ए आर रहमान ने बनाया वंदेमातरम को विश्वगीत

Publsihed: 04.Nov.2009, 10:05

वोट बैंक की राजनीति देश को कहां ले जाएगी। इसका ताजा उदाहरण देवबंद में दिखा। देश का होम मिनिस्टर पहुंच गया जमात-उलेमा-ए-हिंद की मीटिंग में। आडवाणी होम मिनिस्टर होते हुए वीएचपी की मीटिंग में जाते। तो सोचो कितना बवाल होता। कांग्रेस-लेफ्ट-सपा-राजद सब चढ़ दौड़ते। पर चिदंबरम मुस्लिम सम्मेलन में जाकर धन्य हो गए। तो देश में पत्ता भी नहीं हिला। चिदंबरम को पौने दो साल पहले के फतवे की तारीफ करना याद रहा। पर ताजा फतवे पर चुप्पी साध गए। चिदंबरम ने जिस आतंकवाद विरोधी फतवे की तारीफ की। वह देवबंद से 25 फरवरी 2008 को जारी हुआ था। पर ताजा फतवा हुआ वंदेमातरम के खिलाफ। जमायत-उलेमा-ए-हिंद के इसी सम्मेलन में प्रस्ताव पास हुआ- 'मुसलमानों को 'वंदे मातरम्' नहीं गाना चाहिए।' वजह बताई- 'वंदे मातरम् में देश के लिए सजदा है। मुसलमान अल्लाह के अलावा किसी की इबादत नहीं करते।'

अपन जानते हैं- 'इस्लाम के नाम पर ही तो बना था पाकिस्तान।' जिन्हें भारत से प्यार था, वे पाकिस्तान नहीं गए। जो यहां रहे, वे कट्टरपंथी नहीं थे। सेक्युलर थे। पर अब क्या हो गया। जिस वंदेमातरम को गाकर आजादी की जंग लड़ी गई। जिस भारत मां के लिए हिंदू-मुलसमानों ने मिलकर जंग लड़ी। वह भारत मां नहीं रही। बात सात अगस्त 1905 की। अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन किया था। विभाजन था प्रशासन के नाम पर। पर इरादा था- हिंदुओं-मुसलमानों को बांटना। सो हिंदू-मुलसमान दोनों विभाजन के खिलाफ खड़े हुए। विरोध जुलूस में पहली बार नारा लगा था- 'वंदेमातरम्।' हिंदुओं और मुसलमानों दोनों ने नारा लगाया। फिर तो आजादी के आंदोलन का नारा बन गया वंदेमातरम्। सबसे पहले भी 1896 में कांग्रेस अधिवेशन में ही गाया गया था वंदेमातरम्। आरएसएस की किसी शाखा में नहीं। न ही वीएचपी-बजरंग दल सम्मेलन में। कांग्रेस अधिवेशन में गाया था खुद रविन्द्र नाथ टैगोर ने। यह ठीक है- संविधानसभा ने वंदेमातरम को राष्ट्रीय गान नहीं माना। पर डा. राजेंद्र प्रसाद ने 24 जनवरी 1950 में संविधान सभा में कहा- 'राष्ट्रगान के बराबर दर्जा रहेगा वंदेमातरम् का।' तभी तो संसद में भी गाया जाता है वंदेमातरम्। पर राजेंद्र प्रसाद से पहले 28 अगस्त 1948 को नेहरू ने कहा था- 'जन-गण-मन राष्ट्रीय धुन जरूर तय हुई। पर वंदेमातरम प्रमुख राष्ट्रीय गान बना रहेगा। आजादी के आंदोलन में वंदेमातरम की भूमिका भुलाई नहीं जा सकती।' कांग्रेस उसी वंदेमातरम् का बचाव नहीं कर पा रही। कोई उसे सांप्रदायिक कहे। तो चुप्पी साध लेते हैं अपने होम मिनिस्टर।'  सेक्युलर मुसलमानों को वंदेमातरम पर एतराज नहीं। सात सितंबर 2006 की घटना याद कराएं। वंदेमातरम की 125 साल गिरह मनाई गई। रेडियो-दूरदर्शन से प्रसारण हुआ। देशभर में एक साथ गाया गया वंदेमातरम। लाखों सेक्युलर मुस्लिम भी शामिल हुए। पर उससे पहले 1997 याद कराएं। आजादी की स्वर्ण जयंती मनाई गई। ए आर रहमान ने वंदेमातरम् की नई धुन बजाई। सबसे बढ़िया वंदेमातरम तो ए आर रहमान ने गाया। रहमान ने वंदेतामरम को देश नहीं, दुनिया में पहुंचाया। इसका सबूत अपन को 2003 में मिला। जब बीबीसी ने लोकप्रिय गानों का सर्वे करवाया। दुनिया के 155 देशो में हुआ था सर्वे। कोई सात हजार गाने चुने गए। टॉप टेन में दूसरे नंबर पर आया था वंदेमातरम्। दारुल उल्लूम हो या जमात-उलेमा-ए-हिंद। ऐसे फतवों से परहेज करते। तो बेहतर होता। चिदंबरम ने आतंकवाद के फतवे की तारीफ की। वह वंदेमातरम् के प्रस्ताव की निंदा भी करते। तो बेहतर होता। पर चिदंबरम ने इशारों-इशारों में कहा भी। समझने वाले समझ गए। जो न समझे अनाड़ी है। उनने कहा- 'यह आपके पितरों की भूमि है। यह आपकी जन्मभूमि है। इसी भूमि पर आपको रहना है।' और उनने जब बाबरी ढांचा टूटने की निंदा की। कहा- 'वह धार्मिक कट्टरता थी।' तो उनने यह भी कहा- 'हर तरह की धार्मिक कट्टरता की निंदा होनी चाहिए।' भले ही वह धार्मिक कट्टरता वंदेमातरम् के विरोध में झलके।

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