बीस-पच्चीस फीसदी में सहमति की हवा

Publsihed: 10.Jun.2009, 06:54

शरद-मुलायम-लालू यादवों के साथ अब लोध कल्याण सिंह भी। घर के भेदी ने लंका ढहाने का मन बना लिया। उनने सामने बैठे लालकृष्ण आडवाणी से तो कुछ नहीं कहा। एनडीए के कनवीनर शरद यादव से कहा- 'क्यों नहीं आडवाणी से कहते- महिला आरक्षण में पिछड़ों-अल्पसंख्यकों का कोटा हो। आडवाणी न मानें, तो खत्म करो एनडीए।' शरद चुप्पी साधकर बैठे रहे। पर इसे आप शरद की चुप्पी न समझिए। शरद ने ही सुकरात की तरह जहर का घूंट पीने की बात कही थी। सोमवार को मुलायम ने वह राह अपनाई। तो मंगलवार को लालू और कल्याण ने। बीजेपी छोड़ चुके कल्याण को मुलायम ने अपनी पार्टी में तो नहीं लिया। पर कल्याण का साथ लिया-दिया।

सो यह मुलायम-लालू का दबाव ही होगा। जो मीरा कुमार ने कल्याण को बोलने का वक्त दिया। लालू-मुलायम के एजेंडे पर तो बहुत बातें थी। सोनिया-मनमोहन से कई गिले-शिकवे। आखिर दूध से मक्खी की तरह निकले हैं दोनों। लालू तो बोले भी- 'मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं। यों जा रहे हैं, जैसे जानते नहीं।' पर कल्याण के एजेंडे पर एक ही बात थी- 'महिला आरक्षण।' लालू चुनाव में कल्याण  के खिलाफ खूब बोले। पर मुलायम ने दोनों को अगल-बगल बिठा ही लिया। मौका था- राष्ट्रपति अभिभाषण का। कांग्रेस की तैयारी थी आखिर में दीपेंद्र हुड्डा को बुलवाने की। ताकि तेल मालिश खूब हो जाए। यह तेल मालिश क्या है? लालू यादव ने इसे लोकसभा में खूब समझाया। बोले- 'चापलूसी करने वाले।' बोले- 'मैं नहीं करता।' पर जब उनने राहुल की तारीफ की। तो किसी ने फब्ती कसी। पर लालू बोले- 'यह चापलूसी नहीं।' लालू ने राहुल की तारीफ करते हुए कहा- 'उनने जब कलावती का नाम लिया। तो इधर से लोग हंसे थे। हम उसी कलावती को सदन में देखना चाहते हैं। हम भगवती देवी को चाहते हैं।' तभी एक लेफ्टिए ने फब्ती कसी- 'राबडी देवी भी।' लालू भडक़े नहीं। बोले- 'वो तो हैं ही।' याद है वाजपेयी सरकार के समय जब बिल पेश हुआ। तो शरद यादव ने कहा था- 'महिला आरक्षण से सदन परकटियों से भर जाएगा।' अब लालू ने कहा-'यह पिछड़ों को सदन से बाहर निकालने की साजिश।' उनने आरक्षण समर्थक सुषमा स्वराज को उकसाया- 'इतनी महिलाएं आ जाएंगी। तो आपको कौन पूछेगा।' लालू महिला आरक्षण को टकराव के एजेंडे पर ले आए। कहा- 'मुलायम  ने एक साजिश का जिक्र किया था। मैं बताता हूं वह साजिश। साजिश है- इस सदन में लालू-शरद और मुलायम चुनकर न आएं।' लालू ने कल्याण से दूरी कायम रखी। उनने कल्याण का नाम नहीं लिया। पर मुलायम ने कल्याण पर निगाह बनाए रखी। कल्याण जब कोटे में कोटे की पैरवी कर रहे थे। तो उनने कहा- 'आरक्षण में एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक महिलाओं का कोटा हो। भले 33 फीसदी की बजाए 50 फीसदी आरक्षण कर दो।' तब मुलायम बोले- 'अकलियत का कोटा भी कहो।' कल्याण ने सफाई दी- 'कह दिया ना, अल्पसंख्यक वही होता है।' सो कल्याण मुस्लिम आरक्षण के नए अवतार। वैसे एक बात बताएं- अपन को लोकसभा बदली-बदली दिखी। रामदास अठावले चुनकर नहीं आए। तो मीरा कुमार का काम काफी आसान हुआ। सोचो, अठावले होते, तो लालू-कल्याण ने जो बात गंभीरता से कही। वह अठावले कहने देते। सच्ची बात बताएं। कोई कुछ कहे। कितना चुप्पी साधकर बैठ ले। यादवों-लोधों ने अपने तर्कों से सभी को प्रभावित किया। पर लाख टके का सवाल। अब होगा क्या। अपन ने पृथ्वीराज चव्हाण से पूछा। तो वह बोले- 'आल पार्टी मीटिंग होगी। सहमति से ही पास होगा बिल।' आम सहमति नहीं बनी, तो समाज में टकराव होगा। यह चेतावनी कल्याण ने साफ-साफ दे दी- 'पंद्रह फीसदी को आरक्षण दिया। तो पिचासी फीसदी लोग सड़कों पर आ जाएंगे।' अपन को तो सामाजिक न्याय का मंडल काफिला फिर जुड़ता दिखा। यों लालू ने बीस फीसदी का इशारा किया। पर साथ में सीटें बढ़ाकर लोकसभा को सेंट्रल हाल ले जाने का सुझाव। प्रमोद महाजन का फार्मूला था यह। पर बात सहमति के बिल की। यादवों- लोधों की सहमति बीस फीसदी पर। कांग्रेस का इरादा पच्चीस फीसदी का। कहीं बीच में बात बनने के आसार। इसीलिए पीएम ने अपने जवाब में चुप्पी साध ली। पर बात कोटे में कोटे की। एससी-एसटी कोटा तो होगा। पर ओबीसी-अल्पसंख्यक आसान नहीं। जब इन दोनों वर्गों के पुरुषों को नहीं, तो महिलाओं को कैसे।

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