बीजेपी की कमान अब पूरी तरह आडवाणी के हाथ। गुजरात-हिमाचल के नतीजों ने जोश भर दिया। यों तो बीजेपी की कोर कमेटी अपना काम करेगी। पर आडवाणी ने चुनावी शतरंज की अलग कोर कमेटी बना ली। कहीं मनमोहन-सोनिया की तरह दोहरी सत्ता न दिखे। सो कोर कमेटी में राजनाथ सिंह भी। पर साथ ही नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली भी। राजनाथ ने मोदी को पार्लियामेंट्री बोर्ड से बाहर किया। तो जेटली को प्रवक्ता पद से हटाया। राजनाथ के इन दोनों कदमों से पार्टी में फूट दिखी। पर गुजरात जीतकर मोदी ने अपना कद बढ़ा लिया। अब पार्टी में आडवाणी के बाद मोदी दूसरी हस्ती। आडवाणी ने अपनी कोर कमेटी में सिर्फ एक सीएम को रखा। वह भी नरेंद्र मोदी।
यों भी शिवराज का मध्यप्रदेश, वसुंधरा का राजस्थान पार्टी का भावी संकट। भले ही छत्तीसगढ़ भी हारता दिखता हो। पर राजनाथ सिंह से अपनी बात हुई। तो बोले- 'इन तीनों राज्यों में छत्तीसगढ़ सबसे सेफ।' मध्यप्रदेश, राजस्थान को कोई सेफ नहीं समझ रहा। मध्यप्रदेश में सीएम बदलना पड़े। तो बड़ी बात नहीं। पर राजस्थान में वसुंधरा से ही हालात सुधारने होंगे। अपने ओम माथुर ने गुजरात में झंडे गाड़ दिए। अब राजस्थान में इम्तिहान गोपीनाथ मुंडे का। पर सबसे पहला इम्तिहान तो यशवंत सिन्हा का। कर्नाटक में फरवरी नहीं, तो अप्रेल में चुनाव। कर्नाटक की बात चली। तो बता दें- वर्किंग कमेटी बेंगलुरु में नहीं होगी। आलाकमान का संदेश लेकर शुक्रवार को सिन्हा बेंगलुरु पहुंचे। तो येदुरप्पा-सदानंद गौड़ा ने साफ इंकार कर दिया। बोले- चुनावों की तैयारी करें, या वर्किंग कमेटी की। सो अब वर्किंग कमेटी-काउंसिल दिल्ली में होगी। बेंगलुरु की बात चली। तो मजेदार किस्सा सुनाएं। शुक्रवार को कोर कमेटी थी। अनंत कुमार सुबह तक बेंगलुरु में थे। इधर यशवंत सिन्हा पहुंचे। उधर अनंत ने दिल्ली का रुख कर लिया। अनंत खेमे के जगदीश शट्टर और शंकरमूर्ति शांतिवन के नेचर क्योर में भर्ती हो गए। ईश्वरप्पा भी मीटिंग से कन्नी काट गए। सोचो, जब पार्टी में ऐसी खेमेबाजी होगी। तो बन लिए आडवाणी पीएम। हां, अपन बात तो लोकसभा रणनीति की ही कर रहे थे। 'आडवाणी कोर कमेटी' की पहली मीटिंग हुई। तो उसमें जोशी, जसवंत, सुषमा के साथ चार महामंत्री थे। जेटली, अनंत, ओम माथुर और रामलाल। रामलाल इसलिए ताकि संगठन के ढीले नट-बोल्ट कसें। मीटिंग चली चार घंटे। लंबे समय बाद अपने तरह की पहली मीटिंग। एजेंडा साफ था- 'गुजरात-हिमाचल से चली हवा सारे देश में कैसे बहे। हवा साल-डेढ़ साल तक कैसे बनाई रखी जाए। संगठन के ढीले नट-बोल्ट कैसे कसे जाएं। वगैरह-वगैरह।' आडवाणी की क्लास में चुनाव जीतने का फार्मूला निकला। जिसे अपन मोटे तौर पर कहेंगे-चुनावी रणनीति। अब जेटली मीटिंग का लब्बोलुबाब लिखेंगे। पर अपन लब्बोलुबाब बता दें। ऐसी तीन सौ सीटों की शिनाख्त हुई। जो पिछले पांच चुनावों में पार्टी ने कभी न कभी जरूर जीती। जोर उन्हीं पर होगा। यों उनमें साठ तो यूपी में ही। जहां पार्टी का बंटाधार हो चुका। यूपी सुधारना होगा। मध्यप्रदेश-राजस्थान संभालना होगा। गठबंधन की बिसात अभी से बिछानी होगी। उम्मीदवारों को चुनने का काम फौरन शुरू करना पड़ेगा। इस बार यंग, एजुकेटेड पर जोर होगा। महिलाओं को भी तवाो मिलेगी। महिलाओं की बात चली। तो बताएं- गुजरात, हिमाचल में पढ़े-लिखे युवाओं और महिलाओं ने बीजेपी का साथ दिया। पिछली हिमाचल एसेंबली में एक भी महिला एमएलए नहीं थी। कांग्रेस की चार थी। अबके कांग्रेस की एक रह गई- विद्या स्टोक्स। बीजेपी की चार हो गई। हां, एक बात और। गुजरात का विकास मॉडल अब बाकी भाजपाई सरकारों का बाईबल बनेगा। गुजरात की बात चली। तो मोदी की बात। शपथ लेकर पहली बार दिल्ली आए। सो हवाई अड्डे पर धुआंधार स्वागत हुआ। रणनीति मीटिंग से निकले। तो वाजपेयी का आशीर्वाद लिया। अब आज मेला शिमला में।
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