रावलपिंडी-रामपुर में फर्क नहीं आतंकियों की नजर में

Publsihed: 01.Jan.2008, 20:35

आखिर मुशर्रफ ने चंडूखाने की गप से पीछा छुड़ाया। कार के लीवर से बेनजीर की मौत वाली थ्योरी छोड़ दी। पाक के इंटीरियर मिनिस्टर हामिद नवाज खान बोले- 'हमें माफ करें और चीमा के बयान को भूल जाएं।' चीमा ने जो चंडूखाने की थ्योरी दी थी। उस बारे में अपन ने कल ही लिखा था। इसे मुशर्रफ पर बुश का दबाव समझें। या पाकिस्तानी आवाम के भरोसा न करने का असर। मानो, न मानो। जरूर बुश ने फटकारा होगा। मुशर्रफ की थ्योरी से बुश संकट में फंस गए थे। एक तरफ हिलेरी क्लिंटन की अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग। दूसरी तरफ आतंकवाद के खिलाफ बुश की लड़ाई कमजोर पड़ती।

फिदायिन हमले को हादसा बता मुशर्रफ अल कायदा- तालिबान की मदद कर रहे थे। अब जावेद इकबाल चीमा की गलतबयानी का ठीकरा मंत्री ने अपने सिर फोड़ते कहा- 'हम फौजी हैं, अपनी बात ठीक ढंग से नहीं रख सकते। गलती हो गई।' तो बताते जाएं- मंत्री हामिद नवाज खान और प्रवक्ता जावेद इकबाल चीमा दोनों पुराने फौजी। अब हामिद ने बेनजीर की मौत का ठीकरा नए तरीके से बेनजीर के सिर फोड़ा। बोले- 'बुलेटप्रुफ गाड़ी थी। बेनजीर अपना सिर छत से बाहर न निकालती। गोली तो क्या, बम भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता था।' यानी गलती खुद बेनजीर ने की। यों काफी हद तक अपन भी इससे सहमत। अगर सिर बाहर ही निकालना हो। तो बुलेटप्रुफ गाड़ी लेने की क्या जरूरत। बेनजीर ने अक्टूबर में भेजे ई-मेल में लिखा था- 'मैं मर जाऊं। तो परवेज मुशर्रफ जिम्मेदार होंगे। सरकार को मेरी सुरक्षा की फिक्र नहीं। बार-बार मांगे जाने पर भी बुलेटप्रुफ गाड़ियां नहीं दे रही।' पर जब बेनजीर मरी, तो बुलेटप्रुफ गाड़ी पर सवार थी। बेनजीर खुद गलती न करती। तो मुशर्रफ-आईएसआई-अल कायदा-तालिबान की साजिश नाकाम हो जाती। यों मुशर्रफ ने ब्रिटिश पीएम गोर्डन ब्राउन से कहा- 'अंतरराष्ट्रीय जांच पर विचार हो सकता है।' पर हामिद नवाज खान जरा तैयार नहीं दिखे। यानी हाथी के दांत- खाने के और, दिखाने के और। आतंकवादी वारदातें तो बस ऐसी हैं- नजर हटी, दुर्घटना घटी। दूर न जाएं। बात पाकिस्तान के रावलपिंडी की हो। या भारत के रामपुर की। अपने रामपुर में भी मंगलवार तड़के यही हुआ। यूपी पुलिस ने सीआरपीएफ को कितनी बार आगाह किया था। पर सीआरपीएफ लापरवाही न करती। तो मंगलवार की दुर्घटना न होती। सीआरपीएफ कैंप पर फिदायिन हमला हुआ। यूपी की सीएम मायावती बोली- 'गलती सीआरपीएफ की। यूपी पुलिस ने कई बार सीआरपीएफ को खुफिया रपट दी। खुफिया रपट साफ थी- कैंप पर आतंकी हमला हो सकता है।' मायावती केंद्र की होम मिनिस्ट्री पर भी चढ़ दौड़ी। बोली- 'केंद्र और राज्यों को सहयोग करना होगा। तब आतंकवाद काबू में आएगा।' अपन को साफ लगा- मायावती की सोनिया-मनमोहन सरकार से खटपट शुरू हो चुकी। सोमवार को यूपी कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा ने कहा था- 'मुलायम बद थे, मायावती बदतर।' पर बात आतंकवाद की। मायावती बोली- 'देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं। आतंकवादियों की घुसपैठ जारी। केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी समझे।' यानी वही बात, जो बीजेपी कह रही थी। यूपीए आतंकवाद को लेकर गंभीर नहीं। बात बीजेपी की चली। तो बता दें- बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह सबसे पहले आतंकी वारदात के मौके पर पहुंचे। बोले- 'यूपीए सरकार आतंकवाद पर गंभीर होती। तो अफजल गुरु को फांसी दे दी जाती।' बात अफजल गुरु की चली। तो बता दें- अब यूपीए सरकार को फैसला करना होगा। आतंकवादियों पर नरमी दिखाकर मुस्लिम वोट पर नजर छोड़ दें। देश के मुसलमान आतंकवाद के समर्थक नहीं। न ही आतंकवादियों के समर्थक। अलबत्ता अपना आम हिंदूस्तानी मुस्लिम तो कट्टरपंथी भी नहीं। यूपीए सरकार उन्हें आतंकवाद का समर्थक बताने की गलती न करे। अलबत्ता चुनाव में लेने के देने पड़ेंगे।

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