कमजोर निकला मजबूत तो मजबूत पड़ा कमजोर

Publsihed: 18.May.2009, 20:36

कांग्रेस की खुशी का ठिकाना नहीं। कितनी खुशियां एक साथ आ गई। बोफोर्स के कलंक से पीछा छूटा। मंडलवादी लालुओं-पासवानों-मुलायमों से भी। बताते जाएं- तीनों को मीटिंग में नहीं बुलाया सोनिया ने। पासवान तो पूरी तरह निपट गए चुनाव में। लालू भी निपटे जैसे ही। मुलायम की नाक जरूर बची। पर रीता बहुगुणा ने दिल्ली आकर खम ठोक दिया है- 'मुलायम से दूरी बरकरार रखी जाए।' अपन को उसका असर भी दिखा। जब बताया गया- 'सोनिया ने बुधवार को यूपीए मीटिंग में नहीं बुलाया।' यों लालू ने बिना शर्त समर्थन का एलान किया। और करते भी क्या। पर सोनिया भाव नहीं देगी। कैसे तीन सीटों की ऑफर कर रहे थे। अब कहते हैं- 'गलती हुई।' गलती हुई, तो भुगतो। पर अपन बात कर रहे थे कांग्रेस को मिली खुशियों की। तो खुदा जब देता है, छप्पर फाड़कर देता है।

उधर जीत का एलान हुआ। इधर राजीव गांधी के हत्यारे प्रभाकरण का खेल खत्म। अपन यह तो नहीं कह सकते- चुनाव के दौरान ही मार डाला होगा। तब मौत की खबर आती। तमिलनाडु में बंटाधार होता। प्रणव दा ने खबर रोकने का जुगाड़ किया होगा। पर अपन न भी कहें। तो तमिलनाडु में ऐसा मानने वालों की कमी नहीं। अब द्रमुक-कांग्रेस संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ना। पर तमिलनाडु के चुनाव डेढ़ साल बाद। सो प्रणव दा बहुत कूटनीतिक ढंग से बोले। कहा- 'अब जब युध्द खत्म। तो तमिलों की हिस्सेदारी के लिए श्रीलंका सरकार राजनीतिक कदम उठाए। ताकि तमिलों समेत सभी को बराबरी का हक मिले।' खैर बात हो रही थी सोनिया के न्योते की। तो करुणानिधि को भी गया है न्योता। शरद पवार, ममता, फारुख, और शिबू सोरेन को भी। करुणानिधि खुद सीएम। सो बेटी कन्नीमुरी को मंत्री बनवाएंगे। फारुख का बेटा सीएम। सो खुद मंत्री बनेंगे। पवार सीएम नहीं। पर उनकी निगाह आईसीसी अध्यक्ष की कुर्सी पर। सो वह भी बेटी सुप्रिया सुले को मंत्री बनवाएंगे। बापों की बात चल ही निकली। तो बता दें-मुरली देवड़ा का इरादा भी खुद छोड़। बेटे मिलिंद को मंत्री बनवाने का। पर बात शिबू सोरेन की। मनमोहन चाहेंगे तो नहीं। पर फैसला सोनिया ही करेंगी। मंत्रियों की बात चल ही निकली। तो बता दें- मनमोहन अपना इस्तीफा देकर एक्टिंग पीएम बन चुके। चौदहवीं लोकसभा भी बारह दिन पहले भंग हो गई। पंद्रहवीं लोकसभा भी बन चुकी। अब आज कांग्रेस संसदीय दल मनमोहन को नेता चुन ले। तो दोपहर बाद न्योता भी हो जाएगा। बताते जाएं- मनमोहन नेता बनेंगे। तो सोनिया को फिर चुना जाएगा चेयरमैन। शपथ को लेकर शुक्रवार का दिन अच्छा बताया। आखिर प्यादों को वजीर बनाएंगे। तो सोनिया को थोड़ा वक्त तो लगेगा। यों अर्जुन की छुट्टी होगी। तो गुलाम नबी, मोहसिना, मुकुल का इंतजार खत्म होगा। पर इस बार मनमोहन भी चुनेंगे अपनी पसंद। मनमोहन अब कमजोर नहीं। कमजोर तो साबित हुए आडवाणी। जो नेता बनने को मान गए। फैसला कर लिया था तो मजबूती दिखाते। पर आडवाणी अड़ जाते। तो बीजेपी में गृहयुध्द शुरू होता। आडवाणी खेमे को जोशी कबूल होते। तो इस तरह मुख्यमंत्रियों की मीटिंग न बुलाई जाती। जोशी बनते, तो बीजेपी यों भी मुश्किल में फंसती। राजनाथ-जोशी दोनों यूपी से। जसवंत-मुरली तो चलो बूढ़े। पर सुषमा क्या बुरी थी। नहीं तो संसदीय दल में लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव ही करवा लेते। यों अपन बता दें- आडवाणी के बने रहने का फैसला पत्थर पर लकीर नहीं। यह तो गृहयुध्द रोकने का टेम्परेरी बंदोबस्त। आडवाणी ने 'फिलहाल' के लिए भरी है सहमति। उनने कहा- 'इस समय मैं पद छोड़ने की इच्छा पर दबाव नहीं दूंगा।' इसका मतलब हुआ- आम सहमति से विकल्प का बंदोबस्त होने तक। अटल-आडवाणी की जगह कौन लेंगे। अपन देखेंगे- कुछ दिनों-महीनों के अंदर।

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