पाक को जो धमकियां थी, वो गीदड़ भभकियां निकली

Publsihed: 18.Jul.2009, 09:20

तो वैसा बवाल नहीं हुआ। जैसा अपन  सोचकर बैठे थे। दलितों का गुस्सा उलटा पड़ता दिखा। तो न कांग्रेस ने संसद में मायावती के खिलाफ हल्ला किया। न राहुल गांधी अमेठी जाते लखनऊ में रुके। रास्ते में रीता बहुगुणा का जला घर देखने जाते। तो मामला तूल पकड़ता। कांग्रेस को बचाव मुद्रा में आता देख माया शेर हो गई। बोली- 'कांग्रेस हमारे वर्करों को गीदड़ न समझे। वे भी सड़कों पर आ गए। तो कांग्रेसी चूहे की तरह दुबकेंगे।' गलत मुद्दे पर फंसी कांग्रेस ने चुप्पी में ही भला समझा। राहुल ने अपना रास्ता पकड़ा। रीता बहुगुणा का जिक्र तक नहीं किया। यों मायावती पर हमलों में कमी नहीं की। बिजली कमी की मूर्तियों से तुलना कर मायावती की खिल्ली उड़ाई। पर बात संसद की। जहां बीजेपी ने भी शुक्रवार का दिन नहीं गंवाया।

अपन को लगता था- शुक्रवार को संसद न चली। तो बीजेपी मनमोहन-गिलानी साझा बयान पर सोमवार को क्लास लेगी। पर सुषमा स्वराज ने सुबह ही नोटिस दे दिया। सुषमा ने जीरो आवर में घेरा। तो सरकार फौरन जवाब को राजी हो गई। पवन बंसल ने वादा किया- 'सरकार सवा तीन बजे तक जरूर बयान देगी।' पीएम सुबह ही तो लौटे थे। पर उनने पवन बंसल का किया वादा निभाया। सवा तीन बजे लिखित बयान लेकर आए। अपन को बयान में जरा फर्क नहीं दिखा। वही जो गुरुवार को मिस्र में साझा बयान था। मनमोहन बोले- 'मैंने गिलानी के सामने भारत का गुस्सा जाहिर किया। मैंने साफ कहा- मुंबई के साजिशकर्ताओं को कानून की गिरफ्त में लाना होगा। पाक की धरती से हमारे खिलाफ आतंकी गतिविधियां बंद होनी चाहिए। ताकि भविष्य में कोई हमला न हो। हमने हमेशा कहा- पाक अपना वादा निभाए। तभी बात सार्थक होगी।' फंस चुके मनमोहन ने गिलानी की तरफ से सफाई दी- 'गिलानी ने कहा- पाक में भी आतंकवादियों के खिलाफ माहौल। उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई पाकिस्तान के भी फायदे में।' गिलानी ने कहा। और मनमोहन ने मान लिया। पर यह उतनी सीधी बात भी नहीं। जितनी सीधी मनमोहन ने सदन में बता दी। अपन को तो क्या। पूरे देश को अमेरिकी दबाव का शक। पर भारत पहुंच रही हिलेरी क्लिंटन ने सफाई दी- 'अमेरिका ने कोई दबाव नहीं बनाया। पर मनमोहन की जरदारी, गिलानी से बातचीत काबिल-ए-तारीफ। मुंबई पर पाकिस्तान की प्रतिबध्दता झलकती है।' अब इस बयान से आप खुद मतलब निकाल लीजिए। अपन नहीं कहते- अमेरिका ने दबाव बनाया होगा। पर बात मनमोहन के संसद में दिए बयान की। मूल सवाल। जो आडवाणी-सुषमा ने उठाया। जब मुंबई पर हमले के बाद समग्र वार्ता बंद की थी। तो अब ऐसा क्या हो गया। जो आतंकवाद से लिंक हटाकर बातचीत शुरू करने की नौबत। जैसा अपन को पता था। वही हुआ। मनमोहन जवाब देने से बचे। प्रणव मुखर्जी बचाव में खड़े हुए। नियम की आड़ लेकर बोले- 'लोकसभा में स्पष्टीकरण पूछने का नियम नहीं।' सो वाकआउट के सिवा चारा क्या था। वाकआउट हुआ। पर न राज्यसभा के नियम लोकसभा जैसे। न राज्यसभा में वाकआउट हुआ। विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने पूछा- 'ब्लूचिस्तान का जिक्र कैसे आया। समग्र बातचीत को डी-लिंक क्यों किया।' यों मनमोहन ने अपने लिखित बयान में कहा था- 'आतंकवाद पर कार्रवाई का समग्र बातचीत प्रक्रिया से लिंक नहीं होना चाहिए। फिलहाल तो सचिव स्तर की बात होगी।' पर जेटली को जवाब देते मनमोहन बोले- 'पाक को समग्र बातचीत से पहले भरोसेमंद कार्रवाई करनी होगी।' मनमोहन बार-बार दी गई धमकियों से कैसे बदले। यह राज तो वह खुद बताएं। मनमोहन ने ब्लूचिस्तान वाले मुद्दे पर तो चुप्पी ही साध ली। पर सफाई दी- 'हमने अपने स्टेंड को ढीला नहीं किया।' अब मनमोहन सिंह ने कह दिया। तो मनीष तिवारी ने भी वही दोहराया- 'न रुख बदला, न नरम पड़े। पाक को कार्रवाई करनी होगी।' पर साझा बयान ही नहीं। संसद में दिए बयान से भी साफ। मनमोहन सरकार की पाक को धमकियां गिदड़ भभकियां साबित हुई।

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