अपन ने कल क्रिकेट पर कलम घिसाई। अंपायरों की टुच्चई बताई। अंपायरों के खिलाफ बीसीसीआई ने आंखें दिखाई। तो आईसीसी के होश फाख्ता हो गए। बकनर को पर्थ टेस्ट की अंपायरी से हटाना पड़ा। मार्क बेनसन को अंपायरी करनी ही नहीं थी। जहां तक भज्जी की बात। तो अपील पर आयोग बन गया। जब तक रपट नहीं आती। अपने भज्जी खेलेंगे। देखा, आंख दिखाने का असर। तभी तो अपने नवजोत सिद्दू ने बीसीसीआई की तारीफ की। वरना सिद्दू और बीसीसीआई की तारीफ कर दें। क्रिकेट का विवाद फिलहाल थमा। तो अपन अपनी पर लौट आएं। तो आज बात बीजेपी की। अपने ओम माथुर की ताजपोशी शानदार ढंग से हुई। अहमदाबाद में मोदी के विजयरथ पर पीछे खड़े थे।
वह अपन ने 26 दिसम्बर को बताया ही था। पर जयपुर में विजयरथ के हीरो। अध्यक्ष की अदला-बदली जंग-ए-मैदान न बनती। तो अपन विजयरथ लिख ही न पाते। पर तब न ऐसी ताजपोशी होती, न ऐसा विजयरथ निकलता। वसुंधरा ने विवाद का ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ा। पर आडवाणी मुफ्त में बदनाम हुए। न माथुर की तैनाती से खफा थे। न उनने कहीं नाराजगी जाहिर की। आडवाणी-राजनाथ की जंग का फर्जीवाड़ा हुआ। अब राजनाथ की बात चली। तो अपन 29 दिसंबर वाली मीटिंग याद कराएं। उस दिन आडवाणी ने लोकसभा चुनावों की तैयारी शुरू की। अपने घर मीटिंग में बारह लोग बुलाए। अपने माथुर-मोदी और राजनाथ भी। जसवंत, जोशी, सुषमा। जेटली, अनंत, रामलाल। चंदन, शौरी, कुलकर्णी। आखिरी तीनों आडवाणी के वफादार पुराने खबरची। आडवाणी की क्लास से निकले फार्मूलों की रपट का जिम्मा जेटली का था। अनंत-सुषमा-शौरी-कुलकर्णी-विजय सहस्त्रबुध्दे भी साथ जुड़े। सहस्त्रबुध्दे रामभाऊ म्हालगी प्रबोधनी के सचिव। सुषमा के घर फालोऑप मीटिंग हुई। दोनों मीटिंगों में अपने सुधींद्र कुलकर्णी भी थे। वही, जिनके नाम पर संघ बिदका था। मीडिया ने फिर से आग लगाने की कोशिश की। तो तय हुआ- कुलकर्णी पर्दे के पीछे ही काम करेंगे। जैसे 1998 से पहले करते थे। आडवाणी की कोर कमेटी में जो डिस्कस हुआ। जेटली-अनंत-सुषमा कमेटी ने उसी की रपट बना आगे बढ़ाया। ताकि फिर विवाद खड़ा न हो। सो रपट की एक कापी आडवाणी को, तो दूसरी राजनाथ को दी। ताकि पॉवर सेंटर का फंडा न खड़ा हो। सो चुनाव मैनेजमेंट कमेटी की चेयरमैनी राजनाथ को दी। पर विवाद कहां थमा। मंगल को सुषमा ने रपट बताई। तो खुड़पेंचों ने पेंच निकाल ही लिया। बोले- 'तो राजनाथ को अध्यक्षी से हटाकर चुनाव कमेटी की मैनेजमेंटी थमा दी।' पर खुड़पेंचों की बात छोड़ दें। तो चुनावी रणनीति हू-ब-हू वही। जो मोदी-माथुर की जोड़ी ने रखी थी। जिसका कुछ जिक्र तो अपन ने 30 दिसंबर को ही किया। ताकि सनद रहे। सो बता दें- माथुर ने कैसे-कैसे सुझाव दिए। जैसे- उन तीन सौ सीटों पर जोर हो। जो पिछले छह चुनावों में कभी न कभी जीती। उम्मीदवारों को चुनने का काम अभी शुरू हो जाए। पैंसठ फीसदी उम्मीदवार कम से कम ग्रेजुएट हों। साठ साल से कम हों। साठ-पैंसठ सीटें औरतों को दी जाएं। औरतों की सीटें पहले से शिनाख्त कर ली जाएं। सभी राज्यों में सम्मेलन और रैलियां हों। जिन्हें आडवाणी-राजनाथ दोनों संबोधित करें। इस साल के चुनावी राज्यों के नट-बोल्ट कसे जाएं। गठबंधन की बातें अभी से शुरू हो जाएं। ताकि एनडीए ताकतवर दिखे। तो मंगलवार को सुषमा ने बताया- 'दस चुनावी राज्यों पर जोर होगा। राजनाथ की रहनुमाई वाली चुनाव मैनेजमेंट कमेटी बना दी गई। सभी प्रदेश अध्यक्ष दिल्ली तलब होंगे। चुनावी आंकलन होगा। गठबंधन पर चर्चा होगी। सभी राज्यों में रैलियां होंगी। आडवाणी-राजनाथ संबोधित करेंगे। अनंत कुमार का जिम्मा रैलियां करवाने का। सुषमा एनडीए का तालमेल संभालेंगी।' यानी माथुर-मोदी की रणनीति देशभर में अपनाई जाएगी। पर चुनाव मैनेजमेंट कमेटी से दोनों गायब।
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