बीजेपी की हार का पहला विकेट उत्तराखंड में गिरा

Publsihed: 24.Jun.2009, 08:17

भुवन चंद्र खंडूरी का गुस्सा सातवें आसमान पर। बीजेपी आलाकमान ने इस्तीफा जो मांग लिया। यों फैसला हुआ सोमवार की कोर कमेटी में। पर अबके खबर लीक नहीं हुई। सो मंगलवार को लीक न होने पर खूब चुटकलेबाजी हुई। बीजेपी के नेता कहते मिले- 'यह फायदा है अरुण जेटली के विदेश में होने का।' वैसे अपन बता दें- आडवाणी का पहला विकेट गिरा। आडवाणी ही बचा रहे थे खंडूरी को। नहीं तो चुनावों से पहले ही निपट जाते। फौजी बैकग्राउंड के खंडूरी एमएलए साथ नहीं रख पाए। बीजेपी ने एसेंबली चुनाव में किसी को प्रोजेक्ट नहीं किया था। पर पार्टी के अध्यक्ष तब कोश्यारी थे। पर आडवाणी ने लोकसभा से इस्तीफा दिलाकर खंडूरी को सीएम बनवाया। मकसद था- नेशनल हाईवे जैसा करिश्मा उत्तराखंड में भी दिखे। पर खंडूरी के पांव जमीन पर नहीं रहे।

लोकसभा चुनावों में बीजेपी को जिन प्रदेशों में ज्यादा नुकसान हुआ। उनमें उत्तराखंड अव्वल। यों तो सीटें राजस्थान में ज्यादा हारी। पर उत्तराखंड में तो सूपड़ा ही साफ हो गया। सभी पांचों सीटें हार गई बीजेपी। वैसे हार के फौरन बाद इस्तीफा दे देते। तो बे आबरू होकर न जाना पड़ता। पर खंडूरी जाना नहीं चाहते थे। जाते भी नहीं। अगर ज्यादा चतुरता न दिखाते। बाईस मई को जब आलाकमान ने नकवी और थावरचंद को देहरादून भेजा। तो खंडूरी ने आलाकमान से चतुराई दिखाई। उनने विधायकों के दस्तखत करवाने शुरू कर दिए। दावा किया- 'चौबीस विधायक मेरे साथ।' वैसे चौबीस विधायकों के दस्तखतों का पुलंदा आलाकमान को कभी नहीं मिला। दावे में कितनी सच्चाई। इसको परखने का कोई मापदंड नहीं। अपन ने पड़ताल की। तो पता चला- बाईस एमएलए कोश्यारी के साथ। वैसे अपन बता दें- नामिनेटिव केरन समेत बीजेपी के 36 एमएलए। नामिनेटिव एंग्लो इंडियन को भी वोट का हक। विकास नगर के मुन्ना सिंह चौहान इस्तीफा न देते। तो बीजेपी के 37 एमएलए होते। मुन्ना सिंह की खंडूरी से खटपट थी। सो वह इस्तीफा देकर मायावती के हो गए। पर अब पेंच ब्राह्मण-ठाकुर का भी। कुमाऊं-गढ़वाल का भी। ब्राह्मण नारायण दत्त तिवारी के कुमाऊं से आने वाले कोश्यारी ठाकुर। पर गढ़वाल के बीसी खंडूरी ब्राह्मण। इस समय बच्ची सिंह रावत ठाकुर अध्यक्ष। सो ब्राह्मण सीएम बनाने की लॉबिंग तेज। सो जरूरी नहीं, जो 22 एमएलए के बावजूद कोश्यारी सीएम हो पाएं। तो दो ब्राह्मण प्रकाश पंत और रमेश पोखरियाल निशंक दावेदार। वैसे अपन ब्राह्मण-ठाकुर के हिसाब से देखें। तो बीजेपी के 14 एमएलए ठाकुर। पर ब्राह्मण सिर्फ नौ। सो ठाकुरों की अनदेखी महंगी पड़ेगी बीजेपी को। फिर भी कोश्यारी न बन पाए। तो प्रकाश पंत की संभावना ज्यादा। कोश्यारी की पहली पसंद प्रकाश पंत होंगे। बीजेपी का इरादा विधायकों की पसंद का सीएम बनाने का। सो आज बीजेपी के सारे एमएलए दिल्ली तलब। अपन याद करा दें- बीजेपी ने यह लोकतांत्रिक तरीका पहली बार नहीं अपनाया। मध्यप्रदेश में अकसर ऐसा होता रहा। हिमाचल में भी ऐसे ही हुआ। अभी हाल ही का किस्सा याद होगा। जब बिहार में सुशील मोदी के खिलाफ बगावत हुई। तो बीजेपी ने सारे एमएलए दिल्ली तलब किए। बंद कमरे में बिठाकर वोटिंग कराई गई। मुद्दा था- मोदी डिप्टी सीएम रहें, या हटा दिए जाएं। मोदी जीत गए। बगावत नेस्तनाबूद हो गई। मोदी के उदाहरण को सामने रख खंडूरी ने अभी हार नहीं मानी। वरना मंगलवार को ऐसे बगावती तेवर न दिखाते। जैसे उनने प्रेस कांफ्रेंस करके दिखाए। उनने कहा- 'बीजेपी लगभग सारे उपचुनाव जीती। म्युनिसपलटियां जीती, पंचायतें जीती। मैं नही जानता पार्टी सभी लोकसभा सीटें कैसे हारी। बीजेपी लोकसभा चुनाव तो देशभर में हारी। सो पार्टी को हार के कारणों की पड़ताल करनी चाहिए।' खंडूरी हार की नैतिक जिम्मेदारी कबूल करने को भी तैयार नहीं। पर जो सीएम पार्टी को न जिता सके। वह किस काम का। बात उत्तराखंड की हो या राजस्थान की। उत्तराखंड के बाद बारी राजस्थान की।

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