सबक जो हमने फिर भी नहीं सीखा

Publsihed: 26.Nov.2009, 10:00

आज उस आतंकी वारदात को एक साल हो गया। आज की शाम शुरु हुआ था आतंकी हमला। तीन दिन तक आतंकियों से लड़ना पड़ा। वे सिर्फ दस थे। साठ घंटे तक देश को बंधक बनाए रखा। अपने और कुछ विदेशी भी मिलाकर 183 लोग मारे गए। इनमें 15 तो सुरक्षाकर्मी ही थे। एनएसजी जवानों से लेकर एटीएस चीफ तक। एटीएस चीफ हेमंत करकरे की मौत से भी अपन ने कितना सिखा। बुलेटप्रुफ जैकेट पहनी हुई थी करकरे ने। अपन सब ने सीधे प्रसारण वाले हमले को देखा। अलबत्ता साठ घंटे तक लगातार देखा। तो अपन ने देखा था- करकरे बुलेटप्रुफ जैकेट पहन रहे थे। नेताओं-अफसरों ने रिश्वत लेकर खरीदी थी जैकेटें। जो आतंकी की गोली भेद गई। तो क्या अपन ने कुछ सीखा करकरे की मौत से। क्या रिश्वतखोरी पर नकेल लगाई अपन ने इस एक साल में।

जवाब है-नहीं। अपन ने देश पर आतंकी हमले से कुछ नहीं सीखा। एनएसजी की टुकड़ी लेट पहुंची थी। तो अपन ने पांच-छह एनएसजी सेंटर बनाने तय किए। एक सेंटर मुंबई में भी बना। पर मुंबई ने एनएसजी जैसी अपनी 'फोर्स-वन' भी बना ली। हुई न जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली बात। सोचो 26/11 जैसा हमला फिर हुआ तो कितना कनफ्यूजन होगा। क्या सीखा अपन ने  26/11 से। बहुत हल्ला मचा था तटों की सुरक्षा का। अपन ने 3000 नए तटीय सुरक्षा गार्ड भर्ती भी किए। निगरानी के लिए 80 नई वोट भी खरीदी। पर हमले की आंच ठंडी हुई। तो तटीय सुरक्षा में ढील शुरु हो चुकी। कुछ नहीं सीखा अपन ने। कितनी बातें हुई थी-फौज को चाक चौबंद करने की। हथियारों की कमी दुर करने की। पर एयरवाइस चीफ पी.के.बारबोरा का खुलासा सुना आपने । हथियारों की खरीद पर हावी हो रही है राजनीति। तो क्या राष्ट्रीय सुरक्षा पर अपन थोड़ा सा भी गंभीर हुए। शायद नहीं। मनमोहन सिंह पता नहीं किसके कहने पर शर्म-अल-शेख में कह आए-'आतंकवाद भारत-पाक रिश्तों में अड़चन नहीं बनेगा।' अपन ने 26/11 से कुछ सीखा होता। तो अपने पीएम देश से ऐसी गुस्ताखी नहीं करते। अपन को सात बार डोजियर भेजने पड़े। हर बार पाक हुक्मरान कहते रहे-'सुराग हैं, सबूत नहीं।' शुरू में तो उनने कसाब को भी अपना नहीं  माना। अमरिका ने कसा, तो अपना माना। वह भी तब जब कोई चारा नहीं बचा था। अपन तो अदालती कार्रवाई में भी बेहद ढीले। अपन से तो पाक ही बाजी मार ले गए। हमले की वर्षी से एक दिन पहले सात आतंकी चार्जशीट कर दिए। हमले के मास्टरमाइंड थे जकी-उर-रहमान लखवी और जरार शाह। दोनों भी चार्जशीट हुए। पर अपनी लाख कोशिशों के बाद भी अपन हाफिज सईद का कुछ नहीं बिगाड़ पाए। पिछले साल अपन ने जांच से कई परतें खुलती देखी। पर अपनी जांच एजेंसियां तह तक तो दूर। तह के करीब भी नहीं पहुंच पाई। कितने नकारा साबित हुई अपनी एजेंसियां। जब अमेरिकी एबीआई ने हेडली और राणा को पकड़ा। बार-बार भारत आते थे हेडली-राणा। हमले के असली ऑपरेटिव तो वही थे। अब पाक के उस झूठ की पोल भी खुल गई। जिसमें उसने कहा था- नॉन स्टेट एक्टर। अब तो खुलासा होने लगा- हेडली-राणा से जुड़े थे पाक फौज के तार। अपन ने 26/11 से कुछ सीखा होता तो जांच हेडली-राणा तक पहुंचती। एनआईए बनाने भर से कुछ नहीं होगा। जब तक अपन सबक न सीखें। अपन 26/11 की तुलना करते हैं 9/11 से। पर कोई मुकाबला नहीं 9/11 और 26/11 में। अमेरिका ने देश की सीमाओं के साथ भीतर भी सुरक्षा बढ़ा दी थी। इतनी सुरक्षा- जिससे डर कर मनमोहन भी इस बार व्हाइट हाउस में नहीं ठहरे। आतंकवाद के खिलाफ जंग छेड़ दी थी अमेरिका ने। अपन अमेरिका के कहने पर ही चुप्पी साधकर बैठ गए। अपन ने 26/11 से कुछ नहीं सीखा। ताज होटल की आग से धुंआं निकल रहा था। तो अपन ने गेटवे ऑफ इंडिया पर मोमबत्तियां जलाई थी। आतंकवाद से लड़ने की कसमें खाई थी। पर आतंकवाद से लड़ने का एक विभाग तक नहीं बना पाए। जो पूरे देश में निगरानी का काम करे। पॉलीसी बनाए, लागू करवाने में को-ऑडिनेशन का काम करे। अपन तो नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी बनाकर ही बैठ गए। कांग्रेस ने बीजेपी की अदंरूनी लड़ाई का फायदा उठा चुनाव जीत लिया। तो आतंकवाद पर जीत मान ली। पर चुनाव जीतने से आतंकवाद पर जीत नहीं होगी। बरसी मनाने, श्रध्दांजली देने से भी नहीं होगी। आतंकवादी वारदातों से सबक सीखने से होगी।

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