तो मनमोहन सिंह मिस्र में जीती बाजी हार कर आए

Publsihed: 17.Jul.2009, 08:20

अपन को जो शक था वही हुआ। अपन ने कल लिखा था- 'हफीज पर कहीं रुख नरम न कर दें पीएम।' अपन को डर था- पाक मुंबई वारदात से पिंडे छुड़ाने की कोशिश करेगा। पर अपन को लगता था- मनमोहन नहीं झुकेंगे। आखिर मनमोहन बार-बार कह रहे थे- 'पाक पहले मुंबई के हमलावरों पर कार्रवाई का सबूत दे।' पर अपना डर सही निकला। मनमोहन का रुख नरम हो गया। साझा बयान में हफीज सईद का तो जिक्र तक नहीं। अपन अगर साझा बयान से हफीज सईद को ढूंढें भी। तो मनमोहन सिंह हारे हुए निकलेंगे। साझा बयान में कहा गया-  'गिलानी ने भरोसा दिलाया- मुंबई के हमलावरों को सजा दिलाने की पाक हर संभव कोशिश करेगा। उतनी कोशिश करेगा, जितनी उसके बस में हुई।' इसका मतलब समझते हैं आप।

इसका मतलब है- अब पाक की सुप्रीम कोर्ट हफीज सईद को बरी करेगी। तो पाक बेशर्मी से कहेगा- 'पाक की अदालतें तो सरकार के बस में नहीं।' तो सोमवार को मनमोहन सिंह संसद में घिरेंगे। सोमवार को अपन ने इसलिए कहा। शुक्रवार तो अपन को संसद चलती नहीं दिखती। गुरुवार को भी संसद नहीं चली। कांग्रेस और बसपा में दलित वोट बैंक की राजनीति शुरू हो चुकी। इसी राजनीति की भेंट चढ़ गई गुरुवार की कार्यवाही। रीता बहुगुणा को दलित महिलाओं के बलात्कार की मुआवजा राशि पर एतराज। मायावती ने एक दलित महिला को पच्चीस हजार दिया था। सो रीता बहुगुणा ने कहा- 'यह पैसा उसके मुंह पर मारना चाहिए। उसका बलात्कार हो जाए। तो हम एक करोड़ रुपए देने को तैयार।' अपने देश की राजनीति इस हद तक आ जाएगी। अपन ने तो क्या- गांधी और नेहरू ने भी नहीं सोचा होगा। राजस्थान एसेंबली में बरती गई भाषा तो कुछ भी नहीं थी। मायावती कहां कम थी। उसने फौरन रीता को जेल भेज दिया। साथ में रीता का लखनऊ वाला घर फूंका सो अलग। कांग्रेस पहले तो घर फूंकने की राजनीति पर अड़ी। पर जब दलितों का गुस्सा भड़कता दिखा। तो शुरूआती हिचकिचाहट के बाद कांग्रेस माफी पर उतर आई। दिग्विजय-जनार्दन ने अपनी प्रदेश अध्यक्ष की करतूत पर माफी मांग ली। लोक दिखावे को रीता को नोटिस-वोटिस भी संभव। पर यह राजनीति इतनी जल्दी ठंडी नहीं पड़ेगी। अभी तो सिर्फ रीता बहुगुणा का घर और कारें जली। राजनीति तो अभी शुरू ही हुई। सो आज संसद क्या चलेगी। सोमवार को पीएम लौट चुके होंगे। तो साझा बयान पर खाट खड़ी होगी। पाक के पीएम गिलानी अपने राष्ट्रपति जरदारी से ज्यादा कामयाब रहे। पिछली बार रूस में जरदारी-मनमोहन मिले थे। तो मनमोहन भारी पड़े थे। अबके गिलानी मीठे बनकर ........ बना गए। अपन ने कल लिखा था- 'अपनी सरकार का मकसद- सिर्फ आतंकवाद पर बातचीत करना। पहले मुंबई के हमले को कानूनी नतीजे तक पहुंचाना। बाद में बाकी मुद्दों पर साझा बातचीत। पाक का मकसद- आठ मुद्दों वाली समग्र बातचीत को दुबारा शुरू करना। मिस्र में साझा बयान या साझा प्रेस कांफ्रेंस करवाना।' अपन अपने मकसद पर फेल रहे। पाक अपने दोनों मकसदों पर कामयाब रहा। साझा बयान में लिखा है- 'आतंकवाद दोनों देशों के लिए खतरा।' गिलानी ने ब्लूचिस्तान पर आतंकी खतरे का जिक्र भी करवा लिया। अपन बताते जाएं- ब्लूचिस्तान में आतंकवाद का ठीकरा हमेशा अपने सिर फोड़ता रहा है पाक। बयान में लिखा है- 'समग्र बातचीत का आतंकवादी वारदात से लिंक नहीं होना चाहिए। मनमोहन पाक से सभी मुद्दों पर बात को राजी हो गए। अब न्यूयार्क में दोनों विदेश मंत्री अगले दौर की बात करेंगे।' ताकि सनद रहे सो बता दें- न्यूयार्क में होगी तेईस से तीस सितम्बर तक यूएन एसेंबली। जहां इस बार मनमोहन नहीं जाएंगे। पर मिस्र में समग्र बातचीत का बंद दरवाजा खुल गया। तो बड़ा सवाल- फिर समग्र बातचीत बंद ही क्यों की थी? मनमोहन क्यों बार-बार कह रहे थे- 'पाक पहले मुंबई हमले के जिम्मेदारों पर कार्रवाई का सबूत दे।' क्या शनिवार को सौंपी गई एटीआर काफी। जो अभी अधिकारियों तक ने नहीं पढ़ी।'

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