आडवाणी की रवानगी वाली 'ब्रेकिंग न्यूज' की कपाल क्रिया

Publsihed: 01.Sep.2009, 04:16

अपन को पहले भी कोई भ्रम नहीं था। भ्रम तो उनको था। जो पांच दिन से भ्रम फैलाते रहे। अपन ने तो चार जून को ही दो टूक लिख दिया था- 'राजनाथ-आडवाणी-अरुण की तिकड़ी छह महीने ही।' अपन कुछ ज्यादा कहें। तो अच्छा नहीं लगता। पर पिछले पांच दिन विजुअल मीडिया ने जो कहा। जरा कमरा बंद करके अपनी सीडी दुबारा देख लें। लिखाड़ भी अपना लिखा-छपा दुबारा पढ़ लें। राजनाथ से तुरत-फुरत इस्तीफे की उम्मीद लगाए बैठे थे। आडवाणी की तो उल्टी गिनती शुरू कर दी थी। पर न ऐसा होना था, न हुआ। अब आपको बता दें- इतना बवाल मचा क्यों। मोहन भागवत की प्रेस कांफ्रेंस का ऐलान हुआ। तो बीजेपी बीट वालों को लगा- 'भागवत ने शौरी का कहा मान लिया। अब चलाएंगे चाबुक।' यों भागवत की जगह सुदर्शन होते। तो इतने राजनीतिक सवालों का जवाब ही न देते।

पर 59 साल के भागवत ने हर सवाल का जवाब दिया। खबरचियों की उम्मीदों पर तो पानी फिर गया। आडवाणी खेमे की चौकड़ी झंडेवालान में दस्तक न देती। तो अठाईस अगस्त को 'चौबीस घंटिए चैनल' क्या मुंह दिखाते। बात चौकड़ी की। तो सोचो, चौकड़ी क्यों गई थी? वह अपन बाद में बताएंगे। पर पहले चौबीस घंटियों की बात। कारों का काफिला निकला ही था। धड़ाधड़ ब्रेकिंग न्यूज आने लगी- 'संघ प्रमुख का आडवाणी को कुर्सी छोड़ने का फरमान। उल्टी गिनती शुरू। चारों नेता संघ दफ्तर से आडवाणी के घर पहुंचे।' चारों में से किसी ने किसी के कान में भी नहीं फुसफुसाया था। मोहन भागवत ने किसी को बताया होगा। अगर कोई ऐसा दावा करे। तो अपन क्या आप भी भरोसा नहीं करेंगे। फिर जब 29 अगस्त को आडवाणी-भागवत मिले। तो कमाल ही हो गया। दोनों की बातचीत की मनगडंत कहानी भी मिनटों में हाजिर। ब्रेकिंग न्यूज ने जर्नलिज्म का जो भट्टा बिठाया। वह अपने सामने। आजकल न्यूक्लियर साइंटिस्ट संथानम सेमीनार में भाषण करे। तो वह भी ब्रेकिंग न्यूज। विचार भी ब्रेकिंग न्यूज बनने लगे। वैसे पांच दिन खबरचियों के विचार ही ब्रेकिंग न्यूज बनते रहे। अब जो नहीं दिखा-कहा-छपा। जरा उसकी बात। तो राजनाथ छब्बीस को नहीं। भागवत से सत्ताईस को मिले थे। राजनाथ ने भागवत से अरुण जेटली की शिकायत की। शिकायत करने को बहुत कुछ था। जैसे अखबारों में उनके खिलाफ खबरें छपवाना। जेटली, वेंकैया, सुषमा, अनंत मिले। तो उनके पास मसाला और ज्यादा था। मसाले के सबूत भी थे। सबूत थे बाल आप्टे कमेटी की रपट लीक के। बीजेपी के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। जब चिंतन शिविर का दस्तावेज लीक हुआ हो। किस ई-मेल से कहां-कहां मेल हआ था दस्तावेज। दोनों तरफ की शिकायतों से खफा हुए भागवत। पर तीर निशाने पर लगा था। राजनाथ सिंह अलग-थलग हो गए। उनके पक्ष में कोई नहीं बोला। अगले दिन दोपहर भोज पर मुरली मनोहर जोशी भी नहीं। सो भागवत का ऐसा कोई निर्देश नहीं था- 'अब छोड़ो, फौरन छोड़ो, तब छोड़ो।' न ही इसे बनाओ, उसे बनाओ। भागवत जानते हैं- मोहरे बदलने से गुटबाजी खत्म नहीं होगी। सो उनने राजनाथ से लेकर आडवाणी तक सबसे कहा- 'पहले मिलकर बैठना सीखो। पीठ में छुरेबाजी बंद करो। फिर सोचो, ठीक कैसे होगा।' लीडरशिप की बात तो बाद की। लीडरशिप के बारे में भी बता दें। कमान पूरी तरह आडवाणी के हाथ। सलाह सबसे होगी। आखिरी फैसला आडवाणी का होगा। पिछली गलती अब नहीं। जो आडवाणी की मर्जी के बिना राजनाथ को बिठाया था। आप सोमवार को हरिद्वार में दिया भागवत का बयान देख लें। उनने कहा- 'आडवाणी के दिशा-दर्शन में सब समस्याएं सुलट जाएंगी।' जब नया अध्यक्ष सत्ता संभाल लेगा। तो आडवाणी भी उसी तरह संसदीय दल के चेयरमैन होंगे। जैसे 2004 से 2009 तक वाजपेयी थे। आडवाणी को पैदल करने का इरादा होता। तो सोमवार को केएस सुदर्शन क्यों मिलते आडवाणी को। वैसे अपन बताते जाएं- सुदर्शन-आडवाणी बातचीत में राजनीति पर चर्चा नहीं हुई। ब्रेकिंग न्यूज भले बनी हो।

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