अब नार्थ-ईस्ट में शांति की उम्मीद जगी

Publsihed: 05.Dec.2009, 09:49

आज बात नार्थ-ईस्ट में अलगाववाद की। पर पहले बात भारत पर मंडराते खतरों की। अपन खतरों को तीन हिस्सों में बांटें। तो गलत नहीं होगा। पहला खतरा पाक और चीन से। दूसरा खतरा नक्सलवादियों से। तीसरा खतरा- अंदरूनी विद्रोहियों से। नार्थ-ईस्ट का अलगाववाद तीसरे खतरे का हिस्सा। पर पहले बात पाक और चीन की। तो पाक में होने वाले आतंकी हमलों से अपन को प्रभावित नहीं होना चाहिए। जैसे अपने नरम दिल पीएम हो जाते हैं। तभी तो पहले अमेरिका में कह आए- भारत और पाक दोनों ही आतंकवाद के शिकार। तो बाद में शर्म-अल-शेख में कह आए- 'बातचीत ही समझदारी का रास्ता। आतंकवाद बातचीत में बाधक नहीं बनेगा।' इसका मतलब था- आतंकवाद होता रहे। तब भी बातचीत जारी रहेगी।

 मनमोहन के दोनों स्टैंड गलत थे। पाक को भी आतंकवाद का शिकार बताने वाला। और आतंकवाद के बावजूद बातचीत जारी रखने वाला। भला हो सोनिया गांधी का। जिनने मनमोहन की थ्योरी नकार दी। वरना आडवाणी की बात कहां सुन रहे थे मनमोहन। अब तक तो समग्र बात शुरू हो चुकी होती। पर अब फिलहाल भारत का स्टैंड- 'समग्र बातचीत तब तक शुरू नहीं होगी। जब तक पाक मुंबई के हमलावरों पर ठोस कार्रवाई नहीं करता।' सरकार के इसी स्टैंड ने पाक की नीति में बदलाव किया। वरना कहां चार्जशीट होना था साजिशकर्ताओं को। कहां अदालती कटघरे में खड़े होते लखवी। कहां लखवी की दलील खारिज करती लाहौर हाईकोर्ट। जैसे गुरुवार को की। अपन अमेरिका की लल्लो-चप्पों में नहीं आए। तो अब अमेरिका भी पाक को आंख दिखाने लगा। वरना तो अपन को पिच्छलग्गू ही समझता था अमेरिका। अब बात चीन की। तो अपने एंटनी-कृष्णा कितना छुपाएं। हकीकत छुप नहीं सकती। लद्दाख में चीन का हेलीकाप्टर अपने इलाके में घुसा था। यह अब एंटनी ने राज्यसभा में मान लिया। देश को गुमराह करने की क्या जरूरत थी तब। चीन की गीदड़ भभकी में अपन ने लद्दाख में सड़क निर्माण रोका। यह भी देश को कतई कबूल नहीं। पाक के कब्जे वाले कश्मीर की बात अपन ने पहले लिखी थी। जहां चीन पावर प्रोजेक्ट और पुल निर्माण में हिस्सेदार। अब खबर राजस्थान बार्डर के पार की भी। बार्डर से दो किलोमीटर बन रहा है पाक का रेलवे स्टेशन। पाक बनाए, अपन को एतराज नहीं। पर चीन बना रहा है रेलवे स्टेशन। चीन-पाक की साजिश न होती। तो पाक अपने बार्डर पर नहीं जाने देता चीनियों को। अपन तो बार्डर के पास विदेशियों को फटकने नहीं देते। आखिर चीन की मदद से बना है पाक का एटमी बम। चीन का कश्मीर में दखल लगातार बढ़ रहा। अमेरिका भी चीन की पीठ थपथपा रहा। सो अपन को पूरा शक। रेलवे स्टेशन बनेगा जासूसी का स्टेशन। और पाक के विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी की धमकी सुनी आपने। उनने कहा है- 'भारत अगर बात नहीं करने की जिद्द पर अड़ा रहा। तो हम भी कह देंगे, मत करो बात।' अब बात दूसरे खतरे की। नक्सलियों का खतरा। आठ राज्यों के 220 जिलों में घुस चुके नक्सली। देखते-देखते बड़ी समस्या बन गए हैं नक्सली। यूपीए सरकार का नजरिया अभी भी साफ नहीं। नक्सली समस्या पर बननी चाहिए सर्वदलीय राय। जैसे पाक पर बातचीत नहीं करने पर बनी। और कृष्णा ने चौगम बैठक में कुरैशी से बात नहीं की। तीसरा खतरा- नार्थ-ईस्ट में अलगाववाद का। यों तो नार्थ-ईस्ट में ईट उठाओ। तो अलगाववादी संगठन मिलेगा। पर सबसे बड़ा खतरा उल्फा का। जिसके अगुवा बांग्लादेश से आतंकी वारदातें चला रहे। लंबे अर्से बाद अपनी सरकार को सफलता मिली। बातचीत का पहला दौर सफल रहा। शुक्रवार को अरबिंद राजखोवा भारत के सुपुर्द हो गया। तीस साल से आंदोलन चला रहा था राजखोवा। मांग थी- असम की आजादी। राजखोवा के साथ उल्फा के डिप्टी कमांडर राजू बरुआ का भी आत्मसमर्पण। दोनों के बीवी-बच्चों ने भी आत्मसमर्पण कर दिया। अब दिल्ली में बात शुरू होगी। तो अपन को उम्मीद करनी चाहिए। नार्थ-ईस्ट में शांति की शुरूआत होगी।

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