इशरत जहां को केंद्र ने भी तो कोर्ट में आतंकी कहा

Publsihed: 09.Sep.2009, 10:09

इशरत जहां की मुठभेड़ भी फर्जी। मजिस्ट्रेट एसपी तामांग की इस रपट ने हंगामा बरपा दिया। तो अपन को नरसिंह राव का जुमला याद आया। वह कहा करते थे-'कानून अपना काम करेगा।' यह तो ठीक। पर यह भी कहा करते थे- 'जब तक सुप्रीम अदालत का फैसला न हो। तब तक किसी को दोषी नहीं कहा जा सकता।' चुनाव आयोग तो चाहता था- हर चार्जशीटेड नेता चुनाव लड़ने से महरूम किया जाए। पर कोई नहीं माना। इसीलिए तो मुकदमे झेल रहे दर्जनों नेता सांसद-विधायक। मनमोहन सिंह तो चार कदम आगे निकले। जब उनने पिछली सरकार में पांच चार्जशीटेड मंत्री बना डाले। यों उन दागियों से इस बार किनारा किया। सो मनमोहन पांच साल बाद तारीफ के हकदार। भले तब दागियों का बचाव करते रहे। पर अंदर से ग्लानी तो रही होगी।

जो इस बार केबिनेट बनाते समय झलकी। पर अपन बात कर रहे थे इशरत जहां की। मजिस्ट्रेट की रपट पर बोले हैं वीरप्पा मोइली। देश के लॉ मिनिस्टर हैं मोइली। बोले- 'अगर यह मुठभेड़ किसी और देश में हुई होती। तो मोदी किसी और जगह पर होते।' उनने जेल शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। पर कहना जेल ही चाहते हैं। मोइली मंत्री होने की मर्यादा भूल गए। कांग्रेसी नेता की तरह बोले। वह यह भी भूल गए- खुद केंद्र सरकार ने कोर्ट में क्या कहा। पुरानी बात नहीं। पिछले महीने की ही बात। छह अगस्त को केंद्र ने कोर्ट में हल्फिया बयान देकर कहा- 'इशरत जहां लश्कर-ए-तोएबा की आतंकी थी।' क्या हुआ था, बता दें। चौदह जून 2004 को गुजरात पुलिस के हाथों चार मरे। इन्हीं में एक थी 19 साल की इशरत जहां। मुंबई के खालसा कालेज में पढ़ती थी। पुलिस ने कहा- 'चारों नरेंद्र मोदी की हत्या करने आए थे। मुठभेड़ में मारे गए।' इशरत के परिवार ने कहा- 'मुठभेड़ फर्जी। बारह जून को मुंबई से उठा ले गई थी गुजरात पुलिस।' कांग्रेस-एनसीपी ने भी मुठभेड़ को फर्जी कहा। पवार-अमर सिंह इशरत की मां शमीमा को एक-एक लाख दे आए। एक महीना बीता। जुलाई आया। तो लश्कर-ए-तोएबा की वेबसाइट 'जमात उद दावा' ने दावा किया- 'इशरत जहां हमारे लिए काम करती थी।' कांग्रेस-एनसीपी-एसपी को काटो तो खून नहीं। मुंह छुपाकर फिरते थे सभी। पर अब पांच साल बाद मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट। कहती है- 'मुठभेड़ फर्जी थी। पुलिस वालों ने प्रमोशन के लिए फर्जी मुठभेड़ की।' अपन मजिस्ट्रेट की रपट पर कुछ नहीं कह सकते। कोई सबूत मिला होगा मजिस्ट्रेट को। पर मजिस्ट्रेट की रपट आखिरी कानूनी दस्तावेज नहीं। अभी तो अदालत तय करेगी। ऊपरी अदालतों में मुकदमे पड़े थे। तब भी हत्या के सजा याफ्ता मंत्री थे मनमोहन सरकार में। दलील थी- 'जब तक सुप्रीम अदालत का फैसला न हो। तब तक किसी को दोषी नहीं कहा जा सकता।' गुजरात सरकार ने मजिस्ट्रेट की रपट खारिज कर दी। वह हाईकोर्ट में जाएगी। पर वीरप्पा मोइली तो मोदी को फौरन जेल भेजने को बेताब। गुजरात के प्रवक्ता जयनारायण व्यास बोले- 'मजिस्टे्रट की रपट सीआरपीसी की धारा 176 के खिलाफ। वैसे भी हाईकोर्ट जांच करवा रही थी। तब मजिस्ट्रेट की जांच का कोई मतलब नहीं। सरकार मजिस्ट्रेटी रपट को हाईकोर्ट में चुनौती देगी।' जब सरकार का इरादा हाईकोर्ट जाने का हो। तो देश के लॉ मिनिस्टर का बयान कितना उचित। कांग्रेस का कोई प्रवक्ता बोलता। तो अपन इतनी गंभीरता से लेते ही नहीं। अपन ने कहां मनीष तिवारी के बयान को गंभीरता से लिया। जिनने कहा- 'मोदी बेनकाब हुए। गुजरात की सारी मुठभेड़ों की जांच होनी चाहिए।' अपन ने सीपीएम पोलित ब्यूरो को कहां गंभीरता से लिया। जिसने मोदी से इस्तीफा मांग लिया। वेंकैया नायडू कांग्रेस-सीपीएम के साथ मीडिया पर भी बरसे। बोले- 'मोदी मेनिया हो चुका सबको। अगर गुजरात के हर काम के लिए मोदी जिम्मेदार। तो दिल्ली में होने वाली हर घटना के लिए पीएम जिम्मेदार।' यानी ओछी राजनीति शुरू हो चुकी। मुठभेड़ पर सीएम जिम्मेदार होगा। तो कश्मीर में कोई सीएम हफ्ताभर नहीं टिकेगा।

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