आडवाणी को रोकने का वामपंथी तटस्थ फार्मूला

Publsihed: 14.May.2009, 20:36

ख्याली पुलाव पकाना अलग बात। हकीकत में पुलाव पके। यह एकदम अलग। बात लेफ्ट के ख्याली पुलाव की। तो उनकी रणनीति- पहले राष्ट्रपति को केविएट लगाने की। जाकर कहेंगे- 'हमें मौका दो।' पर प्रतिभा पाटील कहेंगी- 'आप नेता तो चुनो।' समर्थन की चिट्ठियां तो दूर की बात। पहली बात तो नेता पर ही अटकेगी। क्या मायावती लिखकर देंगी- नेता शरद पवार। क्या जयललिता लिखकर देंगी। क्या लेफ्ट खुद पवार को नेता बनाएगा। इन सभी की नौटंकी अपन ने राष्ट्रपति चुनाव में देखी। ये वही शरद पवार। जिनने अपने भैरों सिंह शेखावत को धोखा दिया। चलो नहीं। तो क्या जयललिता को नेता मानेगी मायावती। या क्या मायावती को अपना नेता मान लेगी जयललिता। सो पुलाव की बात छोड़िए। खिचड़ी भी नहीं पकनी। पूत के पांव पालने में पहचाने जाने लगे। चुनाव निपटते ही प्रकाश करात ने ईटी को इंटरव्यू में कहा- 'बीजेपी को रोकने के लिए हम कांग्रेस के रास्ते में नहीं आएंगे।' डी राजा ने कहा- 'हम कांग्रेस को किसी हालत में समर्थन नहीं देंगे। पर न ही हालात का फायदा बीजेपी को उठाने देंगे।' तो इन दोनों बातों का मतलब हुआ।

पहला दांव न चला। तो लेफ्ट वही रास्ता अपनाएगी। जो 1998 में चंद्रबाबू नायडू ने अपनाया। सनद रहे सो याद दिला दें- वाजपेयी 264 की चिट्ठियां ही जुटा पाए थे। के आर नारायणन ने चंद्रबाबू से फोन पर पूछा- 'आप क्या करेंगे?' चंद्रबाबू ने कहा- 'मेरे बारह सांसद न बीजेपी के साथ। न कांग्रेस के साथ। तटस्थ रहेंगे।' तब चुने गए थे 539 सांसद। फ्लोर पर बारह कम हुए। तो बाकी के 527 का बहुमत हो गया 264 सांसद। अपन लेफ्ट की रणनीति को बारीकी से समझें। तो उनका इरादा उसी तरह फ्लोर पर मेंबरों की तादाद घटाने का। ताकि कांग्रेस को फायदा पहुंचे। ममता कांग्रेस के साथ रहेगी। शिबू, करुणानिधि तो हैं ही। सोनिया ने बुधवार को पासवान से बात की। तो गुरुवार को लालू और पवार से। पर मुलायम को फोन नहीं गया। तो अमर सिंह भड़क गए। दिग्गी राजा को खबर मिली। तो उनने फोन लगाकर कहा- 'कही सुनी माफ करें।' उधर से अमर सिंह ने भी यही कहा। पर यह युध्दविराम शाम होते-होते फिर भड़क गया। जब दिग्गी राजा ने आजमखां से नाइंसाफी की बात कही। तो अमर सिंह ने भड़कते हुए कहा- 'दिग्गी राजा पहले कांग्रेस में अर्जुन सिंह से हो रही नाइंसाफी तो रुकवाएं। हमारी बात बाद में करें।' पर यह छोटी मोटी नोंक-झोंक रास्ते का रोड़ा नहीं बनेगी। मुलायम, पासवान, लालू आखिरकार कांग्रेस के साथ। पर बात फ्लोर पर तादाद घटाकर मनमोहन सरकार बनवाने की। लेफ्ट का यह ख्याली पुलाव पका। तो सवा सौ मेंबर तटस्थ हो जाएंगे। बाकी बचे 420 में से 211 का जुगाड़ तो कांग्रेस के पास पक्का। इस तरह लेफ्ट का इरादा मनमोहन को फिर से पीएम बनवाने का। पर क्या यह ख्याली पुलाव पकेगा? अपन से पूछो, तो कतई नहीं। जयललिता, मायावती अपना फायदा देखेंगी। चंद्रबाबू, नवीन बाबू अपना। चंद्रबाबू-नवीन अपने-अपने सूबे के सरदार बनने को तरजीह देंगे। सूबे की सरदारी का फच्चर न फंसा होता। तो दोनों लेफ्ट की सोवियत धुन पर नाचते। सो लेफ्ट का ख्याली पुलाव नहीं पकना। प्रतिभा पाटील के सामने दो ही रास्ते। या तो सबसे बड़े दल या चुनाव पूर्व गठबंधन का पैमाना माने। या फिर के आर नारायणन की तरह दस्तावेजी सबूत मांगे। बीजेपी को सबसे बड़ा दल उभरने का पूरा भरोसा। बीजेपी इसी भरोसे पर रणनीति बनाने में जुट गई। आडवाणी का घर 'वार रूम' में तब्दील हो चुका। वार रूम के लेफ्टिनेंट हैं जेटली-मोदी। पर बात सिंगल लारजेस्ट के भरोसे की। तो बीजेपी के अपने नरसिंहराववादी एग्जिट पोल में 166 सीटें। एनडीए 217 सीटें। बीजेपी के हिसाब से कांग्रेस 139 पर अटकेगी। यूपीए 174 पर। पर ताकि सनद रहे। सो एग्जिट पोलों की भीड़ में अपना अनुमान भी सुन लीजिए। बीजेपी 149 पर अटकेगी। टीआरएस समेत एनडीए 199 पर। कांग्रेस अटकेगी 144 पर। जेडीएस के तीन भी जोड़ लें। तो यूपीए अटकेगा 184 पर। पर ये अनुमान और एग्जिट पोल चौबीस घंटे के मेहमान। सो सभी दलों ने इन्हें बोगस बताया।

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