अपनी यूनिवर्सिटियों को ही मिले एफडीआई का हक

Publsihed: 26.Jun.2009, 08:39

बदलाव की बयार तो काम में भी बहने लगी। मनमोहन ने आडवाणी के सारे अच्छे काम अपना लिए। सुशासन की पूरी तैयारी। काला धन वापस लाने का वादा। आतंकवाद के खिलाफ प्रो-एक्टिव नीति। एक रैंक एक पेंशन। सब नागरिकों को पहचान पत्र। पहचान पत्र तो आडवाणी का पुराना सपना। जो वह अपने वक्त नहीं कर पाए। मनमोहन ने राष्ट्रपति के अभिभाषण में वादा किया। तो अभिभाषण के बीसवें दिन 25 जून को काम शुरू कर दिया। इंफोसिस के नंदन नीलेकणी को यूआईडी अथारिटी बनाकर चेयरमैन बना दिया। बात मुकाबले की चली। तो मुकाबला तो करना पड़ेगा।

पिछली दोनों सरकारों के मानव संसाधन मंत्रियों से भी करना पड़ेगा। पिछली सरकार में अर्जुन सिंह थे। तो उससे पिछली वाजपेयी सरकार में मुरली मनोहर जोशी। यों तो अभी कपिल सिब्बल का बिस्मिल्लाह ही हुआ है। पर कहते हैं न पूत के पांव पालने में पहचाने जाते हैं। जोशी शिक्षा के भगवाकरण विवाद में फंसे रहे। अर्जुन भगवाकरण मिटाने लगे। तो कम्युनिस्टों के जाल में फंस गए। कम्युनिस्टों ने अर्जुन को ऐसा फंसाया। वामपंथियों का लिखा कचरा इतिहास पढ़वाने लगे। जोशी ने जो सुधारा था। उसे बिगाड़ने में लग गए। आखिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे कांग्रेसी ही मैदान में डटे। तो अर्जुन की आंख खुली। खैर अर्जुन इतिहास की कुछ किताबें तो सुधरवा गए। पर जोशी जिन आईआईटी की फीसें घटा रहे थे। उन्हीं आईआईटी की फीसें बढ़ा गए अर्जुन। अर्जुन ने पीएम मनमोहन की योजना को भी पलीता लगाया। मनमोहन एजुकेशन का स्टैंडर्ड बढ़ाना चाहते थे। उनने ज्ञान आयोग बनाया। पर अर्जुन ने आरक्षण का फच्चर फंसा दिया। मनमोहन के किए कराए पर पानी। आरक्षण ने ज्ञान आयोग का बाजा बजा दिया। अर्जुन ने आरक्षण का दाव न चला होता। तो मनमोहन पिछली बार ही निपटा देते। गवर्नर बनाकर भेजने का इरादा था। ताकि एजुकेशन में नए जमाने की बयार बहे। मदरसों का माडर्नोइजेशन हो। पर अर्जुन ने लेफ्ट की मदद से मनमोहन को लाचार किया। चलते-चलते बताते जाएं- नरसिंह राव देश के पहले मानव संसाधन मंत्री थे। राजीव गांधी ने हायर एजुकेशन में क्रांतिकारी फेरबदल का इरादा बनाया। तो मानव संसाधन मंत्रालय बनाया था। पर जब खुद पीएम बने। तो राव ने अर्जुन को मानव संसाधन दिया। अर्जुन ने कांग्रेस तोड़ दी। तो माधव राव सिंधिया हुए थे मानव संसाधन मंत्री। अब इसी मंत्रालय की बागडोर सिब्बल के हाथ। और कोई मंत्रालय काम करता दिखे, न दिखे। सिब्बल तो काम करते दिखने लगे। हायर एजुकेशन में ताबड़तोड़ बदलाव का इरादा। जिस ज्ञान आयोग को अर्जुन ने पलीता लगाया। अब उसकी सिफारिशें लागू होंगी। साथ में यूजीसी नाम का सफेद हाथी दफा होगा। बात हाथी की चली। तो बताते जाएं- मायावती का चुनाव निशान है हाथी। अपन को सिब्बल पर भारी पड़ती दिखी मायावती। इधर सिब्बल दिल्ली में कह रहे थे- 'दसवीं में नंबरों की बजाए ग्रेड प्रणाली शुरू हो।' उधर मायावती ने एलान कर दिया- 'अगले साल से नंबर नहीं मिलेंगे। ग्रेड प्रणाली लागू।' यानी सरकारें सुधार करती दिखने लगी। पर बात सिब्बल की। उनने दो-तीन बातें खास कहीं। जैसे- कालेजों में दाखिले के लिए जीआरई जैसा इम्तिहान होगा। हायर एजुकेशन में एफडीआई के दरवाजे खुलेंगे। बोले- 'विदेशी यूनिवर्सिटियों को आने दो। अभी भी तो डेढ़ लाख बच्चे विदेश जाते हैं।' बता दें- केबिनेट ने 2007 में ही इरादा बनाया था विदेशी यूनिवर्सिटियों को न्योते का। तो अपन सिब्बल साहब को सावधान कर दें। विदेशी यूनिवर्सिटियों के कितने नुकसान। वे पढ़ाएंगे नहीं, डिग्रियां बेचेंगी। विदेशी यूनिवर्सिटियों का यह धंधा अभी भी जारी। अपन को ऐसे ई मेल रोजाना मिल रहे। जिनमें विदेशी डिग्रियां डाक से मगवाने का न्योता। एफडीआई के बहाने अपने घर आए। तो छाती ठोककर यहीं पर डिग्रियां बेचेगी। विदेशी यूनिवर्सिटियों को बुलाया जाए। पर सिर्फ अपनी यूनिवर्सिटियों से अनुबंध की छूट हो। प्रोफेशनल पढ़ाई के लिए अपनी यूनिवर्सिटियों में ही खुलें एफडीआई के दरवाजे।

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