अपने गणतंत्र का महत्व देखिए। जनता के नेता जनता से सुरक्षित नहीं। गणतंत्र दिवस आते ही दिल्ली हर साल किला बनने लगी। इंडिया गेट की सैर आम लोगों के लिए बंद। नेताओं की सुरक्षा की बात चली। तो एक दिलचस्प किस्सा सुनाते जाएं। अपनी यूपी की सीएम मायावती आजकल बेहद डरी हुई हैं। दो बार शिवराज पाटिल को एसपीजी के लिए लिखकर भेजा। मायावती को गैर कानूनी मांग पर परहेज नहीं। कोई आम आदमी गैर कानूनी काम करे। तो जेल भेज दिया जाए। पर एसपीजी की राजनीति के आगे सब बौने। केंद्र सरकार से जवाब नहीं बन पा रहा। सो मायावती ने 23 जनवरी को तीसरी चिट्ठी भिजवाई।
पर अपन पहले भी लिख चुके। एसपीजी की बेजा मांग पर अमल संभव नहीं। यह बात मायावती को भी मालूम। सो मायावती ने अपनी एसपीजी बनाने की ठान ली। कमांडो ट्रेनिंग का ठेका इस्राइल की एक कंपनी बेनटेन को थमा दिया। अब कमांडो ट्रेनिंग पर यूपी सालाना 24 करोड़ खर्च करेगी। एक तरफ गणतांत्रिक देश के मुख्यमंत्री की सुरक्षा का सवाल। दूसरी तरफ गणतांत्रिक देश के उसी प्रदेश में बुंदेलखंड के किसानों की दुर्दशा देखने लायक। जहां अपने राहुल गांधी राजनीति की शतरंज बिछाकर आए। राहुल की बात चली। तो बताते जाएं- राहुल भी अब राजमहल से बाहर निकलने लगे। बुधवार को वीरप्पा मोईली ने लंच पर बुलाया। तो खबरचियों से मिलने राहुल भी आ पहुंचे। कांग्रेस की दशा-दिशा पर बात हुई। तो बोले- 'हार से निराश नहीं। सोनिया तो काम के बोझ से बीमार हुईं। मैं और प्रियंका तो समझाकर थक गए। बीच में छुट्टी नहीं लेतीं।' राहुल बाबा ने कांग्रेस में नए खून का इशारा किया। पर अपन बात कर रहे थे गणतंत्र दिवस की। अपनी मनमोहन सरकार ने सरकोजी को न्योता भेजा। तो सोचा नहीं होगा। इतना झमेला खड़ा होगा। गर्लफ्रेंड कार्ला ब्रूनी का विवाद थमा नहीं। तसलीमा का शुरू हो गया। बात लगभग एक साथ हुई। इधर फ्रेंच राष्ट्रपति को गणतंत्र दिवस पर बुलाना तय किया। उधर नौ जनवरी को फ्रांस ने तसलीमा को 'सिमो द बूवा' से सम्मानित करना तय कर दिया। सम्मान का मुद्दा है- 'महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई।' 'सिमो द बूवा' फ्रांस में महिलाओं का सर्वोच्च सम्मान। राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी भारत आ ही रहे थे। सो सोमवार की रात तसलीमा को फ्रेंच सरकार से फोन आया- 'राष्ट्रपति सरकोजी आपको दिल्ली में सम्मानित करना चाहेंगे।' कार्ला ब्रूनी ने तो खुद दौरे से अलग हो मनमोहन सरकार और सरकोजी को मुसीबत से निकाला। पर मनमोहन के सिर नई मुसीबत आ गई। तो अपने विदेश मंत्रालय के हाथ-पांव फूल गए। विदेशी मेहमान आकर तसलीमा को सम्मानित कर गया। तो कांग्रेस का मुस्लिम वोटर नाराज होगा। आखिर मुस्लिम वोटों के लिए ही तो बुध्ददेव ने तसलीमा को बंगाल से निकाला। बेचारी तसलीमा दिल्ली के किसी कोने में एक कमरे में बंद। एक खबरची ने किसी तरह संपर्क साधा। तो बोली- 'मैं सरकोजी के हाथों सम्मान लेना चाहती हूं। पर मुझे बताया गया है- यह संभव नहीं।' सरकोजी के इरादों की भनक लगते ही सेकुलर सरकार के पसीने छूटे। सो फ्रेंच सरकार को कहा गया- 'आप तसलीमा को भारत में सम्मानित नहीं कर सकते।' सरकोजी की यह मुसीबत टली। तो फ्रांस की एक फैक्ट्री में करिंदों की कटौती का बवाल खड़ा हो गया। बवाल का रिश्ता भारत से। फैक्ट्री अपने लक्ष्मी मित्तल की। सो मित्तल को बुलावा गया। पर मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी मुसीबत तो अब आएगी। जब निकोलस सरकोजी भारत पहुचेंगे। सरकोजी के खिलाफ दिल्ली और पंजाब में प्रदर्शन होंगे। प्रदर्शन की वजह है- फ्रांस के स्कूलों में सिख बच्चों को पगड़ी पहनने पर रोक लगना। फ्रांस सरकार का कहना है- 'पगड़ी धार्मिक निशान।' पर सिखों का कहना है- 'यह धार्मिक निशान नहीं। अलबत्ता सिखों की पहचान।' सरदार मनमोहन सिंह ने सोचा नहीं होगा। सरकोजी को बुलाकर उनने कितनी बड़ी मुसीबत मोल ली।
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