अब दिल्ली की कवायद एकदम बेकार। अपन ने तो शुरू में ही लिख था- 'येदुरप्पा-कुमारस्वामी की बेमेल जोड़ी कब तक?' बात तो तभी से साफ थी। बेंगलूर में जब बीजेपी की वर्किंग कमेटी हुई। तभी ही दिखने लगा था- कुमारस्वामी अपनी पारी पूरी करते ही पलट जाएंगे। सितंबर में बातें साफ होनी शुरू हो गई। देवगौड़ा परिवार को तब तक बीजेपी में कोई खोट नहीं दिखा। न ही येदुरप्पा में कोई खोट दिखा। जब तक तीन अक्टूबर नजदीक नहीं आ गई।
जैसे ही मोहलत खत्म होने लगी। देवगौड़ा परिवार को बीजेपी में खोट दिखने लगे। शुक्रवार को देवगौड़ा को येदुरप्पा में नया खोट दिखा। बोले- 'येदुरप्पा ने गन्ना किसानों को राहत में समय पर कार्यवाही नहीं की।' अब तक चुप थे येदुरप्पा। शुक्रवार को उनने भी तलवार म्यान से निकाल ली। पार्लियामेंट्री बोर्ड की मीटिंग से बेंगलूर पहुंचे। तो बोले- 'देवगौड़ा का ताजा बयान किसानों को गुमराह करने वाला।' देवगौड़ा हमेशा किसानों के बूते इतराते रहे। सो अल्पसंख्यकों के बाद अब उनने किसान कार्ड भी चला दिया। पर बात सत्ता हस्तांतरण की। जो होना ही नहीं था। होने के आसार ही नहीं थे। बीजेपी पता नहीं क्यों भ्रम पाले हुए थी। अपन ने तो चार अक्टूबर को ही कह दिया था- 'अब बीजेपी में आत्मसम्मान बचा हो। तो गौड़ा परिवार को और नौटंकी का मौका न दे। आज ही पार्लियामेंट्री बोर्ड में दो टूक फैसला ले। यों अपन से कोई पूछे। तो बीजेपी का देवगौड़ा के समर्थन से सरकार बनाना फिजूल। पर बीजेपी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना चाहे। तो रोकेगा कौन?' पर बीजेपी ने इशारों को नहीं समझा। जैसा अपन को अंदेशा था। हू-ब-हू वही हुआ। चार अक्टूबर को बीजेपी ने कोई फैसला नहीं किया। उम्मीद बनाई रखी। अब पांच अक्टूबर को हालात और साफ हो गए। कुमारस्वामी ने केबिनेट के मीटिंग बुला ली। मीटिंग में विधानसभा सत्र बुलाने का फैसला कर लिया। ताकि सदन में बहुमत साबित कर सकें। आखिर वही हुआ। जो अपन को शक था। केबिनेट ने 18 को बहुमत साबित करने का फैसला कर लिया। पर बीजेपी अभी भी कंफ्यूजन में। शुक्रवार को उधर केबिनेट मीटिंग हुई। इधर बीजेपी विधायक दल की मीटिंग। मीटिंग में गवर्नर को समर्थन वापसी की चिट्ठी देने की राय उभरी। पर फैसला नहीं हुआ। अब केबिनेट का फैसला गवर्नर के पास पहले जाएगा। बीजेपी का फैसला गवर्नर को बाद में पहुंचेगा। सो कुमारस्वामी को वक्त मिलना तय। अपन को उत्तर प्रदेश फिर याद आ गया। पांच साल पहले जब मायावती ताज कोरिडोर में फंसी। तो उनने केबिनेट में विधानसभा भंग का फैसला करवाया। पर बीजेपी के मंत्री-विधायक गवर्नर को पहले ही चिट्ठी दे आए। वैसे तो यूपी की बीजेपी का भी बंटाधार। पर इस मामले में यूपी की बीजेपी चुस्त निकली। अपन नहीं जानते- कर्नाटक की बीजेपी आलाकमान के कारण सुस्त। या अपनी ही चाल बेढंगी। वैसे अब यशवंत सिन्हा की काबिलियत पर भी सवाल उठने लगा। सुनते हैं- पार्लियामेंट्री बोर्ड में सब फिक्रमंद थे। खासकर एक-एक कर सहयोगियों के खिसकने से। सो असली मुद्दा नेतृत्व की कमजोरी पर उभरा। यानी निशाने पर कोई और नहीं। अपने राजनाथ सिंह होंगे। पर बात फिलहाल कर्नाटक की। जहां चुनाव गुजरात के साथ ही होने का अंदेशा। सवाल सिर्फ यह- कांग्रेस वक्त चाहेगी। या फौरी चुनाव। गेंद अब गवर्नर रामेश्वर ठाकुर के पाले में आने ही वाली है।
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