मनमोहन सिंह आज रात चीन उड़ेंगे। नेहरू हों या वाजपेयी। सवाल चीन का हो। तो दोनों गलतियों के पुतले। नेहरू ने भारत-चीन भाई-भाई का डंका पीट धोखा खाया। अपनी 90 हजार वर्ग किमी जमीन अब भी चीन के कब्जे में। वह 21 नवंबर 1962 किसे भूलेगा। जब चीन ने बीस किमी घुसकर एकतरफा सीजफायर किया। जमीन वापस लेने के अपने संसदीय प्रस्ताव पर धूल जम चुकी। प्रस्ताव तो पाक के कब्जे वाले कश्मीर को लेने का भी। पर किसी पीएम की हिम्मत नहीं। कारगिल के वक्त भी जब अपना हाथ ऊपर था। तो वाजपेयी की हिम्मत नहीं हुई। आगे बढ़ रही फौजें मढ़ी तक पहुंच जाती। तो वाजपेयी भारत रत्न हो जाते।
पर अपने वाजपेयी तब अमेरिका के दबाव में आ गए। अपन ने दोनों को गलतियों का पुतला सोच-समझकर कहा। नेहरू ने अपनी 90 हजार वर्ग किमी जमीन गवाई। तो वाजपेयी चार साल पहले तिब्बत को चीन का हिस्सा बता आए। अब मनमोहन सिंह क्या गुल खिलाएंगे। कौन जाने। मनमोहन सिंह चीन जाने वाले पांचवें पीएम। नेहरू के बाद राजीव, नरसिंह राव और वाजपेयी जा चुके। अपने विदेश सचिव शिवशंकर मेनन बता रहे थे- 'सीमा विवाद पर बातचीत में खासी प्रगति हो चुकी।' कैसी प्रगति हुई। उसका नमूना अपन ने पिछले साल नवंबर में देखा। जब चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ भारत आने वाले थे। तो चीनी राजदूत सुन युक्शी ने अरुणाचल पर दावा जता दिया। अरुणाचल के अपने एमपी पिछले संसद सत्र में ही बता रहे थे- चीन आगे बढ़ रहा है। अपने चीन के साथ पांच बार्डर। पांचों ही बार्डरों में चीन की घुसपैठ। मनमोहन सिंह ने चीन जाने से पहले चीनी एजेंसी सिंहुआ को दिए इंटरव्यू में कहा- 'दोनों देश जल्द से जल्द सीमा विवाद सुलझाने को आतुर।' उनका एजेंडा वही पुराना। बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले। यानी कब्जे को बड़ा मुद्दा न बनाएं। संसद के प्रस्ताव को भूल जाएं। बिजनेस की सुध लें। सो अबके मनमोहन सिंह के साथ बिजनेसमैन भी जमकर जाएंगे। बिजनेस की बात चली तो बता दें। चीन ने 1962 में अपनी जमीन में घुसना शुरू किया। तो नेहरू ने पहली जून को वापस जाने की गुहार लगाई। अगले दिन चीन ने साफ इंकार कर दिया। तो नेहरू ने तीन जून को जो पहला काम किया। वह था- चीन के साथ व्यापारिक समझौता रद्द करने का। यों शुक्रवार को अपने विदेश सचिव शिवशंकर मेनन बता रहे थे- 'अब अपना दुनिया से जितना व्यापार। उसमें चीन का नंबर दूसरा।' यों उनने यह बताने में कोई झिझक नहीं की- 'अपन आयात में अव्वल। निर्यात में नहीं।' सो अबके मनमोहन सिंह चीन पर आयात का दबाव डालेंगे। आयात-निर्यात की बात चली। तो बता दें- चीन अपन से काटन का खरीददार। अपने अलावा अमेरिका से भी खरीदता है काटन। पर चीन की नियत पर शक होना वाजिब। पिछले साल भारत से काटन मंगवाने पर कई पाबंदियां लगीं। अब जब अपने मनमोहन चीन जा रहे थे। तो किसान यात्रा पर निकले राजनाथ सिंह ने याद दिलाया। मनमोहन सिंह से बोले- 'जरा काटन की बात करके आना।' पर मनमोहन सिंह को किसानों की उतनी फिक्र नहीं। जितनी उद्योगपतियों की। वरना उद्योगपतियों के साथ किसानों का नुमाइंदा भी ले जाते। पर मनमोहन चीन जा रहे हैं। तो वक्त का फंडा भी समझा दें। जब मनमोहन चीन में होंगे। तभी विएना में एटमी करार पर आईएईए से आखिरी बात हो रही होगी। एटमी करार पर लेफ्ट का फच्चर तो आपको पता ही है। मनमोहन चीन का फायदा कर आएंगे। तो लेफ्ट का फच्चर भी निकल जाएगा। आईएईए से बात पूरी होगी। एनएसजी से बात शुरू होगी। शिवशंकर मेनन बोले- 'एटमी करार पर चीन से भी समर्थन की उम्मीद। आखिर चीन ने तारापुर के लिए यूरेनियम दिया ही था।'
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