वह सत्ता का नशा ही क्या, जो सिर चढ़ कर न बोले

Publsihed: 02.Jan.2008, 20:40

ऐसे नेता अब विरले। जिन पर सत्ता का नशा न चढ़ता हो। मायावती यूपी का चुनाव क्या जीती। पीएम बनने के सपने लेने लगी। पर गुजरात-हिमाचल ने नशा चूर-चूर किया होगा। सत्ता का नशा तो सोनिया गांधी का भी उतर गया। गुजरात-हिमाचल में मायावती को भले कुछ नहीं मिला। सोनिया का खेल तो बिगाड़ ही दिया। सोनिया ने इशारा किया होगा। तभी तो रीता बहुगुणा ने मायावती पर तीर चलाए। अगले ही दिन मायावती ने सोनिया-मनमोहन सरकार की चूलें हिला दी।

बोली- 'देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं। आतंकवादियों की घुसपैठ जारी। केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी समझे।' यानी कांग्रेस-एसपी वाली नोंक-झोंक अब कांग्रेस-बीएसपी में शुरू। मायावती यों भी खुद को सोनिया से कम नहीं समझती। पीएम का सपना लेना शुरू ही किया था। पहले केंद्र की तरह यूपी में कैबिनेट सेक्रेटरी बनाया। अब सोनिया की तरह एसपीजी मांग ली। बेनजीर की हत्या के अगले दिन कैबिनेट सेक्रेटरी शशांक शेखर से केंद्र को चिट्ठी लिखवाई- 'मायावती को आतंकवादियों से खतरा। एसपीजी की सुरक्षा मुहैया करवाई जाए।' अपन भले ही कानून का हवाला दें। कहें- एसपीजी सिर्फ पीएम, एक्स पीएम और उनके परिवारों के लिए। पर अपन को भूलना नहीं चाहिए। पहले एसपीजी सिर्फ पीएम के लिए बनी थी। चंद्रशेखर राज में चुनावों के दौरान राजीव की हत्या हुई। तो कांग्रेस ने कहा- 'एसपीजी हटाई। इसलिए राजीव की हत्या हुई।' सो राजीव की हत्या के बाद कानून बदला गया। पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी एसपीजी दी गई। पर पांच साल का वक्त तय हुआ। चंद्रशेखर की बात चली। तो बताते जाएं- बलिया में चंद्रशेखर के बेटे नीरज जीत गए। बीएसपी हारी सो हारी। बीजेपी का सत्ता का नशा भी उतर गया। पर बात एसपीजी सुरक्षा की। अब तो सोनिया, प्रियंका, राहुल के परिवारों को बेमियादी एसपीजी। मायावती सवाल तो उठाएगी ही। अगर गांधी परिवार के लिए कानून कायदा बदलेगा। तो दलित की बेटी के लिए क्यों नहीं। आखिर टैक्स की लूट का सबको बराबर हक। अपन ने कुछ गलत नहीं कहा। बॉडीगार्ड हो, या बाकी सुविधाएं। नेताओं जैसी ठाठ-बाठ और किसको नसीब। बॉडीगार्ड सुरक्षा के लिए कम। शान-शौकत और बदमाशी के लिए ज्यादा। नए साल के स्वागत वाली रात का किस्सा ही लो। लालू यादव के दोनों बेटे बॉडीगार्ड लेकर निकले। तो रातभर लड़कियों से छेड़खानी करते रहे। बॉडीगार्ड अपने सामने क्राइम होता देखते रहे। वह तो साऊथ दिल्ली में मजनू लालू पुत्रों की पिटाई हुई। तब राज खुला। राज तो तब भी नहीं खुलता। अगर बॉडीगार्ड की पिस्तौल गायब न होती। सोचो- ट्रेनों में महिलाएं कितनी सुरक्षित? नए साल का हुड़दंग सिर्फ दिल्ली में नहीं। मुम्बई, गोवा, कोच्चि में भी हुआ। जहां विदेशी पर्यटकों से छेड़खानी कर मजनुओं ने देश का नाम रोशन किया। पर अपन बात कर रहे थे- मायावती की। उनने शान के लिए एक और मांग रख दी। कहा- 'सभी हवाई अड्डों पर हवाई जहाज तक कार में जाने की छूट हो।' छूट नहीं मिली। तो कहेंगी- 'सोनिया ने अपने दामाद को हवाई अड्डों पर चैकिंग में छूट दिला दी। पर दलित की बेटी के साथ भेदभाव।' अबके जवाब जयंती नटराजन ने दिया। बोली- 'मायावती देशभर में बीएसपी की जड़ें जमाने का ख्याल छोड़ें। यूपी की जिम्मेदारी निभाएं। जहां आतंकी छूटे घूमने लगे।' रीता, मायावती, जयंती की चख-चख सुनी। तो अपन को जयललिता, ममता की याद आ गई। जयललिता भले ही मोदी की शपथ ग्रहण पर नहीं पहुंची। पर पोंगल का न्यौता दे भविष्य की राजनीति तय कर दी। जयललिता एनडीए में आएंगी। तो ममता जाएंगी। बालागढ़ सीट पर तृणमूल-बीजेपी आमने-सामने लड़कर सीपीएम से हारे। अब दोनों की कुट्टी का ऐलान भर होना बाकी। यों भी ममता ने शेखावत को वोट नहीं दिया था। पर बात सत्ता के नशे की। अपन अपने इर्द-गिर्द ही देख लें। तो सांसदों-विधायकों के बेटे ऐसे व्यवहार करते हैं- जैसे वे वहां के राजा हों।

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