जगदम्बिका से ओपनिंग कराकर फंसी कांग्रेस

Publsihed: 07.Dec.2009, 23:55

बहुत शोर सुनते थे पहलू में। जो चीरा, तो कतरा-ए-खूं न निकला। सत्रह साल तक हंगामा होता रहा। पर सोमवार को लिब्रहान आयोग की रपट पर बहस शुरू हुई। तो बहस में कोई जोश नहीं था। ओपनिंग बैट्समैन गुरुदास दासगुप्त जरूर जोशीले थे। उनके जहर बुझे तीर कभी कांग्रेस पर चले। तो कभी बीजेपी पर। एनडीए को तोड़ने की कोशिश भी करते दिखे। जब उनने कहा- 'जिनका नाम आया है, उन्हें राजनीतिक अछूत बनाया जाए।' कोशिश थी- एनडीए के घटक दलों को तीसरे मोर्चे का न्योता देना। जब उनने कहा- 'सिर्फ राज्य सरकार फेल नहीं हुई। केंद्र सरकार भी फेल हुई। सुप्रीम कोर्ट भी फेल हुई। हमने कहा था- राष्ट्रपति राज लगाया जाए। पर नरसिंह राव ने नहीं लगाया। रपट में केंद्र सरकार का जिक्र भी नहीं। इसलिए रपट पक्षपाती।'

गुरुदास दासगुप्त बैठे। तो सोनिया ने मेज थपथपाई। पर वह उस समय हक्की-बक्की रह गई। जब कांग्रेस के जगदम्बिका पाल ने नरसिंह राव का बचाव किया। पर जगदम्बिका पाल की बात बाद में। पहले बात मुलायम की। पर वह तो बुरी तरह फुस्स हुए। कुछ दिन पहले तक कल्याण को साथ लेकर इतरा रहे थे। पर कार सेवकों वाघेला, संजय निरूपम, छगन भुजबल, नारायण राणे को गले लगाने पर कांग्रेस को कोस रहे थे। इस चुनाव में मुसलमानों के खिसक जाने का असर मुलायम पर दिखा। सारे भाषण में खुद को मुसलमानों का सच्चा हमदर्द बताने में जुटे रहे। एक तीर से दो निशाने साधते हुए मुलायम बोले- 'अटल बिहारी वाजपेयी ने अनशन रखा था। तो शंकर राव चव्हाण अनशन तुड़वाने गए थे। कांग्रेस ने क्या वादा किया था अटल को। यह दोनों की मिलीभगत थी। जिससे बाबरी मुस्जिद टूटी।' उनने दूसरा सबूत दिया- 'चार दिसम्बर को लखनऊ में अर्जुन-कल्याण में क्या गुफ्तगू हुई थी।' पर असली तीर चलाए शरद यादव ने। एनडीए के कनविनर हैं आजकल। वह पूरी तरह दासगुप्त के झांसे में तो नहीं आए। पर बीजेपी-कांग्रेस पर बराबर बरसे। कई बार संतुलन करते भी दिखे। जब उनने कहा- 'हमने 62 साल में बीमारियों का इलाज नहीं किया। इसीलिए दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई।' उनने आयोग के काम को अधूरा तो कहा ही। लिब्रहान को पूर्वाग्रह से ग्रसित भी बताया। लिब्रहान की समझ पर सवाल उठाने से भी नहीं चूके। पर लिब्रहान पर ताबड़तोड़ हमले तो राजनाथ सिंह ने किए। उसकी बात तो अपन करेंगे ही। फिलहाल बात शरद यादव की। उनने गलत वक्त पर आई रपट बताकर कहा- 'गरीब की दाल-चटनी में आग लगी है। और ऐसे वक्त पर लिब्रहान का समस्याओं पर बम फट गया।' यह तो संयोग ही था। जो दाल-रोटी का जिक्र आते ही सदन में बिजली गुल हो गई। तो शरद यादव ने दाल-रोटी के बाद बिजली भी जोड़ दी। शरद यादव को अपन कोई आज से नहीं जानते। वह जब बरसते हैं। तो अपना-पराया नहीं देखते। उनके भीतर से नास्तिकता भी निकल आती है। वह सोमवार को भी निकली। जब बोले- 'हमारे यहां 33 करोड़ देवी-देवता हैं। समस्याएं भी सबसे ज्यादा हमें ही। देवी- देवता समस्याओं से तो बचा नहीं पा रहे।' वह आडवाणी की रथ यात्रा पर बरसे। तो शाहबानो मामले में राजीव पर भी बरसे। नरसिंह राव की तो बखिया उधेड़ दी। जब बोले- 'चौरासी में वही गृहमंत्री थे। बयानबे में प्रधानमंत्री।' पर बात कांग्रेस के ओपनिंग बैट्समैन जगदम्बिका पाल की। वह जैसे ही खड़े हुए। शाहनवाज हुसैन ने टोकते हुए पूछा- 'क्या वही जगदम्बिका पाल हैं। जिनका जिक्र आयोग की रपट में कार सेवक के तौर पर।' सोनिया को हक्का-बक्का होना ही था। जगदम्बिका पाल जवाब टालते दिखे। तो स्पीकर मीरा कुमार को बचाव करना पड़ा। वह बोली- 'मैंने जगदम्बिका पाल को सदन के सदस्य के तौर पर बोलने को कहा है। रपट में नाम उनका है, या नहीं। इससे मतलब नहीं।' बात आई-गई हो गई। जगदम्बिका पाल ने आयोग की त्रुटि बताकर पिंड छुड़ाना चाहा। पिंड छूट भी जाता। गर राजनाथ सिंह अपने भाषण में कार सेवक का स्वागत न करते। उनने कहा- 'मैं पहली बार सांसद बने कार सेवक जगदम्बिका पाल का स्वागत करता हूं।' जगदम्बिका पाल खुद के जन्मजात कांग्रेसी होने की दुहाई देकर बैठे। तो राजनाथ ने आखिरी तीर चलाया। बोले- 'जगदम्बिका पाल भूल रहे हैं। वह कांग्रेसी होते हुए ही कल्याण सिंह सरकार में मंत्री थे।' अब तो सोनिया क्या। सारे कांग्रेसी हक्के-बक्के रह गए। कांग्रेसी क्या। आडवाणी तक हैरान हो गए। बात आडवाणी की चली। तो बता दें- राजनाथ ने अटल-आडवाणी का बचाव करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। देवराहा बाबा के जिक्र पर भी लिब्रहान को कटघरे में खड़ा किया। लिब्रहान पर हमले करते हुए बोले- 'यह रपट बीजेपी नेताओं के चरित्र हनन करने वाले राजनीतिक दस्तावेज के सिवा कुछ नहीं।'

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