कोरोना काल और लोकतंत्र का मंदिर

Publsihed: 15.Dec.2020, 23:27

अजय सेतिया / कोरोनावायरस जब अपने पूरे शबाब पर था , तो 40 दिन बाद लाकडाउन खोलना शुरू कर दिया गया था , क्योंकि देश की आर्थिकी तबाही के कगार पर पहुंच गई थी | अब ट्रेनों को छोड़ कर शायद कुछ बचा नहीं , सब कुछ खुल चुका है | सुनते हैं जब ट्रेनें खुलेंगी तो कुछ ट्रेनें और सारे स्टेशन प्राईवेट हाथों में होंगे | इस बीच कोरोना काल में ही बिहार विधानसभा और देश के अन्य राज्यों की खाली सीटों पर भी चुनाव हो गए | लाकडाउन के दौरान ही संसद का मानसून सत्र भी बुलाया गया , जिसमें हल्ले गुल्ले के दौरान ही कृषि बिल पास करवाए गए ,जो अब मोदी सरकार के गले की फांस बने हुए हैं | लोग सवाल कर रहे हैं कि लाकडाउन पीरियड में कृषि बिलों को पास करवाने की क्या जल्दबाजी थी | वह भी तब जब कि अध्यादेश जारी होने के बाद से पंजाब के किसान आन्दोलन कर रहे थे | तब किसानों की कुछ गिनी चुनी आपत्तियां थी , बिल पास करवाने से पहले उन्हें सुन कर समाधान निकाल लिया जाता तो आज इतना बड़ा आन्दोलन खड़ा ही नहीं होता |

मोदी सरकार अब उन तीन बिलों की छह आपतियों को दूर करने के लिए कानूनों में संशोधन करने के साथ ही पराली जलाने पर भारी जुर्माने और बिजली अध्यादेश में संशोधन करने को भी तैयार है | लेकिन अब बात नहीं बन रही , क्योंकि आन्दोलन पर नक्सली, मार्क्सवादी और टुकड़े  टुकड़े गैंग समर्थक हावी हो चुके हैं | यहाँ तक कि कनाडा और ब्रिटेन में बैठे खालिस्तानी भी मौके का फायदा उठाने के लिए मैदान में कूद चुके हैं | नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ शुरू हुए आन्दोलन के फेल होने से हताश मुस्लिम अलगाववादी भी किसानों की पीठ ठोक रहे हैं |

लाकडाउन में दो बड़ी बातें हुई हैं , जिन के कारण सरकार की लोकतंत्र में आस्था पर सवाल खड़े होते हैं | पहली बिना बहस के हो हल्ले में राज्यसभा से कृषि बिलों को पास करवाना और दूसरी यह कि मीडिया को संसद के सेंट्रल हाल में प्रवेश से रोकना | यह बात कई दिनों से सुनी जा रही थी मोदी सरकार संसद के सेंट्रल हाल में मीडिया के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना चाहती है ,जो मीडिया के लोकतंत्र का चौथा खम्भा होने का एहसास करवाता था | मानसून सत्र में कोविड के बहाने वरिष्ट पत्रकारों के संसद के सेंट्रल हाल में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया , जिसे सत्रावसान के बाद भी वापस नहीं लिया गया है | मानसून सत्र क्या इन दो बातों के लिए बुलाया गया था | सरकार को इन दोनों बातों में सुधार ला कर अपनी बिगडती छवि को समय रहते सुधार लेना चाहिए | वरना माना जाएगा कि सरकार ने लोकतंत्र का गला घोंटने , मीडिया का लोकतंत्र के मंदिर में प्रवेश रोकने और अडानी औए अम्बानी को फायदा पहुँचाने के लिए मानसून सत्र बुलाया था |

इन तीनों कानूनों की अपन कई बार समीक्षा कर चुके हैं , कानूनों की खामियां भी बता चुके हैं | हालांकि किसी भी कृषि क़ानून से किसानों की खेती पर किसी तरह का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला | किसान की मर्जी हो तो वह कांट्रेक्ट फार्मिंग करे , नहीं तो जैसे पहले कर रहा था करता रहे , नया कांट्रेक्ट फार्मिंग क़ानून उसे ऐसा करने से रोकता नहीं | दूसरे क़ानून में मंडियों से बाहर किसानों को अपनी फसल बेचने की आज़ादी दी गई है , लेकिन नया क़ानून उसे अपनी फसल पहले की तरह मंडी में बचने को रोकता नहीं | तीसरा क़ानून फसल के भंडारण पर लगी रोक को खत्म करने वाला है , किसानों और विपक्ष का मानना है कि यह क़ानून अम्बानी और अडानी को फायदा पहुँचाने के लिए बनाया गया है | अडानी पंजाब और हरियाणा में बड़े बड़े कोल्ड स्टोरेज बनाने के धंधे में लगे हुए हैं , और अम्बानी देश के हर शहर में जियो मार्ट खोल रहे हैं , जिस के लिए उन्हें लाखों टन अनाज का भंडारण करना होगा | अडानी अम्बानी अपनी पूंजी के बल पर इतना भंडारण कर लेंगे कि बाद में छोटे व्यापारी , दुकानदार के पास बेचने को सामान ही नहीं होगा | उस की रोजी-रोटी चली जाएगी | जैसे सस्ते जियो सिम से एयरटेल और वोडाफोन घाटे में हैं , आयडिया बिक गया है , वैसे ही जिंदगी जरूरियात की चीजों का कंज्यूमर भी अम्बानी की जेब में होगा|

यह एक डर और दलील है , लेकिन क्या अडानी और अम्बानी के अलावा कोई और कोल्ड स्टोरेज नहीं बना सकता | सरकार को चाहिए था कि अगर वह भंडारण की सीमा खोलने वाला क़ानून बना रही थी , तो साथ में किसानों को कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए कर्ज और अनुदान की स्कीम भी घोषित करती ताकि किसानों को यह नहीं लगता कि क़ानून में यह छेद अडानी अम्बानी को लाभ पहुँचाने के लिए किया गया है | अब जब कि कोरोनावायरस का डर करीब करीब खत्म हो रहा है | संक्रमित लोगों की संख्या लगातार घट रही है , मरने वालों की संख्या में भी भारी गिरावट आई है तो सरकार ने शीतकालीन सत्र को टालने का फैसला कर लिया है , वह भी दोनों सदनों के विपक्ष के नेताओं से सलाह मशविरा किए बिना | सवाल तो खड़ा होगा ही कि जब कोरोनावायरस का कहर शिखर पर था तो मानसून सत्र बुलाया गया और अब जब सारी विधानसभाओं के सत्र हो रहे हैं , तो संसद सत्र नहीं बुलाया जा रहा |

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