गो को मारने की बात चली। तो बताते जाएं- ग्यारह दिन बाद मुर्गे मारने शुरू किए गए। बंगाल के नौ जिलों में बीमारी फैल चुकी। इक्कीस लाख मुर्गे बीमारी की चपेट में। दस दिनों में साढ़े चार लाख मुर्गे ही मरे। इसकी तीन वजह। पहली- 'डाक्टरों की कमी।' दूसरी- 'मुर्गो के गरीब मालिकों का विरोध।' अपने शरद पवार बता रहे थे- 'मुर्गे की आधी कीमत मनमोहन सरकार देगी। आधी बुध्ददेव सरकार।' पर अपने राजकुमार राहुल बाबा बता रहे थे- 'केंद्र से भेजा जाता है एक रुपया। आम आदमी तक पहुंचते हैं पंद्रह पैसे।' तो मुर्गों के गरीब-गुरुबे मालिक विरोध करेंगे ही। धीमी गति की तीसरी वजह- 'बंगाल में बारिश का कहर।' कहते हैं ना- मुसीबत अकेले नहीं आती। पर अपन बात कर रहे थे उस प्रेस नोट की। जो आया नहीं। तो यह प्रेस नोट है- सीपीएम हेडक्वार्टर गोपालन भवन से। लिखा है- 'मीडिया में बर्ड फ्ल्यू की बात आरएसएस और बीजेपी ने फैलाई। हमने चीन की वांग चू यूनिवर्सिटी से चेक करा लिया है। पता चला है- बीमारी बर्ड फ्ल्यू नहीं। अलबत्ता बर्ड फ्ल्यू जैसी ही कोई और बीमारी। सारा प्रचार बंगाल की तरक्की से जल-भुन कर फैलाया जा रहा है। हमारे मंत्रियों ने अपने समर्थकों की भीड़ के साथ उन घरों का दौरा किया। जहां गरीब परिवारों में पोलट्री फार्म हैं। मंत्रियों ने अफवाहों को बेकार साबित करने के लिए उन घरों में तंदूरी चिकन और बिरयानी बनवाकर खाई। क्या आरएसएस के नेता ऐसा कर सकते हैं। क्या उनमें ऐसी हिम्मत है। वे तो छुआछूत में विश्वास रखते हैं। मित्रों, विदेशी मीडिया के प्रचार में मत आओ। आपने देखा नहीं- सेंटर फॉर पब्लिक इंटेग्रीटी ने खुलासा किया है- इराक की जंग के वक्त अमेरिकी सरकार ने 935 झूठे बयान जारी किए। इनमें 260 झूठे बयान तो खुद जार्ज बुश ने दिए।' खैर बंगाल का बर्ड फ्ल्यू सारे देश में फैलने लगा। बिहार के पुर्णिया, कटिहार और किशनगंज तक। श्रीलंका ने अपने यहां से मुर्गे मंगवाने बंद कर दिए। अब देशभर में मुर्गेबाजों के रोजे शुरू समझो।

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